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महिलाओं से लेकर मराठा और OBC तक, लोकसभा चुनाव से पहले आरक्षण की उठने लगी मांग

मुंबई: 2024 लोकसभा चुनाव से ठीक पहले अचानक सड़क से लेकर संसद तक आरक्षण की गूंज सुनाई देने लगी है. मराठा आरक्षण को लेकर महाराष्ट्र की सियासत पहले से गरमाई हुई है तो फिर से संसद के विशेष सत्र के साथ ही महिला आरक्षण का मुद्दा उठ गया है. आरक्षण की सीमा 50 फीसदी को बढ़ाने की मांग भी तेजी पकड़ रही है. इस तरह से पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव और 2024 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले आरक्षण की सियासत को धार दी जा रही है.

संसद के विशेष सत्र से एक दिन पहले रविवार को केंद्र सरकार के द्वारा सर्वदलीय बैठक में सत्ता पक्ष और विपक्ष ने महिला आरक्षण बिल पर जोर दिया. बैठक में कई नेताओं ने कहा कि लंबे समय से लंबित इस विधेयक को पेश किया जाना चाहिए. इसे आम सहमति से पारित किया जा सकता है. इसी तरह महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण लागू करने और मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में ओबीसी आरक्षण को बढ़ाने की मांग भी जोर पकड़ रही है.

महिला आरक्षण-
विपक्ष की मांग है कि संसद के मौजूदा सत्र में महिला आरक्षण विधेयक भी पेश किया जाए, जो करीब 27 सालों से लंबित है. इस विधेयक में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीट आरक्षित करने का प्रावधान है. देवगौड़ा से लेकर अटल बिहारी वाजपेयी और यूपीए सरकार के दौरान महिला आरक्षण की दिशा में कदम उठाए गए, लेकिन अभी तक उसे अमलीजामा नहीं पहनाया जा सका है.

लोकसभा में महिला सांसदों की संख्या करीब 15 फीसदी और राज्यसभा में 14 फीसदी है, जबकि कई राज्यों की विधानसभाओं में महिलाओं का प्रतिनिधित्व 10 फीसदी से भी कम है. मांग है कि लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 फीसदी सीटें आरक्षित की जाएं. साल 2010 में इस विधेयक को राज्यसभा से तो पारित कर दिया गया था, लेकिन यह लोकसभा में पारित नहीं हो पाया और अटक गया.

कांग्रेस, बीजेपी और लेफ्ट पार्टियां महिला आरक्षण के समर्थन में रही हैं, लेकिन कई क्षेत्रीय दल विरोध करते रहे हैं. खासकर सपा, बसपा, आरजेडी, जेडीयू जैसे दल महिला आरक्षण में दलित, ओबीसी और अल्पसंख्यकों के लिए आरक्षण फिक्स करने की मांग करते रहे हैं. कांग्रेस की सीडब्ल्यूसी की बैठक में भी एक बार फिर से महिला आरक्षण की दिशा में कदम उठाए जाने की चर्चा हुई, जिसके जरिए आधी आबादी को साधने का प्लान है. इसके चलते ही सर्वदलीय बैठक में अधीर रंजन चौधरी ने भी महिला आरक्षण के मुद्दे पर जोर दिया.

महिला आरक्षण बिल कब-कब आया?

  • साल 1996 में देवगौड़ा सरकार में बिल लाया गया, लेकिन पास नहीं हुआ.
  • साल 1998 में एनडीए सरकार में बिल लाया गया, लेकिन पास नहीं हुआ.
  • साल 1999 में फिर एनडीए सरकार में लाया गया, लेकिन फिर पास नहीं हुआ.
  • साल 2002, 2003 और 2004 में फिर लाया गया, लेकिन पास नहीं हुआ.
  • साल 2008 में बिल को यूपीए सरकार ने स्थायी समिति के पास भेज दिया.
  • साल 2010 में यूपीए सरकार में बिल राज्यसभा से तो पास हो गया, लेकिन लोकसभा में अटक गया.

मराठा आरक्षण-
महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण की मांग दशकों पुरानी है. इस मांग को लेकर अगस्त में फिर चिंगारी भड़क उठी, जब आरक्षण का नेतृत्व करने वाले मनोज जारांगे ने जालना जिले के अंतरवाली सरती गांव में भूख हड़ताल शुरू की. मराठा समुदाय की मांग है कि शिक्षा और नौकरियों में मराठाओं को आरक्षण दिया जाए, क्योंकि इस समुदाय का एक तबका समाज में बहुत पिछड़ा हुआ है.

हालांकि महाराष्ट्र सरकार ने 2018 में कानून बनाकर मराठा समुदाय को 13 फीसदी आरक्षण दे दिया था, लेकिन साल 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने इसपर रोक लगाते हुए कहा कि आरक्षण को लेकर 50 फीसदी की सीमा को नहीं तोड़ा जा सकता. सुप्रीम कोर्ट ने साल 1992 में आरक्षण की सीमा को अधिकतम 50 फीसदी तक सीमित कर दिया था.

अब फिर से मराठा आरक्षण को लेकर मांग उठी तो सीएम एकनाथ शिंदे ने उन्हें ओबीसी की कुनबी जाति से प्रमाण पत्र जारी करने का आदेश दे दिया, जिसे लेकर ओबीसी समुदाय के नेता नाराज हो गए. ऐसे में सरकार ने सर्वदलीय बैठक बुलाई और उसके बाद सीएम शिंदे ने आश्वासन दिया कि बिना किसी के आरक्षण से छेड़छाड़ किए मराठा समुदाय को आरक्षण दिया जाएगा.


ओबीसी आरक्षण-
मराठा समुदाय की तरह ही देश में ओबीसी आरक्षण की मांग भी दशकों पुरानी है. ओबीसी जातियों को मंडल कमीशन के लागू किए जाने के बाद आरक्षण के दायरे में लाया गया और 27 फीसदी आरक्षण निर्धारित किया गया, लेकिन आरक्षण की सीमा 50 फीसदी को भी खत्म करने की मांग उठने लगी है. कांग्रेस ने सीडब्ल्यूसी की बैठक में इस दिशा में कदम उठाए जाने की बात की. राहुल गांधी से लेकर तेजस्वी यादव और अखिलेश यादव तक कहते रहे हैं कि जिसकी जितनी भागेदारी, उसको उतनी हिस्सेदारी मिलनी चाहिए.

वहीं, मंडल कमीशन लागू किए जाने के बाद 27 फीसदी ओबीसी को आरक्षण मिला, लेकिन आरक्षण की लिमिट 50 फीसदी होने के चलते मध्य प्रदेश, झारखंड, छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में 14 फीसदी ही आरक्षण मिला. इतना ही नहीं ओबीसी में शामिल कई जातियां आरक्षण से वंचित हो गईं. सभी जातियों को आरक्षण का समान लाभ मिले, इसके लिए 2015 में राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग ने ओबीसी आरक्षण को तीन हिस्सों में बांटने की सिफारिश की.

साल 2017 में केंद्र सरकार ने आरक्षण के आंकलन के लिए रोहिणी कमीशन का गठन किया, जिसने गठन के 6 साल बाद इसी साल अगस्त में राष्ट्रपति को अपनी रिपोर्ट सौंप दी. कमीशन ने ओबीसी आरक्षण को तीन-चार हिस्सों में बांटने का सुझाव दिया है.अब सभी की निगाहें केंद्र सरकार पर टिकी हैं कि क्या अब रोहिणी कमीशन की सिफारिशों को लागू किया जाएगा या नहीं.

चुनावी राज्य मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में ओबीसी को आरक्षण तो मिला है, लेकिन अब इसे बढ़ाने की मांग जोर पकड़ने लगी है. एमपी और छत्तीसगढ़ में ओबीसी आरक्षण को 14 फीसदी से 27 फीसदी तक बढ़ाने की मांग हो रही है. राजस्थान में भी इस साल के आखिर में विधानसभा चुनाव होने हैं. राजस्थान में ओबीसी को 21 फीसदी आरक्षण दिया जा रहा था, लेकिन गहलोत सरकार ने चुनावी दांव चलते हुए ओबीसी को 6 फीसदी अतिरिक्त आरक्षण देने का ऐलान किया. मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और झारखंड में ओबीसी आरक्षण बढ़ाया गया, लेकिन मामला अदालत के कानूनी पेच में फंसा है. तेलंगाना में पिछड़ा वर्ग के लिए 33 फीसदी आरक्षण की मांग की जा रही है.

एससी-एसटी आरक्षण
अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति यानी एससी-एसटी को मिल रहे आरक्षण को बढ़ाने की मांग भी लंबे समय से हो रही है. ओबीसी की तरह ही कांग्रेस ने एससी-एसटी आरक्षण की ऊपरी सीमा को बढ़ाने की मांग की है. फिलहाल देश में एससी को 15 फीसदी और एसटी को 7.5 फीसदी आरक्षण मिला हुआ है.

राजस्थान में एससी को 16 और एसटी को 12 फीसदी आरक्षण मिल रहा है, लेकिन सरकार दो-दो फीसदी आरक्षण बढ़ाने का फैसला करने पर विचार कर रही है. एससी को 18 और एसटी को 14 फीसदी आरक्षण देने की योजना बनाई गई है. गहलोत सरकार का तर्क है कि एससी,एसटी के विभिन्न संगठन जाति के आधार पर आरक्षण बढ़ाने की मांग कर रहे हैं. इस कारण सरकार आरक्षण बढ़ाने पर विचार कर रही है. इसी तरह से झारखंड और छत्तीसगढ़ में एससी-एसटी समुदाय से आरक्षण बढ़ाए जाने की है.

वहीं, अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति की ओर से प्रमोशन में आरक्षण की मांग भी पहले से उठती रही है. इसको लेकर आंदोलन भी हुए. मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, लेकिन साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाते हुए कह दिया कि प्रमोशन में आरक्षण किसी का मौलिक अधिकार नहीं है. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद प्रमोशन में आरक्षण का मुद्दा ठंडे बस्ते में चला गया, लेकिन बसपा से लेकर सपा और आरजेडी तक इसकी मांग कर रही हैं.

मुस्लिम-ईसाई एससी आरक्षण
देश में पसमांदा मुस्लिम सियासत काफी तेज हो गई है. भारत में लंबे समय से दलित मुस्लिम और दलित ईसाई समुदाय को भी आरक्षण दिए जाने की मांग करते रहे हैं. हिंदू, सिख और बौद्ध धर्म के दलितों के अलावा दूसरे धर्मों के लोगों को एससी का दर्ज नहीं दिया गया है, जिसके चलते ही मुस्लिम और ईसाई समुदाय के लोग यह मांग करते रहे हैं. मुस्लिम और ईसाई संगठन इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचे हैं, जहां सरकार ने रिपोर्ट दी था कि इन दोनों समुदाय को एससी की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता है.

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