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गुजरातः बड़े चेहरों की कमी से जूझती रही कांग्रेस, न राहुल को समय मिला, न खड़गे जुटा पाए भीड़

नई दिल्ली। गुजरात (Gujarat Election Results) में भाजपा (BJP) की शानदार जीत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) और गृह मंत्री अमित शाह (Home Minister Amit Shah in) के चेहरों की अहम भूमिका तो रही ही है पार्टी ने चुनाव से पूर्व मुख्यमंत्री समेत सरकार एवं पार्टी के प्रमुख चेहरों में आमूलचूल बदलाव करके छवि को दुरुस्त किया था। लेकिन गुजरात में कांग्रेस चेहरों की कमी से जूझती (Congress struggles with lack of faces) रही।

पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी (Rahul Gandhi) की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ में व्यस्तता और प्रियंका गांधी (Priyanka Gandhi) का खुद को हिमाचल प्रदेश तक ही सीमित रखना कांग्रेस की रणनीति की कमजोर कड़ियां साबित हुईं। इतना ही नहीं, गुजरात में वह न तो वह किसी चेहरे को मुख्यमंत्री के उम्मीदवार के रूप में पेश कर पाई और न ही स्टार प्रचारकों के रूप में उसके पास पार्टी के असरदार राष्ट्रीय नेता उपलब्ध थे।


भाजपा कई सालों से लोकसभा चुनावों से लेकर विधानसभा चुनावों तक में पीएम मोदी के चेहरे को पेश करती है। नतीजे कारगर भी आते हैं। लेकिन बड़े राज्यों खासकर उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी की छवि भी एक बड़े जन नेता की बन चुकी है इसलिए पार्टी राज्य एवं राज्य के बाहर उनके चेहरे का इस्तेमाल करती है। इसके अलावा गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, जेपी नड्डा, युवा मंत्री अनुराग ठाकुर से लेकर तमाम राज्यों के मुख्यमंत्रियों को भी पार्टी का चेहरा बनाकर चुनाव अभियान में तैनात किया।

दूसरी तरफ गुजरात चुनाव में कांग्रेस के पास चेहरों की भारी कमी दिखी। पिछले चुनाव में कांग्रेस ने तीन स्थानीय चेहरों हार्दिक पटेल, जिग्नेश मेवाणी तथा अल्पेश ठाकोर पर दांव लगाया था। तीनों चेहरों ने लक्षित मतदाता वर्ग पर प्रभाव डाला। अल्पेश ठाकोर ने ओबीसी जिनकी आबादी 40 फीसदी है, मेवाणी ने दलितों जिनकी आबादी सात फीसदी है तथा हार्दिक पटेल ने पटेल समुदाय जो 14 फीसदी के करीब हैं, उन्हें प्रभावित किया। नतीजतन कांग्रेस का प्रदर्शन अच्छा रहा। उसने 77 सीटें जीतीं। लेकिन इस चुनाव से पहले पटेल और ठाकोर भाजपा में चले गए। और कोई नया चेहरा पेश करने में कांग्रेस विफल रही।

इसी प्रकार यदि राष्ट्रीय स्तर पर चेहरों की बात करें तो नये बने अध्यक्ष मल्लिकार्जन खड़गे ही कांग्रेस के एक ऐसे चेहरे के तौर पर सक्रिय दिखे जो हिन्दी बोलते हैं। लोकसभा और राज्यसभा में पार्टी नेता की भूमिका निभाने तथा अध्यक्ष बनने के बाद उनकी राष्ट्रीय छवि बन रही है लेकिन वह मतदाताओं को लुभाने वाली होगी, कहना मुश्किल है।

हिमाचल में कांग्रेस ने जीत हासिल की है लेकिन वहां भी चेहरों की कमी स्पष्ट तौर पर दिखी। मौटे तौर पर देखें तो पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह की पत्नी को आगे करके कांग्रेस ने यह चुनाव वीरभद्र के नाम पर ही लड़ा है।

दरअसल, कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व में दक्षिण भारतीय नेताओं नेता बढ़ रहे हैं क्योंकि पार्टी उन्हीं राज्यों में ज्यादा मजबूत है। उत्तर भारतीय नेताओं में राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को आगे जरूर किया गया लेकिन मुख्यत: वह चुनाव के प्रबंधन से जुड़े कार्यों में ही व्यस्त रहे।

ये दोनों नेता पर्दे के पीछे कार्य में तो दक्ष हैं लेकिन दूसरे राज्य में जाकर भीड़ जुटाने की क्षमता नहीं रखते। जब भीड़ जुटती है तो उसमें से कुछ वोट बैंक मे तब्दील होता है। उभरते चेहरों में राजस्थान के पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट चुनावों के दौरान मुख्यमंत्री गहलोत के हमलों से बचाव में ही व्यस्त रहे।

दूसरी तरफ गुजरात में तीसरे दल के रूप में उभरी आम आदमी पार्टी के पास अरविंद केजरीवाल के रूप में एक मजबूत और लुभावना चेहरा रहा। जो न सिर्फ भीड़ जुटा सकते हैं तथा भीड़ को वोट में बदलने की क्षमता भी कुछ हद तक रखते हैं। पार्टी ने स्थानीय स्तर पर भी मुख्यमंत्री का चेहरा इसुदान गढ़वी को पेश किया।

इसके अलावा पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान, सांसद राघव चड़ढा को भी उन्होंने स्टार प्रचारक के रूप में इस्तेमाल किया। पार्टी में उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया भी एक मजबूत चेहरे के रूप में उभरकर सामने आए हैं जिनकी जनता के बीच पहचान है। राजनीतिक जानकारों के अनुसार सोशल मीडिया के इस युग में चुनाव जीतने के लिए मजबूत चेहरे के साथ-साथ संसाधन एवं ठोस योजना बेहद जरूरी है।

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