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सेनाध्यक्ष फील्ड मार्शल करिअप्पा का जानिए इंदौर से क्या है नाता, जानिए

नई दिल्ली। भारत में हर साल 15 जनवरी को सेना दिवस (Indian Army Day) के रूप में मनाया जाता है। आज ही के दिन फील्ड मार्शल केएम करिअप्पा (Field Marshal KM Cariappa) भारत के पहले सेनाध्यक्ष नियुक्त हुए थे। उन्हीं की याद में हम इस दिन को सेना दिवस (Army Day) के रूप में याद करते हैं।
बता दें कि ) भारत के पहले सेनाध्यक्ष फील्ड मार्शल करिअप्पा का जन्म कर्नाटक में हुआ लेकिन इंदौर से भी उनका गहरा नाता रहा है। फील्ड मार्शल करिअप्पा ने आर्मी ट्रेनिंग इंदौर में ही ली थी. दरअसल साल 1934 से पहले तत्कालीन ब्रिटिश इंडियन आर्मी के युवा अफसरों की ट्रेनिंग इंदौर के ‘ट्रेनिंग स्कूल ऑफ इंडियन आर्मी कैडेट’ में होती थी। यह ट्रेनिंग स्कूल इंदौर के मशहूर डेली कॉलेज कैम्पस में शुरू हुआ था। यहां से ट्रेनिंग लेने वाले अफसरों में एक नाम फील्ड मार्शल केएम करिअप्पा का भी है। इंदौर में ट्रेनिंग लेने के बाद साल 1919 में फील्ड मार्शल केएम करिअप्पा सेना में कमीशंड हुए थे।
विदित हो कि फील्ड मार्शल करिअप्पा ने साल 1949 में भारतीय सेना के तत्कालीन कमांडर इन चीफ सर फ्रांसिस बुचर की जगह सेना के कमांडर इन चीफ का पद संभाला था। इससे पहले साल 1942 में वह पहले भारतीय बने, जिन्हें एक यूनिट का कमांडर बनाया गया. इसके बाद उन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध में भी हिस्सा लिया और 1947 की भारत-पाक लड़ाई में भारतीय सेना का नेतृत्व किया. उन्हीं के नेतृत्व में सेना ने जोजिला, द्रास और कारगिल जैसी रणनीतिक तौर पर अहम चोटियों पर जीत हासिल की। साल 1983 में केएम करिअप्पा को फील्ड मार्शल की उपाधि से सम्मानित किया गया. सेना से रिटायरमेंट के बाद फील्ड मार्शल करिअप्पा ने ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में बतौर भारतीय हाई कमिश्नर भी अपनी सेवाएं दी. 5 मई 1993 को फील्ड मार्शल करिअप्पा का निधन हो गया।
भारतीय सेना का गठन 1776 में ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा कोलकाता में किया गया था। भारतीय सेना चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका सहित दुनिया की तीन सबसे बड़ी सेनाओं में से एक है। सियाचिन ग्लेशियर पर भारतीय सेना तैनात है जो समुद्र तल से पांच हजार मीटर ऊपर है। यह दुनिया का सबसे ऊंचा युद्धक्षेत्र है। भारतीय सेना का आदर्श वाक्य ‘स्वयं से पहले सेवा’ है। भारत के पास दुनिया की सबसे बड़ी स्वयंसेवी सेना है। भारतीय सेना का ‘ऑपरेशन राहत’ 2013 में उत्तराखंड बाढ़ के दौरान सबसे बड़े राहत कार्यों में से एक था।

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