विदेश

बांग्लादेश में हिन्‍दू महिलाएं नहीं ले सकती तलाक, पुरूषों को मिले है कई अधिकार, ऐसा क्‍यों?

ढाका। बांग्लादेश (Bangladesh) का अपना कानून (Law) है. इस कानून(Law) में हिंदुओं के लिए हिंदू कोड (Hindu Code) लागू है. लेकिन इस कानून में विवाह को लेकर कई ऐसी बातें हैं, जिसके खिलाफ वहां हिंदू (Hindu) कई बार विरोध की आवाज बुलंद कर चुके हैं लेकिन कुछ नहीं होता है. ये ऐसा कानून है, जो अब हिंदुओं (Hindus)के लिए भारत(India) में भी नहीं है. कुछ हद तक ये कानून(Law) हैरान करने वाला भी है.
भारत(India) में जहां विवाह के बाद हिंदू महिलाओं (Hindu Woman) को तमाम अधिकार दिए गए हैं, जिसमें संपत्ति, गुजारा भत्ता, तलाक जैसे अधिकार शामिल हैं, वहीं बांग्लादेश में हिंदू पर्सनल लॉ (Hindu personal law) लागू है और वो सारे कानून जो हिंदू कोड के तहत अंग्रेजों के शासनकाल में लागू थे, इसमें महिलाओं को काफी लाचार स्थिति में रहना होता है.
बांग्लादेश में करीब 88 फीसदी आबादी मुस्लिमों की है जबकि 10 फीसदी हिंदू और 02 फीसदी ईसाई, बौद्ध और अन्य धर्म के लोग. 1971 में जब बांग्लादेश एक देश के तौर पर हरकत में आया और उसने अपना संविधान लागू किया तो हिंदू के पारिवारिक मामलों के लिए उन्हीं पर्सनल कानूनों पर चलने का फैसला किया, जो तमाम एक्ट के तहत ब्रिटिश दौर में लागू होते थे.



हिंदू पर्सनल लॉ में दयाबाग संस्था के तहत प्रावधान
बांग्लादेश में हिंदू पर्सनल लॉ को दयाबाग संस्था के हिंदू प्रावधानों के तहत रखा गया, जिसकी मान्यता पूर्वात्तर भारत में आजादी से पहले काफी ज्यादा रही है. इन कानून के तहत बांग्लादेश में रहने वाला हिंदू पुरुष कितने भी विवाह कर सकता है लेकिन विवाह के बाद पत्नी के पास संपत्ति से लेकर तलाक का अधिकार नहीं होता.
बांग्लादेश में हिंदू मैरिज एक्ट के खिलाफ वहां की महिला अधिकार संस्थाओं ने कई बार आवाज उठाई है. इस कानून में हिंदू पुरुषों को तो कई विवाह की आजादी है लेकिन हिंदू स्त्री तलाक भी नहीं ले सकती.

क्यों तलाक नहीं ले सकतीं बांग्लादेश में हिंदू महिलाएं
चूंकि हिंदू मान्यताओं और संहिताओं में विवाह के बाद पुरुष और स्त्री के बंधन को पवित्र माना गया है तो ये भी माना गया है कि वो अलग नहीं हो सकते हैं, ये बात अक्षरशः बांग्लादेश में लागू होती है.

लगातार होती है इस कानून को बनाने की मांग
हालांकि हिंदू पर्सनल के इन कानूनों का बांग्लादेश में भी काफी विरोध होता रहा है. कई संस्थाएं लगातार इसके खिलाफ आवाज उठाती रही हैं लेकिन बांग्लादेश सरकार ने इसमें कभी बदलाव नहीं किया. इसे लेकर कई बार सर्वे भी होते रहे हैं.
बांग्लादेश में एक हालिया सर्वे के अनुसार 26.7 फीसदी पुरुष और 29.2 फीसदी महिलाएं इस पर्सनल लॉ के विरोध में हैं. वो चाहते हैं कि महिलाओं को तलाक का अधिकार दिया जाए लेकिन सरकार इससे साफतौर पर ये कहकर इनकार करती रही है, क्योंकि इसका प्रावधान हिंदू सिविल लॉ में नहीं है.

भारत में हिंदू कोड को आजादी के बाद बदला था नेहरू सरकार ने
भारत में भी यही हिंदू संहिता अंग्रेजी राज तक लागू थी. नेहरू सरकार ने जब संविधान के तहत इसे बदलकर महिलाओं को पारिवारिक औऱ वैवाहिक मामलों में अधिकार संपन्न किया तो इसका काफी विरोध हुआ था. बड़े पैमाने पर तब हिंदू संतों औऱ संस्थाओं ने देशभर में इसके खिलाफ आक्रामक प्रदर्शन किये थे लेकिन तत्कालीन सरकार ने इस पर डटे रहने का फैसला किया था.

बांग्लादेश में हिंदू महिलाओं की स्थिति खराब
वैसे बांग्लादेश में इन कानूनों के चलते हिंदू पुरुष कई शादियां करते रहे हैं तो महिलाओं की हालत पर इसका बुरा असर पड़ा है. कुछ हद तक हिंदू विवाह को रजिस्ट्रेशन के दायरे में लाने के लिए बांग्लादेश संसद ने 2012 में एक कानून बनाया था लेकिन उसमें महिलाओं को कोई अधिकार नहीं दिए गए हैं, बस स्वैच्छा से शादियों को सरकारी कार्यालय में रजिस्टर्ड करने की बात है.

तलाक नहीं ले सकतीं लेकिन अलग रह सकती हैं
बांग्लादेश में हिंदू महिलाएं किसी भी हालत में पति से तलाक नहीं ले सकतीं लेकिन अगर वो चाहें तो अदालत में अलग रहने और हर्जाना भत्ता देने का मुकदमा जरूर कायम कर सकती हैं लेकिन ऐसे सारे मुकदमों में उन्हें वाजिब कारण बताने और उसे साबित करने में बहुत मुश्किलें होती हैं.

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