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नेपाल को भारी पड़ी चीन से करीबी, अमेरिका के इस एक फैसले से लग सकता है झटका


डेस्क: अमेरिका ने नेपाल (Nepal) से 28 फरवरी तक मिलेनियम चैलेंज कॉरपोरेशन (Millennium Challenge Corporation) के तहत प्रस्तावित अनुदान सहायता समझौते की पुष्टि करने का अनुरोध किया है. अमेरिका का कहना है कि अगर नेपाल 50 करोड़ अमेरिकी डॉलर की सहायता स्वीकार नहीं करता है तो वह उसके साथ अपने संबंधों की समीक्षा करेगा और ऐसा मानेगा कि यह समझौता चीन (China) की वजह से विफल हो गया. मिलेनियम चैलेंज कॉरपोरेशन (एमसीसी) समझौते के तहत अमेरिकी अनुदान सहायता स्वीकार करने के मुद्दे पर नेपाल के राजनीतिक दलों के बीच काफी मतभेद हैं.

जिनपर प्रतिनिधि सभा में विचार किया जा रहा है. गौरतलब है कि नेपाल और अमेरिका ने 2017 में एमसीसी समझौते पर हस्ताक्षर किए थे. अमेरिकी विदेश मंत्री के सहायक डोनाल्ड लू ने गुरुवार को इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा, सीपीएन-माओवादी सेंटर के प्रमुख पुष्पकमल दहल ‘प्रचंड’ और मुख्य विपक्षी दल सीपीएन-यूएमएल के अध्यक्ष के पी शर्मा ओली के साथ टेलीफोन पर अलग-अलग बातचीत की थी. केंद्र सरकार की तरफ से इसपर सहमित बनाने के लिए कोशिशें की जा रही हैं.


डोनाल्ड लू ने नेपाल को चेतावनी दी
सत्तारूढ़ नेपाली कांग्रेस पार्टी के सूत्रों के अनुसार, डोनाल्ड लू ने चेतावनी दी कि ‘अगर नेपाली राजनीतिक नेतृत्व 28 फरवरी की निर्धारित समय सीमा के भीतर एमसीसी कॉम्पैक्ट अनुदान का समर्थन करने में विफल रहता है, तो अमेरिका को नेपाल के साथ अपने संबंधों की समीक्षा करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा.’ नेपाल और अमेरिका ने 50 करोड़ अमेरिकी डॉलर के एमसीसी समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं, जिसके तहत नेपाल में बिजली की लाइनों और राष्ट्रीय राजमार्गों के निर्माण समेत अन्य बुनियादी ढांचा संबंधी विकास परियोजनाओं को पूरा किया जाएगा. लेकिन खुद नेपाल ही इसे मंजूरी नहीं दे रहा है.

केपी शर्मा ओली की सरकार जिम्मेदार
इस समय अमेरिका और चीन के बीच तनाव चरम पर है. चीन इस देश पर अपना प्रभाव छोड़ने के लिए हर तरह की कोशिशें कर रहा है. जिसके चलते नेपाल के अमेरिका के साथ संबंध खराब हो सकते हैं. नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को भी काफी हद तक इन सबके लिए जिम्मेदार माना जाता है. वह हमेशा से ही चीन समर्थक रहे हैं. यही वजह है कि 2017 में समझौता होने के बावजूद भी उसकी पुष्टि नहीं की गई है. हालांकि अब यहां के प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा हैं, जो चीन समर्थक नहीं माने जाते है. उनकी सरकार लगातार समझौते पर सहमति के लिए कोशिशें कर रही है.

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