मुंबई (Mumbai)। तेजतर्रार अभिनेता सनी देओल और अमीषा पटेल (Sunny Deol and Ameesha Patel) स्टारर ‘गदर-2’ (Gadar-2) के 11 अगस्त को रिलीज होने से पहले भारतीय सेना के अधिकारियों के लिए फिल्म की स्क्रीनिंग रखी गई। फिल्म देखने के बाद सैन्य अधिकारियों की आंखों में आंसू आ गए। सभी ने तालियां बजाईं और जयकार की। तो वहीं दूसरी ओर पाकिस्तान में जल्द ही रिलीज होने वाली है फातिमा जिन्ना की बायोग्राफी. इसका नाम है- ‘फातिमा जिन्ना: सिस्टर, रिवोल्यूशन, स्टेट्समैन’. जो कि पाकिस्तान के ओटीटी प्लेटफॉर्म और aur.digital पर 14 अगस्त को रिलीज की जाएगी। भारत और पाकिस्तान का कैसे विभाजन किया गया। यह पूरी कहानी अब फिल्मों में दिखाई जा रही है।
मोहम्मद अली जिन्ना ने भारत का बंटवारा कराया। वो अपनी बहन फातिमा जिन्ना के साथ उस देश पाकिस्तान में चले गए, जिसका उन्होंने निर्माण कराया था. लेकिन जिन्ना के खानदान के ज्यादातर लोगों ने तब हिंदुस्तान को चुना। उन्होंने भारत में रहना पसंद किया. बाद में जरूर उनके कुछ भाई-बहनों ने कई सालों बाद पाकिस्तान का रुख किया. वैसे अब भी उनके दो भाई और बहनों के नाती-पोते मुंबई और कोलकाता में रह रहे हैं. जिन्ना की इकलौती बेटी दीना वाडिया ने तो साफतौर पर पिता के देश जाने से मना कर दिया था।
पाकिस्तान के सूत्रधार मोहम्मद अली जिन्ना कौन न हीं जानता, लेकिन उनकी बहन फातिमा जिन्ना को ‘मादर-ए-मिल्लत’ यानी ‘कौम की मां’ का दर्जा मिला हुआ है। कायदे-आजम जिन्ना अपना हरेक फैसला अपनी बहन से पूछकर ही लेते थे। कलकत्ता से पढ़ीं डेंटिस्ट फातिमा जिन्ना आखिर तक अपने भाई के साथ बनी रहीं।
बताया जाता है कि पाकिस्तान बनाने के पीछे की असल राजनीति फातिमा जिन्ना की ही थी। वो सार्वजनिक रूप से भी जिन्ना के साथ नजर आती थीं। बंटवारे के बाद पलायन करने वाली महिलाओं के लिए फातिमा जिन्ना ने काफी काम किया था। वो नए बने पाकिस्तान में महिलाओं को ऊंचे ओहदे पर देखना चाहती थीं।
लेकिन 1948 में जिन्ना की मृत्यु के बाद उनकी खुद की स्थिति खराब हो गई। रेडियो पर उन्हें बोलने की भी इजाजत नहीं दी गई। उन्हें पाकिस्तान की सियासत से अलग-थलग कर दिया गया। 1967 में जब फातिमा की मृत्यु हुई तो उनके कब्र को लेकर भी बवाल हुआ। उनके जनाजे पर पथराव की भी घटना हुई। कुछ लोगों ने यह भी आरोप लगाया कि सरकार ने फातिमा जिन्ना की हत्या कराई है।
भाई की मौत के बाद संभाली सियासत
दरअसल, फातिमा की शादी रत्तनबाई पेटिट से शादी हुई थी, लेकिन 1929 में पति की मौत के बाद वो अपने भाई मोहम्मद अली जिन्ना के घर आ गईं। 19 साल तक वो उन्हीं के साथ रहीं. फिर 11 सितंबर 1948 को मोहम्मद अली जिन्ना का देहांत हो गया। उनके जाने के बाद पूरी बागडोर फातिमा ने संभाल ली, हालांकि जिन्ना की मौत के बाद फातिमा को सियासत से दूर रखने की पूरी कोशिश की गई। जिन्ना की डेथ एनिवर्सरी पर अक्सर उन्हें भाषण देने तक से रोका गया। उस दौरान के हुकमरानों की शर्त होती थी कि पहले फातिमा उस स्पीच को शेयर करें, जो वो रेडियो पर आवाम को सुनाना चाहती हैं, लेकिन फातिमा हर बार मना कर दिया करती थीं। हुकूमत का मानना था कि फातिमा देश की जनता को भड़काने वाला बयान देना चाहती हैं। लेकिन जिन्ना की तीसरी बरसी पर उन्हें भाषण देने का मौका मिला, किन्तु जब उनकी बारी आई और फातिमा ने बोलना शुरू किया तो अचानक ट्रांसमिशन बंद कर दी गई. कुछ देर तक ये ट्रांसमिशन बंद ही रही। बाद में जानकारी मिली कि फातिमा की तहरीर में कुछ ऐसी बाते थीं जो सरकार को निशाने पर ले लेती। हुकूमत को लगा कि इससे बात टल जाएगी, लेकिन हुआ इसके उलट. जनता को जब फातिमा का भाषण सुनने को नहीं मिला तो, सरकार की ओर से बहाना दिया गया कि बिजली चली गई थी. ये बात आवाम को नागवार गुजरी. लोगों में काफी नाराजगी फैली थी. फिर भी फातिमा की जिंदगी में मुश्किलों का दौर चलता रहा. आखिरकार 9 जुलाई 1967 को फातिमा का इंतकाल हो गया। Share: