भोपाल न्यूज़ (Bhopal News)

चुनाव पार्षदों का होगा, अग्नि परीक्षा देंगे दिग्गज

  • समर्थकों को टिकट दिलाने से लेकर जीताने तक की जिम्मेदारी होगी दिग्गज नेताओं पर

भोपाल। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर पंचायत के साथ नगरीय निकायों के चुनाव होना तय माना जा रहा है। चुनाव पार्षदों का होना है, लेकिन इससे पहले अग्निपरीक्षा प्रदेश के दिग्गज नेताओं को देनी होगी, क्योंकि उनके लिए स्टेशन व विमानतल पर माला लेकर खड़े होने वाले हर दस में तीन कार्यकर्ता पार्षद का टिकट मांगने के लिए तैयार हैं। इन दावेदारों का साफ कहना है कि इस बार नेताजी ने टिकट दिलाने में आनाकानी की तो विधानसभा व सासंद के चुनाव में हम भी उन्हें ठेंगा दिखाने से नहीं चूकेंगे। इन चुनावों में सबसे ज्यादा घमासान भाजपा में होने की आशंका है। केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के सामने अपने साथ भाजपा में आए पूर्व पार्षदों को टिकट दिलाने की प्राथमिकता होगी और नए कार्यकर्ताओं की भी उम्मीदें जुड़ गई हैं। वहीं केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर व सांसद विवेक नारायण शेजवलकर के सामने भी दुविधा है। अगर वे अपने समर्थकों को टिकट नहीं दिलवा पाए तो वह पाला बदल सकते हैं। चुनावों के आदेश से कांग्रेस नेता जरूर सुकून में हैं, क्योंकि इस बार टिकट के लिए महल में हाजिरी नहीं लगानी पड़ेगी। दूसरा उन्हें मालूम है कि उनके हाथ में खोने के लिए कुछ नहीं है।


शीर्ष नेतृत्व के सामने भी चुनौती
संगठन को विरोध-प्रतिरोध व पक्षपात के आरोपों से बचने के लिए नेताओं के बीच टिकटों का बंटवारा तराजू की तरह समान करना पड़ेगा। यह काम संगठन के शीर्ष नेतृत्व के लिए आसान नहीं होगा। मंडल फिर जिला और उसके बाद नेताओं की शिफारशी सूची में तालमेल बैठना टेड़ी खीर है। वरिष्ठ नेताओं से यह जानने के बाद कि इस बार चुनाव होना लगभग तय हैं, दावेवार वार्डो में उतर गए हैं। पार्षद का चुनाव भले ही 10-20 हजार मतदाताओं के बीच होता है, लेकिन मुश्किलें विधानसभा व सांसद के चुनाव से कम नहीं होतीं। पार्षदी के दावेदार का मतदाता के बीच सीधा संपर्क होता है। सांसद-विधायक बिना राम-राम किए घर से निकल जाए तो आम मतदाता ध्यान तक नहीं देता। वहीं अगर वार्ड का नेता दुआ-सलाम किए बगैर निकल जाए तो वह मन बना लेता है कि दावेदार बड़ा नेता हो गया है, उसे चुनाव में सबक सीखना होगा।

उम्मीदें अधिक, संभावनाएं परिस्थितियों पर निर्भर
केंद्रीय मंत्री सिंधिया का संगठनात्मक रूप से नए परिदृश्य में पार्षद के चुनाव में समर्थकों को संतुष्ट करना आसान नहीं है। उनके समर्थकों ने कांग्रेस का वो जमाना देखा है, जब महल से प्रदेश नेतृत्व के सामने भेजी जाने वाली सूची में कांट- छांट होने की गुंजाइश न के बराबर होती थी। भाजपा की रीति-नीति कांग्रेस से विपरीत है। यहां टिकट का फैसला एक-दो नेता नहीं संगठन करता है, नेता केवल नाम भेज सकता है। उन्हें यह भी पूछने का अधिकार नहीं होता कि समर्थक का नाम टिकट की सूची से क्यों कट गया। भाजपा में केंद्रीय मंत्री तोमर व सांसद शेजवलकर भी पार्षद के टिकट के बंटवारे में पीछे नहीं रहेंगे। उनकी कोशिश है कि संगठन में उनका प्रभाव बना रहे, इसलिए समर्थकों को टिकट दिलाना प्राथमिकता में होगा।

कांग्रेस के लिए टिकट वितरण का कार्य आसान नहीं
यह बात किसी से छुपी नहीं है कि कांग्रेस पहले ही अपनी सियासी ताकत गंवा चुकी है, इसलिए उनके हाथ में खोने को कुछ नहीं है। हालांकि कांग्रेस में इस बार भी टिकटों का वितरण इतना आसान नहीं होगा, जिनता कि नेता समझ रहे हैं। कांग्रेस में दावेदार एक ओर तो अपने क्षेत्र के विधायक का कुर्ता पकड़ रहे हैं। दूसरी तरफ नेता प्रतिपक्ष डा. गोविंद सिंह, दिग्विजय सिंह, सुरेश पचोरी, अरूण यादव के घर भी टिकट के लिए चक्कर लगाने लगे हैं।

Share:

Next Post

अब लैप्स नहीं होगा अस्पतालों की मरम्मत का बजट

Mon May 16 , 2022
सामुदायिक और प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों के इंचार्ज को मिलेगा अस्पताल के मेंटेनेंस के लिए बजट भोपाल। सरकारी अस्पतालों में टूटफूट और मरम्मत के लिए अब बजट की कमी बाधा नहीं बनेगी। स्वास्थ्य विभाग अस्पतालों के प्लिंथ एरिया (निर्मित क्षेत्रफल) के मुताबिक प्रति स्क्वायर फिट के हिसाब से मेंटेनेंस का बजट उपलब्ध कराएगा। स्वास्थ्य संचालनालय ने […]