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Holi 2025: कैसे हुई थी होली की शुरुआत, जानें इसका इतिहास

  • March 13, 2025

    नई दिल्ली: देशभर में कल हिन्दुओं के प्रमुख त्योहारों में शुमार होली (Holi 2025) का पर्व मनाया जाएगा. रंगों का त्योहार होली बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है. देश के कई हिस्सों में होली के त्योहार की शुरुआत बसंत ऋतु के आगमन के साथ ही हो जाती है. होली केवल एक त्योहार ही नहीं, बल्कि सामाजिक मेलजोल और सभी को अपने समान समझने का प्रतीक भी है. इस दिन लोग आपसी भेदभाव भूलकर एक-दूसरे को रंग लगाते हैं और प्रेमपूर्वक गले मिलते हैं. कल पूरे देश में होली बड़े उत्साह के साथ मनाई जाएगी, जिसमें लोग अबीर-गुलाल उड़ाकर इस रंग-बिरंगे त्योहार का आनंद लेते हैं.

    रंगों से खेली जाने वाली होली की परंपरा का संबंध भगवान कृष्ण से जोड़ा जाता है. माना जाता है कि भगवान कृष्ण को अपने गहरे रंग के कारण संदेह था कि राधा और गोपियां उनसे प्रेम करेंगी या नहीं. माता यशोदा ने कृष्ण को सुझाव दिया कि वे राधा और उनकी सखियों पर रंग डाल सकते हैं. यही परंपरा आगे चलकर रंगों वाली होली का स्वरूप बन गई. वृंदावन, मथुरा, बरसाना और नंदगांव में आज भी इस परंपरा को बड़े हर्षोल्लास के साथ निभाया जाता है.


    होली का त्योहार दो दिनों तक मनाया जाता है. पहले दिन होलिका दहन होता है, जिसमें लोग लकड़ियों और उपलों का ढेर जलाते हैं। होलिका दहन बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है. दूसरे दिन रंगों की होली खेली जाती है, जिसमें लोग एक-दूसरे को रंग और गुलाल लगाते हैं। होली के दिन लोग एक-दूसरे के घर जाकर मिलते हैं और मिठाइयां बांटते हैं. होली का त्योहार एकता और भाईचारे का प्रतीक है. यह त्योहार हमें सिखाता है कि हमें हमेशा बुराई पर अच्छाई की जीत का समर्थन करना चाहिए.

    होली से जुड़ी सबसे प्रसिद्ध कथा भक्त प्रह्लाद और हिरण्यकश्यप की है. हिरण्यकशिपु एक अहंकारी राजा था, जिसने स्वयं को भगवान मान लिया था और चाहता था कि हर कोई उसकी पूजा करे. लेकिन उसका पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का अनन्य भक्त था. हिरण्यकशिपु ने उसे मारने की कई योजनाएं बनाईं, लेकिन हर बार प्रहलाद बच गया. आखिर में हिरण्यकशिपु ने अपनी बहन होलिका को प्रह्लाद को मारने का आदेश दिया. होलिका के पास एक ऐसा वस्त्र था जिससे वह आग में नहीं जल सकती थी. वह प्रह्लाद को लेकर अग्नि में बैठ गई, लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से वह स्वयं जलकर राख हो गई और प्रहलाद सुरक्षित बच गया. इसी घटना की याद में होली का पर्व मनाया जाता है, और रंगों वाली होली से एक दिन पहले होलिका दहन किया जाता है.

    होली भारत के सबसे प्रमुख और हर्षोल्लास से भरे त्योहारों में से एक है, जिसे रंगों का त्योहार भी कहा जाता है. यह न केवल धार्मिक और पौराणिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि सामाजिक, सांस्कृतिक और वैज्ञानिक रूप से भी इसका विशेष महत्व है. होली मुख्य रूप से बुराई पर अच्छाई की विजय, आपसी प्रेम, मेल-जोल और उत्सव का प्रतीक है. इस दिन सब लोग मिलकर रंगों से खेलकर लोग न केवल खुशियां बांटते हैं, बल्कि आपसी बैर-भाव भी भुला देते हैं.

    होली का सबसे सुंदर पहलू यह है कि इसमें जाति, धर्म, वर्ग और सामाजिक स्थिति का कोई भेदभाव नहीं होता. हर कोई एक-दूसरे को रंग लगाता है और “बुरा न मानो, होली है” कहते हुए हंसी-खुशी त्योहार मनाता है. होली के पर्व से जाति, धर्म, वर्ग, अमीरी-गरीबी जैसी दीवारें टूट जाती हैं और हर कोई समान रूप से इस त्योहार का आनंद लेते हैं. इसलिए होली सामाजिक बंधनों को मजबूत करने का भी पर्व भी माना जाता है.

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