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दशक के अंत तक ब्रिटेन को पीछे छोड़ दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा भारत

नई दिल्ली। भारत इस दशक के अंत तक ब्रिटेन को पीछे छोड़ दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। इसलिए दोनों देशों को एक साथ काम करने की जरूरत है। ब्रिटिश उच्चायुक्त अलेक्स एलिस ने कहा कि दोनों अर्थव्यवस्थाएं करीब एक ही आकार की हैं। लेकिन, भारत तेजी से बढ़ रहा है और ब्रिटेन को पीछे छोड़ देगा।

भारत-यूके के एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि यूके ने यूरोपीय संघ को पीछे छोड़ दिया है। इसलिए यह एक अवसर है कि हम हकीकत में भारत के साथ अच्छा काम कर सकते हैं क्योंकि हमारी राजनीतिक इच्छाशक्ति है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और लिज ट्रस ने एक हफ्ते पहले बात की थी और यह बहुत अच्छी हुई थी। इस साल दिवाली तक दोनों के देशों के बीच मुफ्त कारोबार करार (FTA) भी होने की उम्मीद है। इससे अगले 25 वर्षों में अर्थव्यवस्था बढ़ने के साथ रोजगार भी बढ़ेगा।

कारोबार दोगुना होने की उम्मीद
दोनों देशों के बीच कारोबार 2030 तक दोगुना होने की उम्मीद है। रिपोर्ट के अनुसार, भारत और ब्रिटेन के बीच अधिक आर्थिक जुड़ाव, वैश्विक आपूर्ति शृंखला के विविधीकरण और कारोबार करने में मदद करता है। भारत में ब्रिटेन की 618 कंपनियां 4.66 लाख रोजगार देती हैं। इनका कारोबार 3,634.9 अरब रुपये है।


एडीबी ने विकास दर में की कटौती
एशियाई डेवलपमेंट बैंक (ADB) ने 2022-23 के लिए भारत के विकास दर को घटाकर 7 फीसदी कर दिया है। पहले 7.2 फीसदी रहने का अनुमान जताया था। बैंक ने कहा कि महंगाई और ब्याज दरें बढ़ने से अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर पर असर पड़ेगा।

  • एसएंडपी ने कहा, भले ही अमेरिका और यूरो क्षेत्र मंदी की ओर बढ़ रहे हैं, लेकिन भारतीय अर्थव्यवस्था पर इसका असर नहीं होगा।

10 साल के निचले स्तर पर पहुंचेगा एनपीए
क्रिसिल ने कहा, बैंकों का बुरा फंसा कर्ज (NPA) चालू वित्त वर्ष में 0.90% गिरकर 5% तक जा सकता है। मार्च, 2024 तक यह घटकर 4% तक जा सकता है, जो एक दशक का निचला स्तर होगा। 26 अगस्त को समाप्त हफ्ते में बैंकों का कर्ज 15.5%, जबकि जमा 9.5% बढ़ा है। उधारी की मांग व चलन में करेंसी नोट्स के बढ़ने से बैंकिंग सिस्टम में दूसरी छमाही में भी तरलता की कमी रहेगी। मई, 2019 के बाद पहली बार मंगलवार को तरलता में 218 अरब रुपये की कमी देखी गई। त्योहारी सीजन में बैंकों से ज्यादा पैसा निकलेगा। अप्रैल में 8 लाख करोड़ रुपये बैंकों के पास थे।

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