इंदौर न्यूज़ (Indore News)

दो लाख तक के ऑनलाइन फ्रॉड के मामले अब थाने में ही होंगे दर्ज

थाने जवाबदारी से नहीं बच सकेंगे, बड़े मामले साइबर सेल देखेगी
इंदौर। अब तक थाने वाले साइबर फ्रॉड (Cyber Fraud) की शिकायतें दर्ज करने में आनाकानी करते थे और फरियादी को साइबर सेल या क्राइम ब्रांच भेज देते थे, लेकिन अब वे अपनी जवाबदारी से बच नहीं सकेंगे। डीजीपी ने आदेश दिया है कि अब दो लाख तक की ठगी की शिकायत संबंधित थाने में ही दर्ज होगी। इससे बड़े फ्रॉड साइबर सेल और क्राइम ब्रांच देखेगी।
साइबर अपराधों में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। इसका प्रमाण यह है कि शहर में रोजाना चार से पांच शिकायतें साइबर सेल (Cyber Cell), क्राइम ब्रांच (Crime Branch) के पास पहुंचती हैं। हालांकि इनमें से कुछ ही मामलों में केस दर्ज हो पाता है। अब तक थाने वाले साइबर ठगी के शिकार लोगों को साइबर सेल (Cyber Cell) या क्राइम ब्रांच भेज देते थे, लेकिन अब ऐसा नहीं हो सकेगा। कुछ दिन पहले डीजीपी ने एक आदेश जारी किया है, जिसको सभी जिलों के डीआईजी और एसपी को भेजा गया है। उसमें कहा गया है कि दो लाख तक के ठगी के मामलों की जांच थाना स्तर पर ही होगी। इससे बड़े मामले साइबर सेल (Cyber Cell)  और क्राइम ब्रांच देखेगी। इस आदेश के बाद ऐसे सभी मामले अब जिस क्षेत्र का फरियादी है उसी क्षेत्र के थाने में दर्ज होंगे। यदि शिकायतकर्ता सीधे साइबर सेल या क्राइम ब्रांच (Crime Branch)  पहुंचता है तो वहां उनकी शिकायत ले तो लेंगे, लेकिन संबंधित थाने को भेज देंगे। डीजीपी के इस आदेश के बाद कई लोग सायबर ठगी का शिकार होने के बाद इधर उधर के चक्कर काटने से बचेंगे और उन्हें आसानी से न्याय मिल सकेगा।
बाहरी गिरोह होने से बचते हैं थाने वाले
सूत्रों के अनुसार साइबर ठगी (cyber fraud) के मामलों में आरोपी बाहरी होते हैं और इसकी जांच में भी कॉल डिटेल (Call Detail), अकाउंट की जानकारी लेना होती है, इसके चलते अब तक थाने पर इस तरह के मामले नहीं लिए जाते थे। वहीं इन मामलों में पुलिस के हाथ कुछ आता भी नहीं है। इसके चलते वे फरियादी को साइबर सेल या फिर क्राइम ब्रांच भेज देते थे, लेकिन अब दो लाख तक के मामले की जांच थानों को ही करना होगी।
दस प्रतिशत मामलों में भी नहीं होता है केस दर्ज
साइबर ठगी (cyber fraud) के मामले इंदौर में चार-पांच आते हैं। इस हिसाब से सौ से अधिक मामले हर माह पुलिस के पास आते हैं, लेकिन इनमें से दस प्रतिशत मामलों में ही बमुश्किल केस दर्ज हो पाता है। बाकी में केवल शिकायत लेकर जांच की जाती है। बताते हैं कि बढ़ते मामलों को देखते हुए यह आदेश जारी किया गया है, ताकि लोगों को न्याय मिल सके और आरोपी पकड़े जा सकें।

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