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अडानी पर आरोपों के बाद क्‍यों चर्चा में आयी जेपीसी, जानिए कब-कब हुआ इसका गठन

नई दिल्‍ली (New Delhi) । उद्योगपति गौतम अडानी (Industrialist Gautam Adani) और उनकी कंपनियों (companies) पर आई हिंडनबर्ग की रिपोर्ट (Hindenburg Report) के बाद संसद (Parliament) में बवाल मचा है. कांग्रेस समेत कई विपक्षी पार्टियां संयुक्त संसदीय समिति (JPC) का गठन कर इस मामले की जांच कराने की मांग कर रही है. सरकार ने इसे खारिज कर दिया है, जिसके बाद पिछले 2 दिन से संसद की कार्यवाही ठप चल रही है.

1987 के बाद भारत में अब तक कुल 6 बार, जिसमें 4 बार कांग्रेस की सरकार में और 2 बार बीजेपी की सरकार में जेपीसी बनाई गई है. दिलचस्प बात है कि जेपीसी बनाने वाली राजीव गांधी, पीवी नरसिम्हा राव, मनमोहन सिंह और अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार दोबारा सत्ता में नहीं आ पाई.


इस स्टोरी में जानते हैं, जेपीसी और उसके कामकाज के बारे में…

जेपीसी क्या होता है और कैसे काम करता है?
नियमों के मुताबिक संसद में 2 समिति का प्रावधान किया गया है. पहला, स्थाई समिति और दूसरा अस्थाई समिति. स्थाई समिति पूरे समय काम करती है और सरकार के कामकाज पर नजर रखती है. इन समितियों को छोटी संसद भी कहा जाता है. अस्थाई समिति किसी विशेष मुद्दे पर बनाई जाती है, जिस पर रिपोर्ट बनाकर समिति सदन में पेश करती है.

अस्थाई समिति के तहत ही जेपीसी का गठन किया जाता है. जेपीसी पास सबूत जुटाने के लिए असीमित अधिकार दिए गए हैं. समिति के निर्देश को नकारना संसद का अवमानना माना जाता है.

जेपीसी बनाने का अधिकार किसको?
किसी भी मुद्दे पर जेपीसी बनाने की सिफारिश केंद्र सरकार करती है. सिफारिश के बाद लोकसभा में एक प्रस्ताव भी पास कराया जाता है. इसके बाद दोनों सदन यानी लोकसभा और राज्यसभा मिलकर जेपीसी का गठन करते हैं.

जेपीसी में लोकसभा सांसदों की संख्या राज्यसभा की दोगुनी होती है. संसद की दोनों सदन के सदस्य इसमें होते हैं, इस वजह से इसे संयुक्त संसदीय समिति कहा जाता है.

जेपीसी में एक अध्यक्ष भी होता है, जिसका फैसला सर्वमान्य माना जाता है. दिलचस्प बात है कि अमूमन सत्ताधारी पार्टी के सांसद ही इसके अध्यक्ष बनते आए हैं.

जेपीसी क्यों जरूरी, 2 प्वॉइंट्स…
1. जेपीसी में सभी दलों के सांसद शामिल होते हैं. ऐसे में समिति से निष्पक्ष रिपोर्ट आने की उम्मीद होती है. अगर समिति के अधिकांश सदस्य किसी मामले को दबाने की कोशिश भी करते हैं, तो अल्पमत के सदस्य अपनी आपत्ति दर्ज करा सकते हैं. बोफोर्स केस में एआईडीएमके के सांसद ने जांच के खिलाफ आपत्ति नोट दर्ज कराया था.

2. कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी के मुताबिक गौतम अडानी का केस शेयर बाजार और सरकारी बैंकों के कर्ज से जुड़ा मामला है. ऐसे में संयुक्त संसदीय समिति को जो अधिकार प्राप्त है, उससे इस मामले में कई सवालों के जवाब मिल जाएंगे.

कब-कब बना जेपीसी, क्या रिजल्ट रहा?
1. बोफोर्स घोटाला- स्वीडन की हथियार बनाने वाली कंपनी बोफोर्स और भारत सरकार के बीच साल 1987 में 1437 करोड़ रुपए का एक रक्षा सौदा हुआ. इसी बीच स्वीडिश मीडिया में खबर आई कि बोफोर्स ने रक्षा सौदा के लिए कई देशों की सरकार को रिश्वत दी है. इधर, राजीव गांधी के करीबी मंत्री वीपी सिंह ने सरकार के खिलाफ ही मोर्चा खोल दिया.

नतीजतन, राजीव गांधी को मामले की जांच के लिए जेपीसी का गठन करना पड़ा. कांग्रेस नेता बी. शंकरानंद को समिति का अध्यक्ष बनाया गया. समिति ने अपनी रिपोर्ट में राजीव गांधी को क्लीन चिट दे दिया.

रिपोर्ट आने के बाद विपक्ष ने इस पर काफी हंगामा किया. 1984 में 414 सीटें जीतने वाले राजीव गांधी को 1989 में हार का सामना करना पड़ा. बोफोर्स घोटाला को मजबूती से उठाने वाले वीपी सिंह देश के प्रधानमंत्री बने.

2. हर्षद मेहता कांड- शेयर बाजार में बिग बुल के नाम से मशहूर ब्रोकर हर्षद मेहता 1992 में सुर्खियों में आए. उस वक्त 4000 करोड़ रुपए का शेयर बाजार घोटाला हुआ था. मेहता पर आरोप था कि वो बैंक से लोन लेकर शेयर बाजार में पैसा इन्वेस्ट करता है और फिर फायदा कमाने के बाद बैंक को पैसा वापस कर देता है.

बैंक अधिकारियों और हर्षद मेहता के बीच सांठगांठ की खबरें जब सामने आई तो शेयर बाजार धड़ाम हो गया. मामला सामने आने के बाद मेहता पर 72 क्रिमिनल केस दर्ज किए गए. इसी बीच मेहता ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर दावा कर दिया कि उसने प्रधानमंत्री को 1 करोड़ रुपए की रिश्वत दी है.

विपक्ष को बैठे-बिठाए यह बड़ा मुद्दा मिल गया. सदन में काफी हंगामे के बाद सरकार ने इस पर जेपीसी गठन का फैसला किया. कांग्रेस सांसद राम निवास मिर्धा को इसका अध्यक्ष बनाया गया. मिर्धा ने मामले में नरसिम्हा राव को क्लीन चिट दे दिया.

क्लीन चिट मिलने के बावजूद शेयर घोटाले का जिन्न राव का पीछा करता रहा. 1996 के चुनाव में कांग्रेस को हार मिली और पार्टी कई गुटों में बंट गई. राव को दिल्ली की सत्ता से बाहर होना पड़ा.

3. केतन पारेख केस- 2001 में हर्षद मेहता की तरह ब्रोकर केतन पारेख का नाम मीडिया में फ्लैश होने लगा. पारेख पर 2 लाख करोड़ रुपए की धोखाधड़ी का आरोप था. पारेख की वजह से अहमदाबाद की माधवपुरा मर्केंटाइल सहकारिता बैंक पूरी तरह डूब गई.

घोटाले का दाग वाजपेयी सरकार पर भी लगा. जिसके बाद बीजेपी सांसद प्रकाश मणि त्रिपाठी की अध्यक्षता में जेपीसी का गठन किया गया. इस समिति ने भी सरकार को क्लीन चिट दे दिया और शेयर बाजार के नियमों में फेरबदल की सिफारिश की.

4. सॉफ्ट ड्रिंक में पेस्टिसाइड का मामला- कोका कोला, पेप्सी जैसे सॉफ्ट ड्रिंक में पेस्टिसाइड की मात्रा अधिक रखने का मामला संसद में जब उठा तो वाजपेयी सरकार ने जेपीसी बनाने का ऐलान कर दिया. इस बार विपक्ष के शरद पवार को इसकी अध्यक्षता सौंपी गई.

पवार की अध्यक्षता वाली जेपीसी ने माना कि सॉफ्ट ड्रिंक और फ्रूट जूस में पेस्टिसाइड मिलाया जा रहा है. समिति ने एक सिफारिश भी सरकार को सौंपी. इसके कुछ दिन बाद ही लोकसभा के चुनाव हुए और जेपीसी का गठन वाजपेयी सरकार के लिए पनौती साबित हुआ. भारत उदय के रथ पर सवार बीजेपी सरकार बनाने से चूक गई और देश में कांग्रेस नीत यूपीए की सरकार बनी.

5. 2 जी स्पैक्ट्रम केस- 2009-10 में स्पैक्ट्रम आवंटन मामले में रिश्वत लेने की बात जब सामने आई तो भ्रष्टाचार के मुद्दे पर कांग्रेस बुरी तरह घिर गई. तत्कालीन दूरसंचार मंत्री ए राजा को जेल भी जाना पड़ा. कई दिन संसद ठप होने के बाद मनमोहन सरकार ने 2011 में जेपीसी बनाने का ऐलान किया.

जेपीसी की अध्यक्षता कांग्रेस सांसद पीसी चाको को सौंपी गई. चाको ने कुछ ही दिन के भीतर ड्राफ्ट रिपोर्ट में पीएम मनमोहन सिंह और वित्त मंत्री पी चिदंबरम को क्लीन चिट दे दी. रिपोर्ट पर 15 सांसदों ने विरोध जता दिया.

2013 में फाइनल रिपोर्ट में समिति ने 2 जी स्पैक्ट्रम घोटाले का ठीकरा तत्कालीन दूरसंचार मंत्री पर फोड़ दिया. कांग्रेस के लिए यह घोटाला बहुत नुकसानदेह साबित हुआ.

6. वीवीआईपी हेलिकॉप्टर घोटाला- राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और प्रधानमंत्री समेत वीवीआईपी के लिए हेलिकॉप्‍टर की खरीद के लिए भारत सरकार ने अगस्‍ता वेस्‍टलैंड से 3,700+ करोड़ रुपए का सौदा किया. आरोप लगा कि इस सौदे के लिए कंपनी ने राजनेताओं और अधिकारियों को रिश्वत दी है.

मनमोहन सरकार ने जांच के लिए 2013 में जेपीसी गठन का प्रस्ताव रखा. राज्यसभा से प्रस्ताव पास होने के बावजूद जेपीसी का गठन नहीं हो सका. क्योंकि मुख्य विपक्षी पार्टी बीजेपी, जेडीयू और तृणमूल कांग्रेस ने इसका बहिष्कार कर दिया. बाद में मामले की जांच सीबीआई को ही दी गई. मनमोहन सरकार के लिए भी जेपीसी का गठन पनौती ही साबित हुआ और 2014 में कांग्रेस बुरी तरह हारी.

जब जेपीसी की मांग सरकार ने ठुकराई
कई ऐसे घोटाले भी सामने आए, जिसमें सरकार ने जेपीसी से जांच कराने की मांग को ठुकरा दिया. इनमें ताबूत घोटाला, राफेल घोटाला और न्यूक्लियर डील का मामला प्रमुख है. मनमोहन सरकार ने महाराष्ट्र के आदर्श हाउसिंग स्कैम की जांच भी जेपीसी से कराने से इनकार कर दिया था.

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