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महंगाई : आंकड़ों में राहत, मगर मौसम की अनिश्चितता से बढ़ेंगे खाद्य वस्तुओं के दाम!

नई दिल्ली (New Delhi)। फरवरी महीने (month of February) का थोक और खुदरा महंगाई (Wholesale and retail inflation) का आंकड़ा वैसे तो राहत की खबर लेकर आया है, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि पिछले वर्ष के अनुकूल तुलनात्मक आधार से मुद्रास्फीति में नरमी (moderation in inflation) आई है। उन्होंने कहा कि आने वाले समय में जिसों के दामों में नरमी से थोक मुद्रास्फीति और भी घट सकती है। हालांकि खाद्य मुद्रास्फीति का स्तर मौसमी परिस्थितियों और मानसून (Weather Conditions and Monsoon) पर निर्भर करेगा।

विशेषज्ञों के मुताबिक आने वाले महीनों में खासकर खाद्य मुद्रास्फीति के मोर्चे पर कई चुनौतियां उभर कर सामने आ सकती हैं। उनके मुताबिक अलनीनो के तीव्र प्रभाव के चर्चा हो ही रही है, इसके साथ ही तेज गर्मी, बिजली संकट, चारे की कमी से दूध के दाम बढ़ना, गेहूं की फसल और फल सब्जियों के दामों में बढ़ोतरी हो सकती है। साथ ही धान और गेहूं के बीच का समय दाल और चने के लिए खास होता है, बारिश की कमी के चलते उस चक्र पर भी असर पड़ सकता है। इसके अतिरिक्त सरकार को खाने-पीने के सामान की जमाखोरी से विशेष रूप से निपटना होगा।


खाद्य वस्तुओं की मुद्रास्फीति फरवरी में बढ़कर 3.81 प्रतिशत हो गई जो जनवरी में 2.38 प्रतिशत थी। दालों के मामले में मुद्रास्फीति 2.59 प्रतिशत रही जबकि सब्जियां 21.53 प्रतिशत सस्ती हुईं। तिलहन की महंगाई दर फरवरी, 2023 में 7.38 प्रतिशत घटी। इससे पहले सोमवार को खुदरा मुद्रास्फीति में भी कमी दर्ज की गई थी। खाने का सामान एवं ईंधन की कीमतों में नरमी के बीच खुदरा मुद्रास्फीति फरवरी में मामूली घटकर 6.44 प्रतिशत पर रही। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) आधारित मुद्रास्फीति जनवरी में 6.52 प्रतिशत थी।

बता दें कि थोक भाव में किसी सामान का मूल्य थोक महंगाई या फिर थोक मूल्य सूचकांक कहलाता है। थोक मूल्य सूचकांक में सामान काफी मात्रा में एक साथ बेचा जाता है और यह सौदा फर्मों के बीच होता है ना कि ग्राहकों के बीच। देश में महंगाई मापने के लिए थोक मूल्य सूचकांक बेहद अहम होता है।

फरवरी में थोक मुद्रास्फीति पर एक नजर
– पहले खाद्य मुद्रास्फीति 2.95 फीसद थी, अब 2.76 फीसद है
– सब्जियों की महंगाई पहले -26.48 फीसद थी, अब -21.53 फीसद है
– पहले अंडे, मीट और मछली की महंगाई 2.23 फीसद थी, अब 1.49 फीसद है
– प्याज की महंगाई पहले -25.20 थी, अब -40.14 फीसद है
– आलू की महंगाई पहले 9.78 फीसद थी और अब -14.30 फीसद है
– ईंधन और ऊर्जा की महंगाई पहले 15.15 फीसद थी, अब 14.82 फीसद है।

खुदरा मुद्रास्फीति पर कैसे होगा असर
विशेषज्ञों के आकलन के मुताबिक थोक महंगाई का असर उपभोक्ताओं तक पहुंचने में एक से डेढ़ माह तक का समय लगता है। इसमें उत्पादन से लेकर परिवहन और भंडारण तक का समय होता है। ऐसे में यदि थोक महंगाई में नरमी आती है तो इसका मतलब है कि आने वाले डेढ़-दो माह में खुदरा महंगाई भी घटेगी। इस तरह थोक मुद्रास्फीति खुदरा महंगाई में बदलाव का पहले संकेत दे देती है।

महंगाई के आंकड़ों का आप पर असर
– महंगाई दर बढ़ने या घटने का सीधा असर आम आदमी की जेब पर पड़ता है।
थोक में अगर किसी वस्‍तु के दाम घटते हैं तो आम उपभोक्‍ता को खुदरा बाजार में खरीद के दौरान कम कीमत चुकानी होती है।

– औसतन महंगाई घटने से रिजर्व बैंक के ऊपर ब्याज दरें बढ़ाने का दबाव घटेगा।
ब्याज दरें कम होने के मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र को कर्ज कम महंगा मिलेगा।।

– किसी देश में महंगाई दर घटने पर मुद्रा के माध्यम से खरीदने की ताकत बढ़ती है। उससे देश विशेष में रहने का खर्च घटता है।

– खरीद शक्ति बढ़ने से उत्पादन भी बढ़ता है जो अर्थव्‍यवस्‍था को आगे बढ़ाता है।

महंगाई कैसे मापी जाती है?
भारत में दो तरह की महंगाई होती है। एक रिटेल, यानी खुदरा और दूसरी थोक महंगाई होती है। खुदरा महंगाई दर आम ग्राहकों की तरफ से दी जाने वाली कीमतों पर आधारित होती है। इसको कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स (सीपीआई) भी कहते हैं। वहीं, होलसेल प्राइस इंडेक्स (डब्ल्यूपीआई) यानी थोक मुद्रास्फीति का अर्थ उन कीमतों से होता है, जो थोक बाजार में एक कारोबारी दूसरे कारोबारी से वसूलता है। यह कीमतें थोक में किए गए सौदों से जुड़ी होती हैं।

किस उत्पाद की कितनी भागीदारी
दोनों तरह की महंगाई को मापने के लिए अलग-अलग पदार्थों को शामिल किया जाता है। जैसे थोक महंगाई में विनिर्मित उत्पाद की हिस्सेदारी 63.75 फीसद होती है। अन्य सामान जैसे खाद्य की 20.02 फीसद और ईंधन एवं ऊर्जा की 14.23 फीसद होती है। वहीं, खुदरा महंगाई में खाद्य और उत्पाद की भागीदारी 45.86 फीसद , हाउसिंग की 10.07 फीसद , कपड़े की 6.53 फीसद और ईंधन सहित अन्य सामान की भी भागीदारी होती है।

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