ब्‍लॉगर

किसी राष्ट्र की मजबूती से ही उसका विकास सम्भव

– रंजना मिश्रा

हम आज जो हालात अफगानिस्तान में देख रहे हैं, उसे देख कर यही विचार आता है कि यदि कोई राष्ट्र मजबूत न हो तो उस राष्ट्र के नागरिकों का बैंक बैलेंस, बंगला, गाड़ी, बिजनेस और पढ़ाई-लिखाई उनके किसी काम की नहीं रह जाती। यदि देश आत्मनिर्भर न हो तो नागरिकों की संपत्ति की भी कोई कीमत नहीं रह जाती। अफगानिस्तान की तरह यदि कोई देश दूसरे देशों की मदद पर आश्रित हो, दूसरे देशों की सेना पर आश्रित हो और उसकी सरकार में कड़े फैसले लेने की ताकत ना हो तो ऐसी स्थिति में उस देश के लोगों की ताकत का भी कोई वजूद नहीं रह जाता। मतलब यह है कि यदि किसी देश का नेतृत्व ही कमजोर हो, तो सब कुछ होने के बावजूद संकट की स्थिति में उस देश के नागरिकों को एक दिन अपना सब कुछ छोड़ कर अपने देश से भागना पड़ सकता है। ऐसे और दूसरे देश में शरणार्थी बनकर जीवन बिताने के लिए मजबूर होना पड़ सकता है, क्योंकि कमजोर और स्वार्थी नेता देश में संकट की स्थिति आने पर या तो अपने लोगों को छोड़कर भाग जाते हैं या फिर दूसरे देशों के साथ सौदा कर लेते हैं, जैसा कि अफगानिस्तान में हुआ है।

अफगानिस्तान के अनुभव बहुत कुछ सिखाते हैं। हमें चुनाव के वक्त वोट देते समय इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि हमारे द्वारा चुना हुआ नेता हमारे लिए और हमारे देश के लिए मजबूती से खड़ा रहे। वह कठिन परिस्थितियों में हमें छोड़कर भागे नहीं। हमें जाति, धर्म, मुफ्त की चीजों और किसी पार्टी विशेष के प्रति अपने लगाव के नाम पर वोट नहीं देना चाहिए, बल्कि हमारा वोट हमारे देश को मजबूत बनाने के लिए होना चाहिए। हमें देश का ऐसा नेतृत्व नहीं चुनना चाहिए जो केवल अपना वोट बैंक बढ़ाने के लिए और तुष्टीकरण के लिए काम करे।

देश का नेतृत्व ऐसा होना चाहिए जो सही दिशा में उठाए गए अपने उचित कदमों से देश का सर्वांगीण विकास कर सके और देश को हर खतरे से बचाने की क्षमता रखता हो। एक भ्रष्टाचारी शासन देश को खोखला कर देता है और अंततः उसका वही परिणाम होता है जो आज अफगानिस्तान का हुआ है। जब नेता सरकारी खजाने को अपना खजाना समझने लगते हैं, जनता का खून चूस-चूस कर खुद को पोषित करने लगते हैं तो न तो उस देश की जनता सुखी रह पाती है और ना ही देश सुरक्षित रह पाता है। किसी देश की सेना भी तभी शक्तिशाली होती है, जब उस देश की सरकार उसे मजबूत बनाने का पूरा प्रयास करे। अच्छी सेना और युद्ध के आधुनिक साजो-सामान होने के बावजूद यह निश्चित नहीं होता कि वह देश सुरक्षित ही रह पाएगा, जब तक कि सेना के प्रत्येक जवान में अपने राष्ट्र के लिए मर मिटने की भावना और देश के शीर्ष नेतृत्व में देश की सुरक्षा को लेकर कड़े निर्णय लेने की इच्छाशक्ति न हो। जब देश सही हाथों में सुरक्षित रहेगा, तभी उस देश की जनता भी सुरक्षित रह पाएगी अन्यथा हालात बदलते देर नहीं लगती।

आज हम देखते हैं कि लोकतांत्रिक देशों में जनता भी लोकतंत्र से मिलने वाली आजादी का गलत फायदा उठाने से नहीं चूकती। यहां तक कि अब तो संविधान का भी गलत इस्तेमाल होने लगा है। बुद्धिजीवी कहे जाने वाले लोग भी, मानवाधिकार के नाम पर आतंकवादियों का पक्ष लेने से पीछे नहीं हटते। अपने निजी स्वार्थ एवं सत्ता की लालच में अनेक स्वार्थी गुट एवं विपक्षी पार्टियों द्वारा सरकार के सही फैसलों का भी जमकर विरोध किया जाता है। विरोध के नाम पर बड़े-बड़े आंदोलन महीनों तक चलते हैं, देश की महत्वपूर्ण सड़कों और हाईवे तक को जाम कर दिया जाता है। विरोध प्रदर्शन के दौरान लोग सरकारी और निजी संपत्तियों को नुकसान पहुंचाने से भी बाज नहीं आते, वे ये भी नहीं सोचते कि आखिर वो अपने ही देश की संपत्ति को नुकसान पहुंचा रहे हैं और इसका खामियाजा किसी न किसी रूप में उन्हें ही भुगतना पड़ेगा।

विपक्षी दल कुर्सी की लालच में जनता को भड़काते हैं और सत्तारूढ़ दल द्वारा राष्ट्र हित में लिए गए सही फैसलों और कानूनों को भी संसद में पारित नहीं होने देते। इतना ही नहीं, कुर्सी पाने की लालच में वे विदेशों से भी सांठगांठ करने में संकोच नहीं करते। एक राष्ट्र की मजबूती और सुरक्षा राष्ट्र की सरकार के साथ-साथ उसके नागरिकों पर भी निर्भर करती है। इसलिए किसी भी नागरिक को ऐसा कोई कार्य नहीं करना चाहिए, जो उसके देश के हित में न हो और देश को कमजोर करे। एक अच्छे राष्ट्र के लिए उसके नागरिकों का भ्रष्टाचार मुक्त होना, राष्ट्र भक्त होना और कर्तव्य परायण होना बहुत जरूरी है। जब देश का प्रत्येक नागरिक राष्ट्र के हितों का ध्यान रखेगा तो राष्ट्र अपने आप ही मजबूत बनता चला जाएगा। किसी राष्ट्र की प्रगति और समृद्धि ही उस राष्ट्र के नागरिकों की असली प्रगति एवं समृद्धि है।

(लेखिका स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)

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