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यह महिला पत्रकार दुनिया को दिखा रही तालिबान का क्रूर चेहरा, लड़का बनकर की थी पढ़ाई

नई दिल्‍ली । तालिबानी साये में जी रहीं अफगानी महिलाओं की कहानियां कुछ साहसी महिला पत्रकारों के जरिए सामने आ रही हैं। काबुल से अमेरिका और नाटो की सेना के चले जाने के बाद देश में विदेशी पत्रकारों की मौजूदगी घटी है। मगर चंद स्थानीय महिला पत्रकार (female journalist) अपने देश में औरतों पर हो रहीं तमाम प्रताड़ना को रिपोर्ट कर रही हैं। इन महिला पत्रकारों का नेतृत्व लंदन से एक युवा अफगानी पत्रकार जहरा जोया (Afghan journalist Zahra Zoya) कर रही हैं, जिन्हें हाल में उनके साहसिक काम के लिए एक प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय मीडिया मंच (international media forum) पर बतौर वक्ता बुलाए जाने की घोषणा हुई है।

अफगान में छिपकर छह महिला पत्रकार कर रही रिपोर्टिंग
पत्रकार जहरा जोया ने अफगानिस्तान की महिला पत्रकारों के साथ मिलकर पिछले साल दिसंबर में रुखसाना मीडिया नामक एक समाचार एजेंसी शुरू की थी।उनका मकसद अफगानी महिलाओं की जिंदगी की चुनौतियों को पत्रकारिता के जरिए दुनिया के सामने लाना था। तालिबानी शासन लागू होने पर लगे तमाम पहरों के बीच जोया की टीम ने यह काम जारी रखा है। जोया अब लंदन के एक होटल में रहकर यह जिम्मेदारी संभाल रही हैं। काबुल पर तालिबानी कब्जे के बाद ब्रिटिश सरकार ने उन्हें सपरिवार देश से बाहर निकालने में मदद की थी। उनकी कई सहयोगी पत्रकार अभी अफगानिस्तान में ही हैं जो बेहद सतर्कता के साथ ये खबरें जोया को भेजती हैं। इसके अलावा, सोशल मीडिया व अन्य संपर्कों के जरिए वे अंग्रेजी में खबरें प्रकाशित करती हैं।


पत्रकारिता जारी रखने को मिला आर्थिक सहयोग
ब्रिटेन आकर काम जारी रखने के लिए 29 वर्षीय युवा पत्रकार जहरा जोया को आर्थिक मदद की जरूरत थी। जोया के अफगानी महिलाओं के लिए रिपोर्टिंग करने के मकसद को लोगों ने सराहा और अब तक उन्हें क्राउड फंडिंग से 3 लाख डॉलर मिल चुके हैं। जोया कहती हैं कि अब जबकि तालिबान सरकार ने महिलाओं के पहनावे, शिक्षा आदि पर तमाम प्रतिबंध लगा दिए हैं, उनका काम और अहम हो गया है। इस युवा पत्रकार के साहस की गूंज इतनी है कि प्रतिष्ठित थॉमसन रॉयर्ट्स फाउंडेशन अपने वार्षिक सम्मेलन में उन्हें बतौर वक्ता बुलाने की घोषणा कर चुका है।

लड़का बनकर की थी पढ़ाई
पत्रकार जहरा जोया अफगानिस्तान के अल्पसंख्यक हजारा समुदाय के एक परिवार में जन्मीं। इस समुदाय पर तालिबानी लड़ाकों के अत्याचार करने की घटनाएं सामने आती रही हैं। 1992 में पैदा हुईं जोया जब बढ़ी हो रही थीं, तब अफगानिस्तान में तालिबानी शासन था और बच्चियों के स्कूल जाने पर मनाही थी। वह कई मंचों से बता चुकी हैं कि तब वह स्कूल में लड़का बनकर जाया करती थीं।

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