- पुलिस को कोर्ट से लेना पड़ रहा आदेश
- लोकायुक्त पुलिस को अधिकतर मामलों में कोर्ट में लगाना पड़ता है आवेदन, तभी उपस्थित हो रहे
- रिश्वत के मामले में आवाज का मिलान जरूरी
भोपाल। रिश्वतखोरी में फंसे अधिकारी व कर्मचारी अपने आवाज के नमूने देने से बच रहे हैं। विशेष स्थापना पुलिस (लोकायुक्त पुलिस) से तीन नोटिस तक दिए जा रहे हैं, लेकिन नोटिस पर आवाज के नमूने देने नहीं पहुंचते हैं। आवाज के नमूने लेने के लिए पुलिस को न्यायालय का दरवाजा खटखटना पड़ रहा है। विधिक आपराधिक केस दायर करना पड़ रहा है। कोर्ट से आदेश होने के बाद ही उपस्थित हो रहे हैं। आवाज के नमूने में लेने में ही काफी समय लग रहा है। क्योंकि पुलिस के नोटिस पर ये उपस्थित नहीं होते हैं। रिश्वतखोरी के मामलों में फंसे कर्मचारियों के अलग-अलग केस का अध्ययन किया, जिसमें ये अपनी आवाज का नमूना देना नहीं चाहते हैं, लेकिन उन्हें कोर्ट से कोई राहत नहीं मिलती है।
किसी भी अधिकारी व कर्मचारी को रिश्वत के मामले में पकडऩे के लिए फरियादी को टैप रिकार्डर दिया जाता है, जिसमें दोनों की बात रिकार्ड होती है। उसके बाद ट्रैप का जाल बिछाया जाता है। ट्रैप होने के बाद मामले की जांच की जाती है। रिश्वत की वार्ता हुई थी। उसमें वही कर्मचारी है, उसके मिलाने के लिए अलग से सैंपल लिया जाता है। रिश्वत की वार्ता व बाद में लिए सैंपल का मिलान किया जाता है। इसका मिलान विशेष लैब में किया जाता है। चालान के आवाज रिकर्डिंग की सीडी पेश की जाती है। ट्रांसस्क्रिप्ट भी चालान के साथ होती है।
इसलिए बचना चाहते के नमूने से
आवाज का नमूना लेने के लिए तीन नोटिस दिए जाते है। नोटिस प्रक्रिया में समय निकल जाता है, जिससे चालान में देर हो सके। क्योंकि चालान पेश होता है तो ये निलंबित हो जाते हैं। ट्रायल का सामना करना पड़ता है। केस को लंबा खींचना चाहते हैं। बार-बार नोटिस दिए जाने के बाद ये उपस्थित नहीं होते है। यदि पुलिस उन्हें आवाज का नमूना लेने से मुक्त कर दे तो उसका फायदा कोर्ट में उठाया जा सके, लेकिन ऐसा नहीं होता है। कोर्ट के माध्यम से उन्हें उपस्थित कराया जाता है। यदि कोर्ट के आदेश के बाद आवाज का नमूना नहीं दिया तो आवाज के आधार पर बचाव का मौका भी नहीं मिलेगा। इसलिए कोरट् के आदेश पर नमूना देते हैं।