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जानें कैसे हुई डॉक्टर दिवस की शुरूआत, कौन थे Dr. Bidhan Chandra Roy जिनके नाम पर मनाया जाता है ये दिन

नई दिल्‍ली। हर साल देश में 01 जुलाई को डॉक्टर दिवस (National Doctors Day) मनाया जाता है. दरअसल ये दिन देश के जाने माने डॉक्टर और बंगाल के धुरंधर नेता डॉ. विधानचंद्र राय (Dr. Bidhan Chandra Roy) को समर्पित है. माना जाता था कि उनके पास आने वाला रोगी हमेशा ठीक होता था. वो चेहरा और नाड़ी के जरिए रोग का हाल और निदान बता देते थे. डॉ. विधानचंद्र राय (Dr. Bidhan Chandra Roy) गांधी से लेकर नेहरू तक के डॉक्टर रहे.
डॉ. विधानचंद्र राय (Dr. Bidhan Chandra Roy) फिजिशियन (physician) भी थे और सर्जन (surgeon) भी. उन्होंने पहले कोलकाता मेडिकल कॉलेज से अच्छे नंबर्स से एमबीबीएस और एमडी किया और फिर लंदन में पढ़ने चले गए. वहां उन्होंने एमडी की तो एमआरसीपी और एफआरसीएस जैसी शिक्षाएं भी हासिल कीं, जो बिरले ही डॉक्टरों के पास होती है. उन्हें बंगाल का निर्माता भी कहा जाता है. क्योंकि उनके समय में इस राज्य में कई बड़ी इंडस्ट्रीज लगने के साथ साथ बड़े शैक्षिक संस्थान भी खोले गए.
डॉ. विधानचंद्र राय (Dr. Bidhan Chandra Roy) का जन्म 01 जुलाई 1882 को हुआ जबकि मुख्यमंत्री रहते हुए ही 01 जुलाई 1962 को उनका निधन हुआ. वो नेताजी सुभाष चंद्र बोस के करीबी रहे तो महात्मा गांधी और नेहरू के अच्छे दोस्त भी.
नेताजी सुभाष चंद्र बोस के निधन के बाद उनकी बेटी की पढ़ाई लिखाई सुचारू तौर पर चलती रहे और उसके खर्च मिलता रहे, इसके लिए उन्हीं की पहल पर एक ट्रस्ट बनाया गया था. जब तक नेताजी की बेटी अनिता ने शिक्षा जारी रखी, तब तक उसका खर्च इसी ट्रस्ट ने ही उठाया.



हालांकि डॉ. विधानचंद्र राय (Dr. Bidhan Chandra Roy) अंग्रेज राज में अच्छे पद पर काम करते थे लेकिन उन्होंने कभी धन का संचय नहीं किया. अपने धन से गरीबों की मदद की, लिहाजा डॉ. विधानचंद्र राय (Dr. Bidhan Chandra Roy) का शुरुआती जीवन बहुत संघर्ष वाला था. वो केवल अपनी मेघा से बढ़े और कम धन में गुजारा किया और पढ़ाई की. वो आमतौर पर कालेज की लाइब्रेरी से ही किताब लेकर पढ़ाई करते थे. कोलकाता मेडिकल कालेज की अपनी पूरी पढ़ाई के दौरान उन्होंने केवल एक बार ही 05 रुपए की एक किताब खरीदी.
उनका जन्म पटना के बांकीपुर में हुआ था. मैट्रिक उन्होंने वहीं से पास की. फिर बीए की पढा़ई कोलकाता के प्रेसीडेंसी कालेज में की. इसके बाद उन्होंने इंडियन इस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग सर्विस एंड टैक्नॉलॉजी और कोलकाता मेडिकल कालेज दोनों में दाखिले के लिए फॉर्म भरा. दोनों जगह उनका दाखिला हो गया. तब उन्होंने मेडिकल की पढ़ाई चुनी.
कोलकाता मेडिकल कॉलेज की पढ़ाई के साथ वो नौकरी करके और रोगियों को देखकर भी धन संचय करने लगे. 1200 रुपए लेकर वो इंग्लैंड गए. जहां उन्होंने एमडी की परीक्षा में एडमिशन के लिए सेंट बार्थलोमेव हास्पिटल में 31 बार आवेदन किया लेकिन वहां के डीन हर बार उनके आवेदन को इसलिए खारिज कर देते थे क्योंकि उन दिनों बंगाल के क्रांतिकारियों ने अंग्रेज सरकार के दांत खट्टे किए हुए थे. लेकिन राय ने भी ठान लिया था कि वो पीजी करेंगे तो यहीं से करेंगे. बाद में उनका एडमिशन हुआ. उन्होंने यहां की पढ़ाई दो साल कुछ महीने में ही पूरी करके हर किसी को अचरज में डाल दिया.
स्वदेश लौटने के बाद डाक्टर राय ने सियालदह में अपना निजी चिकित्सालय खोला. सरकारी नौकरी भी कर ली. बाद में कांग्रेस में शामिल हुए लेकिन उनका साफ मानना था कि आजादी अपनी जगह है लेकिन स्वास्थ्य सबसे जरूरी है. अगर हम स्वस्थ नहीं होंगे तो आजादी की लड़ाई कैसे लड़ेंगे.
डॉक्टर राय बाद में कोलकाता विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर भी बने. उन्हें दुनिया के काबिल डॉक्टरों में गिना जाता था. उन्होंने अपने समय में कई हास्पिटल लोगों के खोले. रोग की नाड़ी की भाँति ही उन्हें देश की नाड़ी का भी ज्ञान था. वो लोगों का चेहरा देखकर समझ लेते थे कि उसको कौन सा रोग है. उसका निदान भी तुरंत बता देते थे.
जब वो आजादी की लड़ाई में कूदे तो फिर बंगाल के शीर्ष नेताओं में भी शामिल होते चले गए. जेल भी गए. आजादी के बाद नेहरू ने उन्हें उत्तर प्रदेश का राज्यपाल नियुक्त किया लेकिन उन्होंने इसे स्वीकार नहीं किया, क्योंकि वो बंगाल राज्य की राजनीति में ही रहना चाहते थे. तब वो बंगाल के स्वास्थ्य मंत्री थे. 1948 में जब बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉक्टर प्रफुल्लचंद्र घोष ने त्यागपत्र दिया, तो उन्हें मुख्यमंत्री बनाया गया.
डॉक्टर राय ने जीवन भर शादी नहीं की. 80 साल की उम्र तक वो पूरे उत्साह से काम करते रहे. उनका जीवन चिकित्सक और राजनीतिक के तौर पर उपलब्धियों से भरा हुआ था.

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