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आज ही दिन जब एक झटके में 14 प्राइवेट बैंक हो गए सरकारी, तब इंदिरा गांधी ने तोड़ी थी अपनी…

डेस्क। साल 1969, इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) को प्रधानमंत्री (PM) बने तीन साल हो गए थे, लेकिन अब तक वो ‘गूंगी गुड़िया’ की छवि को तोड़ने में सफल नहीं हो सकी थीं. विपक्ष उन्हें कांग्रेस (Congress) सिंडिकेट की ‘गूंगी गुड़िया’ कहकर लगातार हमलावर रहता. इंदिरा कांग्रेस के ओल्ड गार्ड (पुराने नेताओं) से जूझ रही थीं. मगर इंदिरा के एक फैसले ने उन्हें गरीबों की मसीहा वाले नेताओं की पंक्ति में लाकर खड़ा कर दिया.

इंदिरा सरकार ने 19 जुलाई 1969 को देश के 14 बड़े निजी बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर दिया. अर्थव्यवस्था के लिए लिया गया यह अहम फैसला सियासी भी कम नहीं था. इंदिरा ने अपनी छवि को चमकाने के लिए बैंकों के राष्ट्रीयकरण का फैसला लिया. इसपर लोगों की राय बंटी हुई दिखती है. मगर इंदिरा इसके बाद कांग्रेस के भीतर ताकतवर होती चली गईं. एक सच्चाई यह भी है कि 1960 के दशक में देश के प्राइवेट बैंक (Private Bank) नाकाम हो रहे थे.

14 बड़े बैंकों के पास देश की 70 फीसदी पूंजी
बताया जाता है कि सरकार को ऐसा लगने लगा था कि प्राइवेट बैंक देश की प्रगति में सहयोग नहीं कर रहे हैं. वो मुनाफे वाले सेक्टर में ही निवेश कर रहे हैं. वहीं, सरकार चाहती थी कि निवेश कृषि, लघु उद्योग और निर्यात में हो. एक रिपोर्ट के मुताबिक, तब 14 बड़े बैंकों के पास लगभग 70 फीसदी पूंजी थी.


इंदिरा गांधी और बैंकों का राष्ट्रीयकरण
12 जुलाई 1969 को इंदिरा गांधी ने कांग्रेस के बैंगलोर अधिवेशन में बैंकों के राष्ट्रीयकरण को जरूरी बताया था. मगर किसी को इस बात का आभास तक नहीं था कि वो इतनी जल्दी ही इस फैसले पर मुहर लगा देंगी. मगर इंदिरा इस फैसले को जल्द से जल्द लेना चाहती थीं, क्योंकि राष्ट्रपति डॉ जाकिर हुसैन की अचानक मौत के बाद कार्यकारी राष्ट्रपति वी वी गिरि 20 जुलाई को इस्तीफा देने वाले थे.

वित्त मंत्री मोरारजी देसाई थे फैसले के खिलाफ
इंदिरा के बैंकों के राष्ट्रीयकरण के फैसले से तत्कालीन वित्त मंत्री मोरारजी देसाई सहमत नहीं थे. इंदिरा को लगातार मोरारजी के विरोध का सामना करना पड़ा रहा था. मगर इस बीच मोरारजी देसाई और उनके बेटे कांति देसाई पर वित्तीय गड़बड़ियां और कुछ उद्योग घरानों को फायदा पंहुचाने का आरोप लग गया. ये बेहद ही नाटकीय तरीके से हुआ. इंदिरा ने फौरन मोरारजी के मंत्रीमंडल बदलने के आदेश दिए. मगर देसाई तैयार नहीं हुए और उन्होंने कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया.

अब इंदिरा के राष्ट्रीयकरण के फैसले में कोई मुश्किलें नहीं थीं. बस वो राष्ट्रपति वी वी गिरि के इस्तीफे से पहले बैंकों के राष्ट्रीयकरण के फैसले पर मुहर लगवा लेना चाहती थीं. तब बैंकिंग के डिप्टी सेक्रेटरी रहे डी एन घोष ने अपनी किताब ‘नो रिग्रेट्स’ में लिखा- “इंदिरा गांधी के मुख्य सचिव पी एन हक्सर आरबीआई के डिप्टी गवर्नर ए बख्शी और मुझे बैंकों राष्ट्रीयकरण के लिए विधेयक के डॉक्यूमेंट को तैयार करने के लिए कहा गया. बैंकों के राष्ट्रीयकरण जैसे बड़े आर्थिक फैसले में आरबीआई के गवर्नर और वित्त मंत्रालय के सचिव तक को नहीं शामिल किया गया.”


क्या थी बैंकों के कर्ज बांटने की स्थिति
लोगों को बताया गया कि इस फैसले से ग्रामीण इलाकों में लोगों को आसानी से कर्ज मिल सकेगा. एक रिपोर्ट के अनुसार, 1951 से 1968 के दौरान बैंकों ने जितने कर्ज बांटे थे, उनमें कंपनियों की हिस्सेदारी 68 फीसदी हो गई थी. वहीं, कृषि क्षेत्र को कुल बैंक कर्ज का करीब 2 फीसदी हिस्सा ही मिला था.

बैंकों के राष्ट्रीयकरण का ऐलान
24 घंटे के अंदर विधेयक को तैयार किया गया. प्रधानमंत्री गांधी ने 19 जुलाई की शाम कैबिनेट की बैठक बुलाई और विधेयक को मंजूरी मिल गई. कुछ ही घंटों की भीतर राष्ट्रपति गिरि की मुहर भी इसपर लग गई. फिर इंदिरा गांधी ने करीब 8:30 बजे देश को संबोधित कर देश 14 बड़े निजी बैंकों का राष्ट्रीयकरण का ऐलान कर दिया. 14 ऐसे बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया, जिनका डिपॉजिट बेस 50 करोड़ रुपये से अधिक था.

राष्ट्रीयकरण के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई. मगर कोर्ट सरकार के फैसले पर रोक लगा दी. मगर इंदिरा गांधी ने चार दिन बाद ही नया अध्यादेश लाकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को निषप्रभावी कर दिया. बाद में बैंकिंग कंपनीज (एक्विजिशन एंड ट्रांसफर ऑफ अंडरटेकिंग्स) एक्ट, 1970 पारित हो गया. साल 1980 में बैंकों के राष्ट्रीयकरण का दूसरा दौर चला जिसमें और 6 निजी बैंकों पर सरकार ने अपना अधिकार जमा लिया.

इंदिरा और कांग्रेस के बीच तकरार
इधर मोरारजी के कैबिनेट से बाहर निकाले जाने पर कांग्रेस सिंडिकेट इंदिरा से नाराज हो गया. इंदिरा के साथ कांग्रेस सिंडिकेट के रिश्ते के बिगड़ने की रही-सही कसर राष्ट्रपति के चुनाव ने पूरा कर दिया. जब कांग्रेस के उम्मीदवार नीलम संजीव रेड्डी के बजाय इंदिरा ने अपने गुट के नेताओं से निर्दलीय कैंडिडेट वीवी गिरी के पक्ष में माहौल तैयार करने को कहा. नतीजतन वीवी गिरी चुनाव जीत गए. इसके बाद कांग्रेस संगठन और इंदिरा के बीच टकराव तेज हो गए.

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