मुरैना। आचार्य विन्रम सागर महाराज (Acharya Vinram Sagar Maharaj) ने कहा है कि अच्छे और बड़े कामों में विघ्न तो आते हैं,लेकिन जो व्यक्ति धैर्य से काम लेता है वह विघ्नों को पार कर सफलता को प्राप्त करता है। आचार्यश्री (Acharyashree) रविवार को जैन बगीची में चातुर्मास आयोजन के दौरान आयोजित श्री भक्तांबर शिविर में प्रवचन दे रहे थे।
उन्होंने संक्षिप्त प्रवचन में कहा कि कमल दो तरह के होते हैं एक दिन में खिलता और दूसरा रात में। कई बार दिन में बदली आ जाने से सूरज की रोशनी छुप जाती है। इसी प्रकार जीवन में जब राहू की दशा आती है और कष्ट आने लगते हैं तब बुद्धि काम करना बंद कर देती है। यह स्थिति सदैव नहीं रहती। जैसे बदली छंटती है और सूरज निकलता है वैसे ही राहू का प्रभाव भी समाप्त होता है।
आचार्यश्री ने कहा कि अशुभ कर्म के उदय से जीवन में कई बार ऐसी स्थिति बनती है जब चारों और निराशा दिखाई देती है। यह समय परीक्षा और धैर्य का समय है। उन्होंने कहा कि श्री भक्तांबर पाठ के स्मरण से बड़े-बड़े संकटों से मुक्ति मिलती है इसलिए प्रतिदिन घरों में सामूहिक रूप से भक्तांबर पाठ का वाचन होना चाहिए।
इस अवसर पर महेश चंद जैन,मीतेश कुमार जैन ने आचार्यश्री का पाद प्रच्छालन किया वहीं परेड स्थित जैन मंदिर के चौके में आचार्यश्री ने आहार ग्रहण किया। प्रवचन कार्यक्रम के दौरान बड़ी संख्या में नगर वासी आचार्यश्री के दर्शन के लिए पहुंचे और आचार्य श्री को श्रीफल भेंट कर अपने परिवार और अपने क्षेत्र की जनता के लिए आशीर्वाद मांगा।
भक्तांबर शिविर के संयोजक विमल जैन राजू ने बताया कि आचार्य विन्रम सागर जी महाराज सुबह लगभग चार बजे जाग जाते हैं। लगभग दो घंटे प्रतिक्रमण व भक्ति के बाद 6 बजे गुरू भक्ति होती है। गुरू भक्ति में आचार्यश्री उनके शिष्य मुनिगण और आम लोग भी रहते हैं। सुबह 6.00 बजे आचार्यश्री शौच के लिए जाते हैं। इस दौरान भक्त उनके साथ होते हैं। 7.30 से 8.30 बजे तक वे अपने शिष्य मुनियों को पढ़ाते हैं। 9 बजे से 9.30 बजे तक मुख्य पंडाल में आचार्यश्री का पाद प्रच्छालन, उनकी पूजन एवं संक्षिप्त प्रवचन होते हैं। 9.45 बजे मुनिसंघ आहार के लिए रवाना होते हैं। दोपहर 11.30 बजे ईर्यापद भक्ति होती है। दोपहर 12 से 2.00 बजे तक ध्यान और सामयिक होती है। 2 बजे से 2.45 बजे तक आचार्यश्री स्वाध्याय करते हैं। 2.45 से 4 बजे तक मुख्य पंडाल में चर्चा शुरू होती है। इसमें मुनि और आमजन शामिल होते हैं। शाम 5 बजे से प्रतिकमण। 6.00 बजे गुरू भक्ति और आरती की जाती है। इसके बाद आचार्यश्री ध्यान और सामयिक करते हैं। तत्पश्चात विश्राम के लिए जाते हैं।
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