ब्‍लॉगर

भारत के लिए खुले नए रास्ते

– डॉ. वेदप्रताप वैदिक

भारत और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) के बीच जो व्यापारिक समझौता अभी-अभी हुआ है, वह इतना महत्वपूर्ण है कि कुछ ही वर्षों में हमारे इन दोनों देशों का व्यापार न सिर्फ दुगुना हो जाएगा बल्कि मैं यह कह दूं तो आश्चर्य नहीं होगा कि भारत का व्यापार और परस्पर विनिवेश शायद दुनिया में सबसे ज्यादा यूएई के साथ भी हो सकता है। इस समय दोनों का आपसी व्यापार 50 बिलियन डाॅलर के आसपास है। इसे 100 बिलियन डाॅलर होने में पांच साल भी नहीं लगेंगे, क्योंकि यूएई अपने आप में छोटा देश है लेकिन यह सारे अरब देशों और सारे अफ्रीकी महाद्वीप का मुहाना है। इसके जरिए आप इन दोनों क्षेत्रों में आसानी से पहुंच सकते हैं। दूसरे शब्दों में अबू धाबी से व्यापार करने का अर्थ है, दर्जनों देशों से लगभग सीधे जुड़ना।

भारत का ज्यादातर माल जो कराची और लाहौर के बाजारों में बिकता है, वह कहां से आता है? वह दुबई से ही निर्यात होता है। यूएई में भारत के लगभग 40 लाख लोग रहते हैं। एक करोड़ की जनसंख्या में 40 लाख भारतीय, 15 लाख पाकिस्तानी और शेष पड़ोसी राष्ट्रों के लाखों नागरिकों को दुबई-अबूधाबी में देखकर यह लगता ही नहीं है कि हम विदेश में हैं। यूएई छोटा-मोटा भारत ही लगता है। ऐसा भारत जो संपन्न है, सुशिक्षित है और जिसमें सांप्रदायिक सद्भाव है। यूएई एक मुस्लिम राष्ट्र होते हुए भी भारत की तरह अत्यंत उदार और सर्वसमावेशी राष्ट्र है। इसमें रहनेवाले प्रत्येक व्यक्ति को अपने धर्म पालन की पूर्ण स्वतंत्रता है।

अबूधाबी के शेख नाह्यान मुबारक भारतीयों के बीच अत्यंत लोकप्रिय हैं। वे स्वयं मुझे कई बार मंदिरों में साथ लेकर गए हैं। वे अपनी मजलिसों के प्रीति-भोज कई बार हमारी खातिर शुद्ध शाकाहारी भी रखते हैं। हमारे व्यापार मंत्री पीयूष गोयल ने वहां जाकर जो एतिहासिक व्यापारिक समझौता किया है, वह भारत के व्यापार को तो बढ़ाएगा ही, वह लगभग डेढ़ लाख नए रोजगार भी पैदा करेगा। भारत के 90 प्रतिशत निर्यात पर कोई टैक्स नहीं लगेगा। कुछ ही वर्षों में यह कर-मुक्ति शत-प्रतिशत हो जाएगी।

पिछले दिनों जम्मू-कश्मीर के उप-राज्यपाल मनोज सिन्हा भी दुबई गए थे। उन्होंने विनियोग के लिए कश्मीर के दरवाजे खोल दिए हैं। जब यूएई के करोड़ों-अरबों रु. कश्मीर में लगने लगेंगे तो कश्मीर की हालत कहीं बेहतर हो जाएगी। यूएई और सउदी अरब, दोनों ने धारा 370 के मामले में पाकिस्तान की आवाज में आवाज नहीं मिलाई है। वे अब भारत के ज्यादा नजदीक आते जा रहे हैं।

भारत और यूएई एक-दूसरे के इतने नजदीक आते जा रहे हैं कि मैं तो सोचता हूं कि सात देशों के इस यूएई संघ को भी जन-दक्षेस के 16 देशों में जोड़ लिया जाना चाहिए। आजकल पिछले छह-सात साल से चले भारत-पाक विवाद के कारण दक्षेस (सार्क) ठप्प हो गया है। इसका विकल्प जन-दक्षेस ही है। जन-दक्षेस में दक्षेस के आठ राष्ट्रों के अलावा म्यांमार, ईरान, मॉरिशस और मध्य एशिया के पांचों गणतंत्रों के साथ-साथ यदि यूएई को भी जोड़ लिया जाए तो यह यूरोपीय संघ से भी ज्यादा शक्तिशाली महासंघ बन सकता है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और जाने-माने स्तंभकार हैं।)

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