मुंबई (Mumbai)। बॉम्बे हाई कोर्ट (Bombay high court) ने बड़ा फैसला सुनाते हुए एक रेप पीड़िता को 23 हफ्ते का गर्भ हटाने की अनुमति (abortion permission) दे दी है। कोर्ट ने कहा है कि अगर महिला को बच्चा पैदा करने के लिए मजबूर किया जाता है तो यह उसके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन (violation of fundamental rights) है।
जस्टिस अभय आहूजा और मिलिंद साथाए ने कहा कि अगर महिला को जबरन गर्भ रखवाया जाता है तो उसके अधिकारों का उल्लंघन होगा। महिला को अपना सम्मान सुरक्षित रखने और शारीरिक स्थिति के हिसाब से फैसला करने का मौलिक अधिकार है।
दरअसल, पीड़िता 2016 से ही आरोपी के साथ रिलेशनशिप में थी। 2018 में महिला की शादी किसी और शख्स से हो गई। अक्टूबर 2022 में एक बार महिला के पति ने शराब पीकर उसे बुरी तरह से पीटा। उस वक्त उनका एक बेटा भी था। पति ने बेटे को भी मारा। इसके बाद महिला ने अपने एक्स बॉयफ्रेंड को फोन किया और कहा कि वह उसके घर आना चाहती है। महिला अपने बच्चे के साथ बॉयफ्रेंड के घऱ चली गई। महिला ने आरोप लगाया था कि उसके एक्स ने उससे शादी का वादा किया और फिर शारीरिक संबंध बनाए।
कुछ सप्ताह बाद आरोपी ने महिला के घर के पास में ही किराए पर कमरा ले लिया। जब महिला को पता चला कि वह प्रेग्नेंट है तो उसने बॉयफ्रेंड को बताया। इसके बाद से आरोपी उसे धमकियां देने लगा और इस बात से भी इनकार कर दिया कि वह उसका बच्चा है। 28 अप्रैल को पुलिस ने बार-बार रेप की एफआईआर दर्ज की।
महिला के वकील ने कहा कि इस प्रेग्नेंसी की वजह से महिला की मानसिक स्थिति पर असर पड़ा है। वह दूसरे बच्चे को संभालने की स्थिति में भी नहीं है। जजों ने जेजे अस्पताल मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट देखी। इसमें कहा गया था कि महिला गर्भ हटवाने के लिए मानसिक और शारीरिक रूप से फिट है।
कोर्ट ने 2009 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि महिला को संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत अपने शरीर और बच्चे को जन्म देने को लेकर फैसला करने का अधिकार है।
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