कोई भी विकल्प मंजूर कर लें, सभी जगह होगा विरोध – दो सालों की पीड़ा व्यापारियों और नागरिकों को भोगना ही पड़ेगी, ताकि 25-50 सालों तक मिलता रहेगा सुगम यातायात का लाभ
इंदौर। मेट्रो (Metro) का पहला चरण ही इंदौर (Indore) में विवादित किया जा रहा है। देश के बड़े शहरों में मेट्रो प्रोजेक्ट (Metro project) सफलतापूर्वक अपनाए जा रहे हैं, तो दूसरी तरफ इंदौर में आठ बार की सांसद और लोकसभा की पूर्व अध्यक्ष से लेकर तमाम व्यापारी, नागरिक और जनप्रतिनिधि विरोध का झंडा लिए नजर आ रहे हैं। शहर के मध्य क्षेत्र से मेट्रो किस तरह गुजरेगी इसके कई विकल्प सुझाए जा रहे हैं। मगर लाख टके का सवाल यह है कि कोई-सा भी विकल्प अपना लिया जाए, सभी में विरोध रहेगा। दो सालों तक व्यापारियों और नागरिकों को पीड़ा भोगने का फैसला करना होगा, तब ही 25-50 सालों तक सुगम यातायात का लाभ मेट्रो के जरिए ले सकेंगे।
अव्वल तो इंदौर में फिलहाल मेट्रो प्रोजेक्ट (Metro project) की आवश्यकता ही नहीं थी और तमाम जानकारों-विशेषज्ञों के मुताबिक इतने यात्री मिलेंगे भी नहीं और कई वर्षों तक घाटे में मेट्रो चलानी पड़ेगी। इसकी बजाय सडक़ों, ओवरब्रिजों का जाल बिछाते हुए सिटी बसों की संख्या बढ़ाई जाना थी। मगर इन सब बातों का अब इसलिए कोई मतलब नहीं है क्योंकि मेट्रो प्रोजेक्ट जोर-शोर से अमल में आ चुका है। एयरपोर्ट से लेकर सुपर कॉरिडोर, एमआर-10, विजय नगर, रेडिसन चौराहा से लेकर रोबोट चौराहा तक 17 किलोमीटर के हिस्से में काफी काम हो गया है। अब सारी मशक्कत मध्य क्षेत्र को लेकर चल रही है। मेट्रो प्रोजेक्ट के एमडी मनीष सिंह से लेकर सभी अधिकारी या जनप्रतिनिधि यह चाहते हैं कि कम से कम तोडफ़ोड़ हो और मेट्रो कॉरिडोर बन सके। मध्य क्षेत्र में चूंकि सडक़ों की चौड़ाई सुपर कॉरिडोर की तरह चौड़ी नहीं है, लिहाजा एलिवेटेड कॉरिडोर संभव नहीं है। एमजी रोड पर अगर एलिवेटेड कॉरिडोर बना दिया तो सडक़ और संकरी दूसरे यातायात के लिए हो जाएगी। जो फजीते एबी रोड पर बीआरटीएस कॉरिडोर के कारण हो रहे हैं वह मध्य क्षेत्र की सडक़ों पर हो जाएंगे। लिहाजा मेट्रो प्रोजेक्ट मध्य क्षेत्र में अंडरग्राउंड ही होना चाहिए। अभी रोबोट से पलासिया तक मेट्रो प्रोजेक्ट के टेंडर की प्रक्रिया शुरू कराई गई है। मगर असल परेशानी पलासिया से रीगल, एमजी रोड, राजवाड़ा होते हुए बड़ा गणपति तक की है, जिसके लिए अलग-अलग विकल्प सुझाए जा रहे हैं। एक विकल्प पलासिया से रेसकोर्स, बाल विनय मंदिर, सुभाष मार्ग से बड़ा गणपति, तो एक अन्य सियागंज से रेलवे स्टेशन, डीआईजी ऑफिस से होते हुए हाईकोर्ट और उधर बड़ा गणपति से मल्हारगंज और जवाहर मार्ग से संजय सेतु का बताया जा रहा है। असल मुद्दा यह है कि कोई भी विकल्प चुन लिया जाए, वहां के व्यापारी, जनप्रतिनिधि या अन्य विरोध करेंगे ही। लिहाजा दो साल की प्रसव पीड़ा भोगना ही पड़ेगी, चाहे कोई भी विकल्प आजमाया जाए और उसके बाद फिर मेट्रो शुरू होने पर 25-50 सालों तक सुगम यातायात का लाभ मिलेगा और जिन घने क्षेत्रों में लोग अभी जा नहीं पाते वहां का व्यापार कई गुना बढ़ जाएगा। नए इंदौर में रहने वाले एमजी रोड, क्लॉथ मार्केट, राजवाड़ा तक शॉपिंग करने आसानी से मेट्रो के जरिए आ जा सकेंगे, तो अभी संभव नहीं होता है।
सफल सफर के लिए 50 हजार यात्री चाहिए हर घंटे में मेट्रो को
अभी प्रेस क्लब में पब्लिक ट्रांसपोर्ट विशेषज्ञ आशीष वर्मा ने दो टूक कहा कि हर घंटे 50 हजार यात्रियों की जरूरत इंदौर मेट्रो को पड़ेगी। अब सवाल यह है कि जब तक व्यस्त और घने क्षेट्रों से मेट्रो नहीं गुजरेगी, तब तक अधिक यात्री कैसे मिलेंगे? सुपर कॉरिडोर या बायपास सहित बाहरी क्षेत्रों में ही अगर मेट्रो चलाई तो यात्रियों का ही टोटा रहेगा। मेट्रो को सुपर कॉरिडोर से ज्यादा यात्री विजय नगर, पलासिया, राजवाड़ा, बड़ा गणपति क्षेत्र से ही मिलेंगे। अन्यथा बाहरी क्षेत्रों में मेट्रो खाली चलेगी।
इंदौर-भोपाल को समय से पहले मिल गया मेट्रो प्रोजेक्ट
अभी केन्द्र सरकार ने मेट्रो प्रोजेक्ट के लिए जो गाइडलाइन बनाई है उसमें एक करोड़ से अधिक की आबादी वाले बड़े शहरों को ही मेट्रो प्रोजेक्ट मिल रहे हैं। मगर ये इंदौर-भोपाल का सौभाग्य है कि उसे समय से पहले मेट्रो प्रोजेक्ट मिल गया है। जबकि इन दोनों शहरों की आबादी अभी 50 लाख पार भी नहीं हुई है और मेट्रो प्रोजेक्ट जब तक पूरी क्षमता से अमल में नहीं आएगा तब तक लोग अपने निजी वाहनों का इस्तेमाल नहीं छोड़ सकेंगे। अभी पब्लिक ट्रांसपोर्ट बेहद दयनीय स्थिति में है।
सडक़ों और पुलों के निर्माण से भी होता है यातायात अवरुद्ध
अभी शहरभर में सडक़ों के चौड़ीकरण से लेकर ओवरब्रिजों के निर्माण की प्रक्रिया भी चल रही है। इन विकास कार्यों के चलते भी साल-दो साल और कई क्षेत्रों में अधिक वर्षों तक यातायात इसी कारण अवरुद्ध रहता है और सडक़ खुदाई या ओवरब्रिज निर्माण के चलते भी व्यापारी-नागरिक विरोध प्रदर्शन करते हैं, तो उसी तरह मेट्रो का भी विरोध किया जा रहा है। जैसे अपोलो टॉवर के व्यापारी विरोध में कूद गए। यही स्थिति हर विकास कार्य के मामले में रहती है।
चांदनी चौक और कनाट पैलेस जैसे सघन क्षेत्रों में दौड़ रही है दिल्ली मेट्रो
देशभर में दिल्ली मेट्रो को सबसे आदर्श माना गया और उसके बाद ही अन्य शहरों में मेट्रो प्रोजेक्ट शुरू हुए। हालांकि अभी भी दिल्ली मेट्रो घाटे में चल रही है और उतने यात्री नहीं मिल रहे। मगर दिल्ली में भी जो अत्यंत सघन, पुराने और व्यस्त क्षेत्र हैं, जिनमें चांदी चौक, कनाट पैलेस या सरोजनी मार्केठ जैसे इलाके, जहां मेट्रो आने के बाद व्यापार कई गुना अधिक बढ़ गया है, वहां के लोगों ने भी दो-चार साल यह प्रसव पीड़ा भोगी और अब मेट्रो का आनंद ले रहे हैं।
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