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ब्रज के फालैन गांव में होली की जलती आग के बीच से सकुशल निकल जाता है पुजारी

  • March 13, 2025


    नई दिल्ली । ब्रज के फालैन गांव में (In Braj’s Falain village) होली की जलती आग के बीच से (From the Burning Fire of Holi) पुजारी सकुशल निकल जाता है (Priest comes out Safely) ।

    होली का पर्व भारत में रंगों, उमंग और उत्साह का प्रतीक है, लेकिन ब्रज के फालैन गांव में होली का त्योहार एक अनोखे चमत्कार के साथ मनाया जाता है। करीब 10 हजार की आबादी वाला यह गांव होली के लिए प्रसिद्ध है, जहां इस त्योहार पर घर और दीवारें शादी और दीपावली की तरह सजाए जाते हैं। यहां की सबसे खास बात है होलिका दहन के दौरान पुजारी का जलती आग के बीच से सकुशल निकल जाना, जो लोगों के लिए आस्था और उत्साह का सबसे बड़ा कारण है।

    प्राचीन कथा के अनुसार, हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र प्रह्लाद को भगवान विष्णु की भक्ति के कारण मारने की कोशिश की थी। उसकी बहन होलिका, जिसे आग से न जलने का वरदान था, प्रह्लाद को लेकर अग्नि में बैठी, लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद बच गए और होलिका भस्म हो गई। इसी घटना की याद में होलिका दहन मनाया जाता है।
    फालैन गांव के बाहर स्थित प्रह्लाद मंदिर यहां होलिका दहन के आयोजन को बहुत खास बनाते हैं। होलिका दहन के दिन फालैन में गोबर के कंडों (उपलों) का एक विशाल ढेर बनाया जाता है, जिसे “उपले का पहाड़” भी कह सकते हैं। इस ढेर में आग लगाई जाती है, जो रात भर धधकती रहती है। होलिका दहन के बाद पुजारी जलती आग के बीच से गुजरता है और उसे कुछ भी नहीं होता। पुजारी का कहना है कि इस दौरान उन्हें ऐसा लगता है जैसे स्वयं प्रह्लाद जी उनके साथ खड़े हों।

    प्रह्लाद मंदिर के पुजारी के परिवार कई सौ सालों से चली आ रही इस परंपरा का हिस्सा हैं। वे होलिका दहन से पहले 40-45 दिनों तक कठोर ब्रह्मचर्य व्रत और नियमों का पालन करते हैं। उनकी आस्था और तप के बाद यह माना जाता है कि अब अग्निदेव उनके शरीर को स्पर्श नहीं कर सकते हैं। होलिका दहन की तड़के सुबह वे कुंड में स्नान करते हैं और इस दौरान उनके शरीर पर सिर्फ एक पीला गमछा होता है। फिर वह उपले के पहाड़ के बीच धधकती आग के बीच से निकल जाते हैं। आश्चर्यजनक रूप से एक चिंगारी भी उन्हें छू नहीं पाती।

    मंदिर के पास स्थित कुंड इस परंपरा का महत्वपूर्ण हिस्सा है। ऐसा माना जाता है कि इस कुंड से प्रह्लाद जी की मूर्ति और माला प्रकट हुई थी। होलिका दहन के दिन पुजारी इस माला को पहनकर आग के बीच से गुजरता है और सकुशल बाहर आ जाता है। यह मंदिर और कुंड गांव वालों के लिए श्रद्धा का केंद्र है। इस तरह फालैन में होली सिर्फ रंगों का त्योहार नहीं, बल्कि आस्था और चमत्कार का संगम है। प्रह्लाद मंदिर और पुजारी की यह परंपरा इसे देशभर में अनोखा बनाती है। गांव वाले इस चमत्कार को देखने के लिए उत्साहित रहते हैं और इसे प्रह्लाद की भक्ति और भगवान की कृपा का प्रतीक मानते हैं। यहां की होली न केवल रंगों से सराबोर होती है, बल्कि आस्था की उस अग्नि से भी प्रकाशित होती है, जो भक्त प्रह्लाद की भक्ति की कहानी को जीवित रखती है।

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