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फेक न्यूज के दौर में न्यूज एजेंसी का दायित्व बढ़ गया : प्रो. केजी सुरेश

नई दिल्‍ली। फेक न्यूज के दौर में न्यूज एजेंसी का दायित्व बढ़ गया है। डिजिटल प्लेटफार्म आने के बाद ज्यादातर संस्‍थाएं सिर्फ डेस्कटॉप पत्रकारिता करती हैं । ऐसे में उनकी समाचारों के लिए निर्भरता एजेंसी पर ही है। ये हमारे लिए स्वर्णिम अवसर है जब हम मात्र राजनीतिक, आर्थ‍िक पक्ष को ही नहीं बल्कि समाज से जुड़े, संस्कृति से जुड़े, लोक कलाओं से जुड़े समाचार प्रदान करें। उक्‍त उद्गार ”न्यूज एजेंसी की पत्रकारिता : मीडिया और समाज” विषय पर आयोजित परिसंवाद में मखनलाल चतुर्वेदी राष्‍ट्रीय पत्रकारिता विश्‍वविद्यालय के कुलपति प्रो. केजी सुरेश ने व्‍यक्‍त किए।

भारत में 300 से अधिक समाचार चैनल्स हैं एजेंसी पर निर्भर
हिन्दुस्थान समाचार के संरक्षक रहे एवं इस संवाद एजेंसी को पुनर्जीवन देनेवाले श्रीकांत जोशी के पुण्यस्मरण आभासी कार्यक्रम में प्रो. सुरेश ने कहा कि आज कंटेंट की बहुत मांग है। संवाद समिति के पास सबसे ज्यादा कंटेंट है। हमारे प्रतिनिधि गांव-गांव में फैले हुए हैं। समाचार एजेंसी की प्रासंगिकता के समाप्त होने की बात जो लोग करते हैं, मैं उनसे सहमत नहीं हूं। फेक न्यूज और फेक नरेटिव्स के दौर में एजेंसी की जिम्मेदारी बढ़ गयी है। उन्होंने कहा कि आज भारत में 300 से अधिक समाचार चैनल्स हैं, उनमें अधिक संख्या भारतीय भाषाओं की है। उनकी खबरों की भूख समाचार एजेंसी पूरा कर सकती है।


प्रो. सुरेश ने कहा कि सकारात्मक और सार्थक खबरों के जरिये अपनी सांस्कृतिक एवं जनजातीय विविधता से युवा पीढ़ी को परिचित करना हमारा दायित्व है। संवाद समिति का यह दायित्व है कि वो निष्पक्ष समाचारों को प्रेषित करे। हमें ऐसे समाचार को प्रस्तुत करना चाहिए जो राष्ट्रीय एकता को बढ़ाए। समाचार में सकारात्मकता भी होना चाहिए। लोग नकारात्मक समाचारों से तंग आ गए हैं। समस्या का समाधान समाज में ही है, हमें केवल समाज के आंतरिक ऊर्जा को जगाना है, ताकि वो अपना समाधान ढूंढे। मैं समझता हूं आने वाले दिनों में संवाद समिति की प्रासंगिकता और सार्थकता और बढ़ेगी।

श्रीकांतजी के व्यक्तिगत आकर्षण के कारण खड़ी हो सकी बहुभाषी न्‍यूज एजेंसी
प्रो. सुरेश ने श्रीकांत जोशी को याद करते हुए कहा कि उनकी कोशिश थी कि जिन समाचारों को तथाकथित  राष्ट्रीय मीडिया में जगह नहीं मिलती है, उन्हें भी पाठकों तक पहुंचाया जाए। समाज में एक सकारात्मक दृष्टिकोण प्रस्तुत करना उन्होंने अपनी जिम्मेदारी समझी। शुरू-शुरू में कुछ लोग  ये सोच रहे थे कि शायद हिन्दुस्थान समाचार बदलते प्रौद्योगिकी युग में जब संवाद समितियों की सार्थकता खत्म होती जा रही है स्वयं को संभाल नहीं पायेगा। लेकिन उनके कुशल मार्गदर्शन में सभी पदाधिकारी निस्वार्थ भाव से जुड़े और उसे एक यज्ञ मानकर अपनी आहुति देते रहे। ऐसा केवल श्रीकांतजी के व्यक्तिगत आकर्षण के कारण ही संभव हो पाया।

भारत की पत्रकारिता दुनियाभर से अनोखी : रामबहादुर राय
इस मौके पर इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के अध्यक्ष एवं हिन्दुस्थान समाचार के समूह संपादक रामबहादुर राय ने कहा कि भारत की पत्रकारिता दुनियाभर से अनोखी है। संविधान में भारतीय नागरिकों को अभिव्यक्ति की जो स्वतंत्रता प्राप्त है, वही स्वतंत्रता पत्रकारिता को भी है। यही भारत की पत्रकारिता का अनोखापन है। उन्होंने कहा कि हमारी पत्रकारिता से यदि नागरिक सशक्त होता है और देश आगे बढ़ता है, तो वही हमारी सार्थकता होगी।

गोष्ठी में रामबहादुर राय ने प्रो. ब्रजकिशोर कोठियाला की पुस्तक भारतीय जीवन-दृष्टि के एक अध्याय का पाठ कर बताया कि श्रीकांत जोशी स्वयं हिन्दुस्थान समाचार के बारे में कैसी कल्पना किया करते थे। वे अल्पकाल के लिए हिन्दुस्थान समाचार में आये और अनन्त काल के लिए जुड़ गये। उन्होंने हिन्दुस्थान समाचार को नवजीवन दिया और हम उनके उत्तराधिकारी हैं।

वैचारिक प्रतिबद्धता को स्पष्टता के साथ जाहिर किया जाना चाहिये : लक्ष्‍मीनारायण भाला
विशेष आमंत्रण पर गोष्ठी में शामिल हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक लक्ष्मीनारायण भाला ने श्रीकांत जोशी की दृष्टि से अवगत कराते हुए कहा कि वे हिन्दुस्थान समाचार को बहुभाषी के साथ बहुआयामी न्यूज एजेंसी भी बनाना चाहते थे। वे इस बात के प्रबल पक्षधर थे कि समाचारों में निरपेक्ष रहेंगे, लेकिन स्तंभ लेखन में विचारों को महत्व दिया जायगा। भाला ने कहा कि श्रीकांतजी सकारात्मक संवाद में विश्वास करते थे। साथ ही वे यह मानते थे कि वैचारिक प्रतिबद्धता को स्पष्टता के साथ जाहिर किया जाना चाहिये।

भारत की 12 भाषाओं में है न्‍यूज एजेंसी का कार्य
इस अवसर पर आरोग्य भारती के राष्ट्रीय संगठन मंत्री डॉ. अशोक वार्ष्णेय ने श्रीकांत जोशी से जुड़े अपने संस्मरण सुनाये। उन्होंने कहा कि श्रीकांतजी ने हिन्दुस्थान समाचार की पुनर्स्थापना के लिए चहुमुखी प्रयास किये और नयी तकनीक को भी आत्मसात किया। यह उनका ही समर्पण एवं इस न्‍यूज एजेंसी को खड़ा कर देने का संकल्‍प ही था जो देश भर में अलग-अलग राज्‍यों में ब्‍यूरो कार्यालय खुल सके। हिन्‍दी सहि‍त भारत की 12 भाषाओं में आज यह संवाद समिति समाचार देने का कार्य कर रही है। इसके साथ ही डॉ. वार्ष्णेय ने अपने जीवन के वह संस्‍मरण भी सुनाए जोकि सीधे उनके और श्रीकांत जोशी के जीवन से जुड़े हुए थे।

 

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