खरी-खरी

जाहि विधि राखे शाह ताहि विधि रहिए… दिन-रात बस मोदी-मोदी कहिए


चौंकिए नहीं, सोचिए…देश में एक ऐसा राजनीतिक दल स्थापित हो चुका है, जिसके फैसले से जनता चकित हो जाए…उसके अपने नेता सर झुकाएं…कहीं कोई विरोध नजर नहीं आए…उम्मीद लगाने वाले निराश नजर आएं और सड़क का कार्यकर्ता शिखर पर पहुंच जाए…फिर वो अपने पिता के साथ समर्पण की सीढ़ियां चढ़ती कविता पाटीदार हो या मुफलिसी और मजबूरी में जीती हुई पार्टी की अदनी-सी कार्यकर्ता सुमित्रा वाल्मीकि… न कविता ने सोचा, न सुमित्रा ने कल्पना की… लेकिन शाह-मोदी की चौंकाने वाली नीति ने अदने से कार्यकर्ताओं को सत्ता के उस सिंहासन पर ले जाकर बैठा दिया जो चुने हुए सांसदों के सदन से बड़ा है… ऐसा ही फैसला भाजपा ने देश के प्रथम नागरिक के तौर पर चुने राष्ट्रपति के लिए लिया था…जो देश सोच नहीं पाया…जिस वर्ग को पिछड़ा समझकर उपेक्षित बताया, उस वर्ग का व्यक्ति यदि इस देश का प्रथम नागरिक कहलाता है…राष्ट्रपति का सम्मान पाता है तो वह वर्ग अगड़ों से भी आगे हो जाता है… उस वर्ग की कविताजी हों या सुमित्राजी, यदि राज्यसभा का सम्मान पाती हैं तो देश में वर्गों की एक नई इबारत पटल पर आ जाती है…बात किसी वर्ग के सम्मान की नहीं, बल्कि उस राजनीतिक दल की संगठन क्षमता और नेतृत्व के प्रभुत्व की है, जहां मोदी की सियासत और शाह की रिवायत के बाद फैसले उनकी अपनी नीतियों पर लिए जाते हैं और कहीं कोई विरोध नजर नहीं आता है…कोई सर नहीं उठाता है…हर नेता अनुशासन में बंधा नजर आता है…सत्ता हो या संगठन हर फैसला शिरोधार्य किया जाता है…इसीलिए भाजपा मजबूत कहलाती है और कांग्रेस मजबूर कहलाती है, जहां पद न मिले तो नेता दल छोड़ जाता है…सत्ता हो या संगठन विरोध पर उतर आता है…वो लोग दल को चलाते हैं, जो खुद ठीक से चल नहीं पाते…झुकी कमर वाले सहारे की उम्र जीते लोग पार्टी को मजबूत बनाने का दावा करते हुए हर पद पर हक जताते हैं…दल के जिंदगी खपाने वाले कार्यकर्ता थक-हारकर घर बैठे रह जाते हैं…बिना पैसे लिए कार्यकर्ता काम करने नहीं आते हैं…उम्मीदवार रुठने और मनाने में वक्त बिताते हैं…वहां चुनाव जीतने के तो दूर लड़ने तक के हौसले पस्त हो जाते हैं…भाजपा ने यदि खुद को आंतरिक रूप से मजबूत किया तो विरोधियों को कमजोर भी कर दिया…कांग्रेस हो या समाजवादी…सिंधिया हों या हार्दिक पटेल…किसी को भाजपा ने बुलाया तो कोई भाजपा में चला आया… मोदी के इशारे और शाह के इरादों ने जो मजबूत नजर आया उसे अपना बनाया… अपने दल के कमजोरों को घर बिठाया… नई पौध को आगे बढ़ाया… संगठन से लेकर सत्ता तक ऐसा माहौल बनाया कि हर कार्यकर्ता यही कहता नजर आया जाहि विधि राखे शाह ताहि विधि रहिए… दिन-रात बस मोदी-मोदी कहिए…

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