नई दिल्ली। पेट्रोल, डीजल(petrol, diesel), सीएनजी की बढ़ती कीमतों के बीच महंगाई ने आपके नाश्ते की टेबल को भी झकझोरना शुरू कर दिया है। बीते तीन माह में ही एक परिवार का सुबह का खर्च करीब 100 रुपये बढ़ गया है।
दूध, ब्रेड, बिस्कुट समेत नाश्ते के टेबल पर सजने वाली चीजों का खर्च 70 रुपये से ज्यादा बढ़ गया है। टूथपेस्ट, साबुन, चीनी समेत दूसरी चीजों को मिला देने से आंकड़ा 100 रुपये से ऊपर बैठ रहा है। इसका सीधा असर उपभोक्ताओं पर पड़ा है। महंगाई के असर को सीमित करने के लिए कई लोगों ने इसकी तरकीब मात्रा और गुणवत्ता (quality) से समझौता करके निकाला है। विशेषज्ञ बताते हैं कि बढ़ती महंगाई(rising inflation) का असर सेहत, शिक्षा समेत जिंदगी के हर पहलू पर पड़ रहा है।
मात्रा के साथ गुणवत्ता से भी समझौता
हर दिन बढ़ती महंगाई ने उपभोक्ता को मात्रा के साथ गुणवत्ता के स्तर पर भी समझौता करने का मजबूर किया है। पिछले करीब दस सालों से गोल मार्केट में किराने की दुकान चला रहे संदीप कुमार बताते हैं कि पहले जो दो लीटर दूध लेकर जाते थे, अब एक लीटर तक कर दी है। वहीं, फुल क्रीम की जगह टोंड व डबल टोंड की मांग भी बढ़ी है। यही चीज ब्रेड, मक्खन, जूस आदि चीजों के साथ दिखती है।
बावजूद इस तरकीब को आजमाने के, लोग महंगाई की मार झेल नहीं पा रहे हैं। दुकान पर ही खड़े भौमिक बनर्जी भी बीच में बोल पड़े, एक निजी कंपनी में काम करता हूं। तीन सालों से वेतन बढ़ा नहीं। जबकि महंगाई आसमान छू रही है। नतीजतन कई तरह से समझौता करना पड़ रहा है। बच्चों को फल पसंद होने से पहले नाश्ते के टेबल की यह जरूर होता था। लेकिन अब हफ्ते में एकाध बार इसे खरीदता हूं। बाकी दूध वगैरह भी कम ही खरीदता हूं।
माल ढुलाई में वृद्धि और यूक्रेन संकट से बढ़ी कीमतें
चांदनी चौक के कारोबारी सुरेश बिंदल (businessman Suresh Bindal) के मुताबिक, माल ढुलाई की लागत बढ़ने, यूक्रेन संकट समेत खाद्यान्न (food grains) की कीमतें के इजाफे का मिला-जुला असर महंगाई के तौर पर आया है। पेट्रोल व डीजल की कीमतें बढ़ने से माल ढुलाई बढ़ी है। वहीं, यूक्रेन संकट का असर भी पड़ रहा है। इसके अलावा इस बीच अनाज भी महंगा हुआ है। इसका प्रभाव नाश्ते पर पड़ा है और दोपहर व शाम के भोजन पर भी। आने वाले वक्त में इसमें गिरावट आने का उम्मीद भी नहीं दिख रही है।
महंगाई का असर दूरगामी
बीते करीब तीस साल से दिल्ली में चार्टर्ड अकाउंटेंट का काम करने वाले सत्येंद्र चतुर्वेदी मानते हैं कि आसमान छूती महंगाई के दूरगामी असर पड़ रहे हैं। सबसे ज्यादा मार मध्यम व निम्न मध्यम वर्ग पर पड़ी है। आर्थिक ही नहीं, इस तबके की स्वास्थ्य, शिक्षा समेत जीवन की गुणवत्ता तय करने वाले हर मानक को इसने झकझोर कर रख दिया है।
अब आटे ने बिगाड़ दिया रसोई का बजट
अब आटा भी महंगाई की दौड़ में शामिल हो गया है। बीते 15 दिनों में इसकी कीमत में पांच रुपये से अधिक की बढ़ोतरी हुई है। इस समय मध्यप्रदेश के गेहूं (चक्की) का आटा 38 रुपये प्रति किलो व अन्य प्रदेशों से मंगाये गये गेहूं का आटा 34 रुपये में मिल रहा है। 10 किलो के पैकेट बंद आटे में भी 20 रुपये की बढ़ोत्तरी हुई है। मक्के का आटा भी करीब 42 रुपये प्रति किलो के भाव से बेचा जा रहा है।
एनआईटी पांच स्थित आटा चक्की संचालकों ने बताया कि इस बार गेहूं की कीमत बाजार में काफी अधिक है। मध्य प्रदेश से गेहूं मंगाने पर प्रति क्विंटल 3500 रुपये से अधिक का खर्च आ रहा है। हरियाणा व यूपी से भी मंगाने पर 2800 रुपये प्रति क्विंटल से अधिक खर्च आ रहा है। चक्की संचालकों के अनुसार, इसमें ट्रांसपोर्टेशन का किराया भी है। इससे इस बार आटा महंगा हुआ है।
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