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MP: कैबिनेट की बैठक में अहम फैसला, प्रदेश में अपराध को रोकने के लिए इन धारोंओं में मामूली बदलाव करने का आदेश

नर्इ दिल्‍ली (New Dehli)। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री (Chief Minister of Madhya Pradesh)की कुर्सी संभालने के बाद डॉक्टर मोहन यादव (Dr. Mohan Yadav)ने कैबिनेट की बैठक (cabinet meeting)में एक अहम फैसला(Decision) लिया है. सीएम मोहद यादव के मुताबिक, मध्य प्रदेश में अपराधियों को सलाखों के पीछे पहुंचाने के लिए सीआरपीसी की धारा 437, 438, 439 की जमानत रद्द करवा कर अपराधियों के हौसलों पर पानी फेरा जाएगा. हालांकि इस घोषणा के बाद इस प्रकार के मामले अभी संज्ञान में नहीं आए हैं, जिसमें पुलिस ने जमानत रद्द करवाने के लिए अदालत में आवेदन दिया हो.


दंड प्रक्रिया संहिता सीआरपीसी की धारा 437, 438, 439 में जमानत पाने का प्रावधान है. एडवोकेट वीरेंद्र शर्मा के मुताबिक, 438 में संदिग्ध आरोपी को अग्रिम जमानत हासिल करने का अधिकार है. जबकि 437 धारा में निचली अदालत से जमानत मिलती है. इसी प्रकार धारा 439 में सेशन अथवा हाई कोर्ट के माध्यम से उस व्यक्ति को जमानत मिलती है, जिस पर पुलिस अपराधी होने का आरोप लगाती है. उन्होंने बताया कि मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव का फैसला समाज हित में है मगर जमानत देने अथवा नहीं देने का अधिकार माननीय न्यायालय के पास होता है.

एडवोकेट वीरेंद्र शर्मा ने इस संबंध में आगे बताया कि हालांकि उक्त धाराओं में जमानत के लिए आवेदन लगाए जाते हैं. उन्होंने यह भी बताया कि मुख्यमंत्री ने जिस तरीके से ऐलान किया है उसके अनुसार पुलिस द्वारा जमानत हासिल करने वाले व्यक्ति के खिलाफ न्यायालय में जमानत रद्द करने का आवेदन लगा सकती है. शासन को इस प्रकार के अधिकार है. आवेदन पर अंतिम फैसला न्यायालय का ही मान्य होगा.

अभी तक एक भी आवेदन नहीं आया सामने
हाई कोर्ट एडवोकेट खगेंद्र सिंह तोमर के मुताबिक, मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव के ऐलान के बाद अभी तक किसी भी बहुचर्चित मामले में इस प्रकार की जमानत निरस्त होने की बात मुख्यमंत्री के गृह नगर में ही सामने नहीं आई है. उन्होंने यह भी बताया कि मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव का फैसला स्वागत योग्य है, मगर इस फैसले पर अमल करना पुलिस का काम है. पुलिस जमाना रद्द करने के लिए आवेदन लगा सकती है. इसके बाद माननीय न्यायालय का फैसला सामने आएगा.

इन स्थितियों में हो सकती है जमानत रद्द
हाई कोर्ट एडवोकेट वीरेंद्र शर्मा के मुताबिक तीन प्रकार की स्थिति में अदालत जमानत रद्द भी कर सकती है. इनमें सबसे पहला मामला जमानत पाने के बाद आरोपी द्वारा साक्ष्य प्रभावित करना, पुलिस को जांच में सहयोग नहीं करना अथवा नए अपराध को जन्म देना. यह तीन ऐसे महत्वपूर्ण कारण है जिसके आधार पर जमानत रद्द किए जाने का अधिकार भी माननीय न्यायालय के पास होता है.

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