खरी-खरी

अनाथों के नाथ… मरते मरीजों के लिए बन जाइए जगन्नाथ

 

 

मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने कोरोना काल में अनाथ हुए बच्चों के लिए पेंशन योजना का ऐलान करने के साथ ही बेसहारा हुए लोगों को नौकरी दिए जाने और काल के गाल में समाए सरकारी कर्मचारियों के बच्चों को अनुकम्पा नियुक्ति में लगाने की घोषणा कर कई परिवारों पर टूटे गम के पहाड़ को थामने… आंसुओं में डूबे हुए चेहरों पर मुस्कान लाने… निराश हुई जिंदगी में आशा का दीप जलाने और अनाथ हुए बच्चों को नाथ होने का एहसास कराते हुए अपनी संवेदनशीलता का जो मर्म दिखाया… बच्चों के मामा होने का जिस तरह फर्ज निभाया… गरीबों और बेसहाराओं को जो अपनापन दिखाया उसे कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने अपनाया… कई प्रदेश के मुखियाओं ने शिव के राज की इस दरियादिली को अपनाया… विपदा की इस घड़ी में टूट चुके लोग जहां आसरा खोज रहे हैं, वहीं मरते हुए लोग जिंदगी के संघर्ष मेें लगे हैं… कहर बरपाता कोरोना इस बार कुछ इस तरह भयानक हुआ कि जो मरीज कोरोना से ठीक हुए वो दूसरी मुसीबत में फंस गए… कोई आंख गंवा रहा है तो कोई जान गंवा रहा है… त्रासदी का यह भीषण संकट देखा नहीं जा रहा है… ऐसे में फिर एक बार हर हाथ अनाथ बच्चों के नाथ बने जगन्नाथ से सहारा मांग रहे हैं… मरते, तड़पते लोग दवाओं के लिए दुआएं मांग रहे हैं… शिवराज यदि जोर लगाएं… देश में न मिले तो विदेशों से मंगाएं… जहां से हो सके वहां से जीवन मंगाएं… इंजेक्शन जुटाएं… इस प्रदेश के लोग अपनी जान तो क्या अपनी आंखों की रोशनी न गंवाएं… जीवन का अंधकार जिंदगी से भारी पड़ता है… ठोकरें खाकर कोई कैसे जी सकता है… आंखें जाने के बाद का जीवन बहुत दूभर होता है… मुश्किल तो यह है कि इस अंधकार को भी स्वीकार करने वाले लोग अपनी जान बचाने का इलाज तक हासिल नहीं कर पा रहे हैं… एक इंजेक्शन मौत को मात दे सकता है, लेकिन यहां तो जिंदगियां मात खा रही हैं… आंख तो आंख जिंदगी तक नहीं बच पा रही है… प्रदेश को इस कलंक से इस प्रदेश का मुखिया ही बचा सकता है… इसीलिए एक मरते बच्चे की मां, पत्नी का सिंदूर और बहन की राखी गुहार लगा रही है… तीसरा नेत्र खोलने के लिए शिवराज को जगा रही है… बच्चों के नाथ बने शिवराज के लिए जगन्नाथ बनकर उन जिंदगियों को बचाएं कोई बड़ा काम नहीं है… यदि ठान लें तो जीवन का संघर्षकरते मरीजों के लिए समुद्र मंथन कर शिवराज अमृत बनी दवा ला सकते हैं… सैकड़ों जिंदगी बचा सकते हैं… उस मां की बातों का मतलब जान सकते हैं कि सरकार के लिए एक-दो दिन केवल वक्त है, पर मरते मरीज के लिए वो वक्त ही तो जिंदगी और मौत है… इसीलिए वक्त न लगाइए… इलाज पहुंचाइए…

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