ब्‍लॉगर

गढ़े जा रहे शब्द और निराशा की आहट

– डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा

विश्व की प्रमुख डिक्शनरियां हर साल शामिल किए गए प्रमुख शब्द जारी करती हैं। यह शब्द दुनिया की हकीकत बयां करने के लिए काफी होते हैं। इसको साल के पहले नंबर के एक शब्द से ही नहीं आंका जा सकता। साल के अन्य शब्दों को भी देखना होता है। इनसे साफ हो जाता है कि दुनिया जा किधर रही है। लोगों में क्या हलचल है। सकारात्मकता या नकारात्मकता कहां तक पहुंच रही है। इनमें भविष्य का संदेश छिपा होता है। साल 2022 के प्रमुख शब्द गैसलाइटिंग हो या परमाक्राइसिस या कीव हो या पार्टीगेट, कोविड हो या वार्महाउस यह सभी शब्द प्रमुख शब्दों के रूप में चयनित किए गए हैं। यह वैश्विक संकट की ओर इशारा कर रहे हैं।


ब्रिटेन के अंग्रेजी शब्दकोष कोलिन्स द्वारा इस वर्ष के लिए घोषित वर्ड ऑफ द ईयर परमाक्राइसिस हो या अमेरिका की डिक्शनरी मेरियम वेबस्टर का गैसलाइटिंग। इन दोनों से आज की दुनिया के हालात साफ हो जाते हैं। यह कोई शब्दमात्र नहीं हैं। यह अनिश्चितता और असुरक्षा की भावना घर कर रहे लोगों की मनोदशा को दर्शाते हैं। परमाक्राइसिस परमानेंट और क्राइसिस दो शब्दों से बना लगता है। साफ है कि परमानेंट के मायने स्थाई है तो क्राइसिस का अर्थ है संकट। इसी तरह से गैसलाइटिंग भी दरअसल व्यक्ति के मानसिक रूप से कुंठाग्रस्त और हीनभावना की ओर इंगित करता है। दोनों ही डिक्शनरियों द्वारा खोजे गए साल के प्रमुख दस शब्द हालात की गंभीरता को दर्शाते हैं। कहीं दूर-दूर तक आशा की झलक दिखाई ही नहीं देती। दुनिया के देश आज जिस हालात से दोचार हो रहे हैं, यह उसी को दर्शाते हैं। ब्रिटेनका यूरोपीय संघ से अलग होने का फैसला ब्रेक्जिट हो या रूस-यूक्रेन युद्ध हो। जलवायु परिवर्तन के कारण बदलते हालात हों या दुनिया के देशों के सामने अर्थव्यवस्था का संकट। साल 2023 में भी इन संकटों से मुक्ति आसान नहीं दिख रही।

फ्रांसीसी दार्शनिक एडगर मोरिन की माने तो दुनिया इंटरलॉकिंग के दौर में जा रही है। लाख प्रयासों के बावजूद कोरोना से पूरी तरह से मुक्ति नहीं मिली है । ब्रिटेन में ऋषि सुनक के प्रधानमंत्री बनने के बावजूद अभी हालात ज्यादा अच्छे नहीं हैं। कोरोना के बाद संकट का जो दौर आया उसके बाद भी आतंकवाद में कोई कमी नहीं आई है। एक-दूसरे देशों के प्रति वैमनस्यता भी कम नहीं हो रही है। लोगों को लगने लगा है कि दुनिया अब ऐसे संकट के दौर से गुजर रही है जिसका स्थाई समाधान निकट भविष्य में दिख नहीं रहा।

कोलिंस द्वारा इस साल सामने लाए गए अन्य शब्दों में कीव है। इसके अलावा दूसरा शब्द पार्टीगेट है। इंग्लैंड के पूर्व प्रधानमंत्री बोरिस जानसन द्वारा जून 20 को कोविड पाबंदियों के बावजूद जन्मदिन की पार्टी करना और उसके बाद के हालातों से पार्टीगेट शब्द चल निकला है। इसी तरह से स्पोर्ट्सवाकिंग शब्द प्रमुख दस शब्दों में शुमार है। वार्मबैंक का चलन भी काफी रहा। यह जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम में हो रहे बदलाव से चिंतित दुनिया की पीड़ा व्यक्त करता है। खास बात यह है 2022 में सामने आए दस प्रमुख शब्दों में से निराशा से आशा का संचार करता एक भी शब्द सामने नहीं आया है। इससे स्वतः ही आज की दुनिया के हालात बयां हो जाते हैं।

1938 में जब पहली बार पैट्रिक हैमिल्टन द्वारा लिखित नाटक गैसलाइटिंग खेला गया होगा तब इसकी कल्पना नहीं की गई होगी। इस नाटक पर दो फिल्में बन चुकी हैं। गैसलाइटिंग कोई गैस जलाने वाला लाइटर नहीं होकर मानसिक व मनोवैज्ञानिक रूप से अंदर तक जला देने वाली क्रिया हैं। होना तो यह चाहिए कि कोई व्यक्ति मानसिक या सामाजिक रूप से कमजोर है तो उसे संबल दिया जाए पर होने लगा उल्टा है। 21 वीं सदी में यह सब होना किसी भी तरह से उचित नहीं माना जा सकता। प्रतिस्पर्धा का दौर ऐसा चल निकला है कि दूसरे को नीचा दिखाना हमारी आदत में आ गया है। यह सब तब है जब अभी हम कोरोना के संकट से पूरी तरह से निजात नहीं पा सके हैं। कोरोना का नया वेरियंट सामने हैं। चीन में हालात बदतर होते जा रहे हैं।

(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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