नई दिल्ली। मृत्यु (Death) के बाद की रस्में (Rituals) बहुत अहम होती हैं, यदि वे न निभाईं जाएं तो मृतक की आत्मा (Soul) भटकती रहती है. वहीं परिजनों की जिंदगी भी मुसीबतों से घिर जाती है, उन्हें अपने पूर्वजों का आशीर्वाद नहीं मिलता है. गरुड़ पुराण (Garuda Purana) में जीवन और मृत्यु के अलावा मौत के बाद आत्मा के सफर (Soul Journey) के बारे में भी बताया गया है. साथ ही मृत्यु के बाद किए जाने वाले संस्कारों, रस्मों के महत्व के बारे में भी बताया है. इसमें तेरहवीं संस्कार भी शामिल है, जिसमें 13 ब्राह्मणों को भोजन (Brahmin Bhoj) कराने की बात कही गई है.
गरुड़ पुराण के मुताबिक मौत के बाद मृतक की आत्मा 13 दिनों तक अपने ही घर में रहती है. 13 दिन तक आत्मा में इतनी शक्ति नहीं होती है कि वो यमलोक तक जा सके. लिहाजा 10 दिनों तक पिंडदान (Pind Daan) करके आत्मा को ताकत दी जाती है, ताकि वो यमलोक तक जा सके. इसके बाद अगले 3 दिनों में आत्मा का बेहद सूक्ष्म शरीर बनता है और फिर वो यमलोक की यात्रा पर निकलती है. इसीलिए मृत्यु के 13 दिन बाद तेरहवीं की जाती है, जब तक आत्मा अपनी यात्रा पर निकल चुकी होती है.
यदि पिंडदान न किया जाए तो यमदूत आत्मा को यमलोक तक लेकर जाते हैं. ऐसे में आत्मा की ये यात्रा बहुत कष्टदायी हो जाती है. इसी सफर को आसान बनाने के लिए कई तरह के संस्कार किए जाते हैं. वहीं आत्मा की शांति के लिए ब्राह्मण भोज कराया जाता है. चूंकि आत्मा 13 दिन तक अपने घर पर रहती है इसलिए 13 ब्राह्मणों को भोज कराया जाता है.
इतना ही नहीं 13 दिन तक मृतक के लिए भी थाली लगाई जाती है. ऐसा मृतक के सम्मान में किया जाता है क्योंकि मरने के बाद भी 13 दिन तक उसकी आत्मा घर में ही रहती है. लिहाजा घर के बाकी सदस्यों की तरह उसे भी भोजन परोसा जाता है.
(नोट: इस लेख में दी गई सूचनाएं सामान्य जानकारी और मान्यताओं पर आधारित हैं. अग्निबाण इनकी पुष्टि नहीं करता है.)
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