- सदन में विधायकों के सवालों का नहीं मिलता जवाब
भोपाल। लोकतंत्र के सबसे बड़े मंदिर विधानसभा में माना जाता है कि यहां सवाल पूछे जाएंगे तो सरकार जरूर देगी। लेकिन सरकार कई सवालों के जवाब लगातार टालती आ रही है। विधायकों को कहना है कि यह सीधे-सीधे उनके हक पर प्रहार है। क्योंकि सदन में विधायकों का सबसे बड़ा अधिकार सवाल पूछने का है, लेकिन उन्हें उसी के जवाब नहीं मिल रहे हैं। जानकारी के अनुसार 2019 से अबतक 500 सवालों का एक जवाब मिला है कि जानकारी जुटाई जा रही है। मप्र विधानसभा में गतदिनों विभागों की तरफ से विधायकों के प्रश्नों का द्वारा उत्तर नहीं देने का मुद्दा उठा। प्रश्नकाल में विधायक रामचंद्र दांगी ने कहा कि पिछले तीन साल से वे मुख्यमंत्री, मंत्रियों और केंद्रीय मंत्रियों को पत्र लिखकर थक चुके हैं, लेकिन कोई भी जवाब नहीं देता है। इसलिए अध्यक्ष इस मामले में व्यवस्था तय करें। नेता प्रतिपक्ष गोविंद सिंह ने भी इस पर कहा कि पूर्व मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा के समय तक यह व्यवस्था लागू थी, बाद में अधिकारियों ने विधायकों-सांसदों के प्रश्नों का जवाब देने संबंधी जीएडी के निर्देश पर अमल नहीं कर रहे। मैं नेता प्रतिपक्ष हूं, मेरे प्रश्नों का भी उत्तर अधिकारी समय पर नहीं देते।
गौरतलब है कि 27 फरवरी से चल रहे मप्र विधानसभा के बजट सत्र में रोजाना हंगामा हो रहा है। अगर विधानसभा के सत्रों का आकलन करें तो हम पाते हैं कि जनता के मुद्दों की चर्चा के लिए सदन हंगामे की भेंट चढ़ा है। विधायकों के सवालों को जुटाने के लिए राजधानी भोपाल से लेकर गांव तक अमला जुटता है। सवाल के जवाब के लिए अधिकतम 50 हजार रुपये का खर्च आता है, पर हंगामे के चलते सवालों के जवाब सार्वजनिक नहीं हो पाते हैं। मप्र विधानसभा के बजट सत्र में सैकड़ों सवालों के आसपास जवाब तैयार किए गए, लेकिन जवाब सार्वजनिक नहीं हो सके और ये विधायकों के हंगामे के चलते हुआ है।
एक उत्तर की जानकारी मिली जुटाई जा रही
अधिकांश विधायकों का दर्द यह है कि वे बड़ी उम्मीद के साथ कोई सवाल लगाते हैं, लेकिन उनका जवाब नहीं मिलता है। मिली जानकारी के अनुसार 2019 से अब तक एक जैसे 500 सवालों का एक ही जवाब जानकारी जुटा रहे। मंदसौर गोलीकांड पर 100 सवाल एक जवाब कार्रवाई कार्यवाही प्रक्रियाधीन। उदाहरण के लिए विधानसभा में पूछे गए सवाल क्रमांक 1277 का जवाब जुटाने में लगभग 10 हजार रुपए तक खर्च हुए। यह सवाल कांग्रेस विधायक महेश परमार का है। जिसमें उन्होंने प्रदेश की सड़कों के बारे में पूछा है। लोक निर्माण विभाग में इसका जवाब 5 हजार पेज में तैयार किया है। विधायकों को ज्यादातर राज्य में हुए घोटालों, सरकारी योजनाओं की असफलता, अनाब-शनाब खर्च से जुड़े हैं। इन सवालों के जवाब नहीं मिले हैं, जिसके जवाब आने और जनता के बीच जाने से सरकार की किरकिरी होती। इस किरकिरी से बचने के लिए सरकार लगातार सवालों के जवाब टालती रही। कुछ सवाल तो इस 14वीं विधानसभा के शुरूआत के हैं। गौरतलब हे कि सत्र की अधिसूचना के साथ ही विधायक लिखित सवाल विधानसभा सचिवालय को देते हैं। सचिवालय इनके जवाब सरकार से लेकर पुस्तक के रूप में प्रकाशित करता है। सदन में ये जवाब पेश होते हैं। मंत्री जवाब देते हैं। यदि एक सत्र में कोई जवाब नहीं आता तो उसे अगले सत्र में पेश करना अनिवार्य होता है, लेकिन विभाग इसमें लापरवाही करते हैं।
विधानसभा की कार्यवाही में हर घंटे ढाई लाख खर्च
गौरतलब है कि जनता के टैक्स के पैसे से जवाब तैयार होता है। बता दें कि विधायकों की एक सवाल की कीमत औसतन हजारों में है। सदन में पूछे गए कुछ सवालों के जवाब जुटाने में गांव से भी जानकारी मंगाई जाती है। विधानसभा की कार्यवाही में हर घंटे ढाई लाख रुपये तक का खर्च आता है। इस हिसाब से यदि 5 घंटे सदन चला तो कुल खर्च 12.50 लाख तक आता है। मप्र विधानसभा के बजट सत्र में 3,500 से ज्यादा सवाल पूछे गए हैं। विधायक द्वारा पूछे गए किसी एक सवाल का जवाब तैयार करने में विधायक उनके स्टाफ का वेतन, विधानसभा के स्टाफ, संभाग और जिला स्तर पर खर्च होने वाला खर्च शामिल है। इसमें कर्मचारी का वेतन, विशेष भत्ता फोटोकॉपी डाक या व्यक्ति द्वारा दस्तावेज भोपाल ले जाने का खर्च शामिल है।