जम्मू। जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट (Jammu Kashmir High Court) ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि अगर एक आरक्षित वर्ग (Reserved Category) की महिला (Woman) गैर आरक्षित वर्ग में शादी करती है, तब भी वह आरक्षण की हकदार है।
अनुसूचित जनजाति वर्ग की पादरी श्रेणी की एक महिला के गैर पादरी वर्ग में शादी करने के बाद उसे आरक्षण का लाभ न मिलने पर हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। शनिवार को इसकी सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने यह फैसला सुनाया।
हाईकोर्ट ने सुनाया ये फैसला
गत दिनों जम्मू-कश्मीर व लद्दाख हाईकोर्ट ने कश्मीर घाटी से विस्थापित महिलाओं के आरक्षण को लेकर भी इसी तरह का फैसला सुनाते हुए कहा था कि अगर एक आरक्षित वर्ग की महिला किसी गैर आरक्षित वर्ग के पुरुष के साथी शादी करती है तो उसके आरक्षण का अधिकार नहीं छीना जा सकता।
हाईकोर्ट ने मौजूदा मामले में पाया कि गृह मंत्रालय की ओर से जारी स्पष्टीकरण के अनुसार यह स्पष्ट है कि अगर कोई अनुसूचित जाति या जनजाति की महिला अपनी जाति से बाहर भी विवाह करती है, तो उसका आरक्षित स्टेटस छीना नहीं जा सकता। बता दें कि पादरी श्रेणी की एसटी महिला ने गैर पादरी वर्ग में विवाह किया था। बाद में उसने आरक्षित श्रेणी के तहत आवेदन किया तो उसे आरक्षण देने से मना कर दिया गया था।
क्या है पूरा मामला?
याचिकाकर्ता श्वेता रानी के मुताबिक वह पादरी श्रेणी से संबंधित है, लेकिन उसने अपने समुदाय के बाहर विवाह किया और जब उसने आरक्षित श्रेणी के तहत आवेदन किया तो उसे आरक्षण देने से इंकार कर दिया गया। श्वेता देवी ने किश्तवाड़ के एडिशनल डिप्टी कमिश्नर (एडीसी) के इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी।
एडीसी ने इस पर कोई भी फैसला लेने में खुद को असमर्थ करार देते हुए कहा था कि यह कानूनी मामला है। इस पर श्वेता देवी ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की। श्वेता देवी ने कहा कि उसने सिविल सर्विसेस एग्जामिनेशन के लिए आवेदन करना है, इसलिए इस मामले में जल्द फैसला लिया जाए। हाईकोर्ट ने पूरे मामले में गौर करने के बाद स्पष्ट किया कि श्वेता देवी आरक्षण की हकदार है, लिहाजा उसे आरक्षण का लाभ दिया जाए।
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