- भ्रष्टाचारियों के अभियोजन स्वीकृति के मामले देखेगा सीएमओ
भोपाल। मप्र में अब भ्रष्ट अफसरों की फाइलों से जल्द ही धूल हटेगी। इसकी वजह यह है की भ्रष्टाचार में फंसे अधिकारियों-कर्मचारियों के अभियोजन के मामलों को अब खुद मुख्यमंत्री सचिवालय देखेगा। गौरतलब है की प्रदेश में भ्रष्ट अफसरों के खिलाफ लोकायुक्त और ईओडब्ल्यू में एफआईआर दर्ज है, लेकिन इन अफसरों के खिलाफ पिछले कई सालों से अभियोजन की मंजूरी ही नहीं दी गई है। इससे सरकार की जमकर किरकिरी हो रही है। इसलिए इस मामले को मुख्यमंत्री सचिवालय ने गंभीरता से लिया है और अभियोजन के मामलों को देखने का निर्णय लिया है। मुख्यमंत्री सचिवालय के इस कदम से जहां भ्रष्टाचार के मामले में फंसे अफसरों की चिंताएं बढ़ गई हैं, वहीं लोकायुक्त और ईओडब्ल्यू के अफसरों को उम्मीद है की अब जल्द से जल्द अभियोजन की स्वीकृति मिल जाएगी। बता दें कि विधानसभा के बजट सत्र में नेता प्रतिपक्ष डा. गोविंद सिंह ने सरकार पर अनियमितता के दोषियों को बचाने के लिए अभियोजन की स्वीकृति न देने का आरोप लगाया था। इसके बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी इसकी समीक्षा शुरू की थी, जिससे विभागों से स्वीकृतियां मिलने में गति आई है। अभी लोकायुक्त में दर्ज लगभग सवा दो सौ और ईओडब्ल्यू के 90 प्रकरणों में अभियोजन की स्वीकृति लंबित है। इसके अलावा सीबीआई व अन्य जांच एजेंसियों के मामले लंबित हैं। अब एक जगह से सभी की निगरानी हो सकेगी।
जीएडी बना रहा पोर्टल
जानकारी के अनुसार सामान्य प्रशासन विभाग प्रदेश के अधिकारी-कर्मचारियों के विरुद्ध विभिन्न जांच एजेंसियों में दर्ज प्रकरणों में अभियोजन की स्वीकृति की निगरानी के लिए पोर्टल बना रहा है। इसमें सभी जांच एजेंसियां अभियोजन की स्वीकृति के लिए शासन को भेजे गए प्रकरणों की जानकारी डालेंगी। इसमें ही लंबित व स्वीकृत प्रकरणों की जानकारी प्रदर्शित होगी। इससे पता करना आसान होगा कि स्वीकृति के लिए प्रकरण कहां लंबित है। सामान्य प्रशासन विभाग के सचिव श्रीनिवास शर्मा का कहना है कि अभियोजन के लिए लंबित मामलों की निगरानी के लिए पोर्टल तैयार किया जा रहा है। संबंधित जांच एजेंसियां इस पर जानकारी डालेंगी। हर स्तर पर निगरानी की जाएगी। एक माह में यह व्यवस्था शुरू हो जाएगी। अखिल भारतीय सेवा के अधिकारियों के विरुद्ध अभियोजन की स्वीकृति भारत सरकार के स्तर पर लंबित होगी तो यह भी पता चल जाएगा। अकेले लोकायुक्त संगठन में लगभग 25 और ईओडब्ल्यू में 10 आइएएस, आइपीएस और आइएफएस अधिकारियों के विरुद्ध अभियोजन की स्वीकृति लंबित है। कई अधिकारी अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर स्वीकृति नहीं मिलने देते। यही कारण है कि 10 वर्ष से भी ज्यादा कुछ पुराने मामलों में स्वीकृति नहीं मिली है।
ईओडब्ल्यू में 90 पर एफआईआर
प्रदेश में स्थिति यह है कि 24 विभागों के 90 कर्मचारियों के खिलाफ ईओडब्ल्यू में एफआईआर दर्ज है, लेकिन सरकार ने इन अफसरों के खिलाफ पिछले कई सालों से अभियोजन की मंजूरी ही नहीं दी है। इनमें से कुछ तो ऐसे हैं जिनके खिलाफ 2017 में मामला दर्ज हुआ, मप्र में 2 बार सरकार बदल गई, लेकिन इन अफसरों का कुछ नहीं बिगड़ा। पिछले साल सीएम शिवराज सिंह चौहान अचानक एक्शन में आ गए थे। औचक निरीक्षण करने लगे थे, मैसेज ये दिया था कि भ्रष्टाचार और लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जाएगी। आपको ये भी जानकर बड़ी हैरानी होगी कि मप्र में साल 2021 में सरकारी अधिकारी और कर्मचारियों के भ्रष्टाचार में पकड़े जाने के मामले साल 2020 के मुकाबले 65 फीसदी तक बढ़ गए, लेकिन पूरे साल की भ्रष्टाचारी सलाखों के पीछे नहीं पहुंचा जबकि इनमें से 200 सरकारी अधिकारी और कर्मचारी तो रिश्वत लेते पकड़े गए थे। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े भ्रष्टाचारियों पर मेहरबानी की ऐसी ही एक और कहानी बयां करते हैं। भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 वो कानून है जिसकी अलग-अलग धाराओं के तहत भ्रष्टाचारियों पर एफआईआर दर्ज की जाती है। चाहे वो सीबीआई हो या फिर प्रदेशों में लोकायुक्त और एंटी करप्शन ब्यूरो। यानी भ्रष्टाचारियों पर कार्रवाई के लिए पूरे देश में एक कानून है। इस कानून की धाराओं में मामला दर्ज होने के बाद होता क्या है ?