रोने वालों ने उठा रक्खा था घर सर पर मगर,
उम्र भर का जागने वाला पड़ा सोता रहा।
केजी चच्चा चले गए…क्या के रय हो… कल ही तो फोन पे लंबी गुफ्तगू हुई थी उनसे। क्या कहा केजी चच्चा नहीं रहे…कल तो वो बाल भवन में बच्चों को नए नाटक की रीडिंग करा रहे थे। ये जुमले कल सुबह से देर शाम तक भोपाल के तमाम रंगकर्मियों के बीच चलते रहे। 59 बरस के केजी त्रिवेदी भोपाल के रंगकर्मियों के बीच खासे मक़बूल थे। कोई डेढ़ पोन दो बरस पहले कोरोना की चपेट में आने के बाद उनके फेफड़े ठीक से काम नहीं कर रहे थे। उनमें पानी भर जाता था। फेफड़ों में आक्सीजन खींचने की ताकत तकऱीबन ख़तम हो गई थी। लिहाज़ा केजी चच्चा चौबीस घंटे ऑक्सीजन कंसेंट्रेटर से सांस लेते। घर मे वो चहलकदमी कर सकें इसलिए उन्होंने लंबा ऑक्सीजन पाइप लगा लिया था। इतनी गंभीर हालत के बावजूद केजी चच्चा ने कभी बिस्तर नहीं पकड़ा। कल फेफड़ों में भयंकर इंफेक्शन के चलते उनकी हालत बहुत बिगड़ गई। घरवाले उने अस्पताल ले गए लेकिन तब तलक भोत देर हो चुकी थी।
वो बालभवन में बच्चों के नाट्य ग्रुप के इंचार्ज की जि़म्मेदारी मौत से एक दिन पहले तक निभाते रहे। उधार की सांसों पे जीवन जी रहे केजी चच्चा का फलसफा था के बच्चों को नाटक सिखाने में उन्हें जो हिम्मत मिलती है वो भी ऑक्सीजन से कम नहीं है। नाक में पाइप लगाए वो खुद हांफते रहते और अपना काम करते रहते। बालभवन में बच्चों के इस नाट्य गुरु ने हज़ारों शागिर्द तैयार किये। इनमे से कई फिल्मों और सीरियलों में रोल कर रहे हैं। कुछ थियेटर में नाम कमा रहे हैं। केजी ने खुद का त्रिकर्षि ग्रुप बनाया था। उसके बेनर तले इन्होंने बस इतना सा ख्वाब है, रुदाली, गगन दमामा बाज्यो और राम की लड़ाई सहित बीसियों प्ले किये। केजी 30 बरस पहले विभा मिश्रा के ग्रुप टोली से भी जुड़े थे। वो खुद बहुत नेचुरसल एक्टर थे। उनका अख़लाक़ निहायत मस्त और फक्कड़ था। बिखरे हुए बाल, चेहरे पे असली मुस्कुराहट, जिससे भी मिलते दिलो जान से मिलते। कल श्मशानघाट पे उन्हें सुपुर्दे आतिश करते हुए उनके शागिर्द और साथी रंगकर्मी फफक पड़े। बहुत बड़ी तादात में लोग उनके आखरी सफर में पहुंचे। त्रिवेदी परिवार अरेरा कालोनी में जॉइंट फेमिली में रहता है। केजी अपने पीछे पत्नी और दो बच्चों को छोड़ गए। रंगकर्म के इस कर्मयोगी को खिराजे अक़ीदत।
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