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आर्य के नाम पर ओवैसी का झूठ, निशाने पर आरएसएस और मोदी

– डॉ. मयंक चतुर्वेदी

ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने एक बार फिर आर्यन थ्योरी का जिक्र करके एक नए विवाद को जन्म दिया है। वैसे तो उनकी जुबानी चालाकियों से सभी परिचित हैं। किंतु इस बार उन्होंने खुले तौर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को आर्यन होने से भारतीय मूल का नहीं होकर विदेशी हो जाने की बात उठाकर प्रश्न खड़े किए हैं । वस्तुत: यही आज सबसे बड़ा विषय है कि जिस आर्यन थ्योरी को वैज्ञानिक भी नकार चुके हैं, उसे आज भी असदुद्दीन ओवैसी हवा दे रहे हैं ।


वस्तुत: वरिष्ठ पत्रकार रजत शर्मा के शो में असदुद्दीन ओवैसी ने एक प्रश्न के जवाब में बोला, ”मैं चाहता हूं कि मेरा डीएनए करा लीजिए, और नरेंद्र मोदी जी का भी करा लीजिए। आरएसएस के लोगों का करा लीजिए। कौन आर्यन है और कौन इस देश का है, मालूम हो जाएगा आपको।…” उनके यह कहने के साथ ही साफ हो गया कि वे अपने लोगों के बीच और अन्य जो भी उनके संपर्क में आते हैं, उन्हें वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के लोगों को आर्य संबोधित कर यह बताने का प्रयास अब भी कर रहे हैं कि वे भारत के मूल निवासी नहीं, बल्कि बाहर से आकर यहां कब्जा करके बैठ गए हैं। आश्चर्य होता है यह जानकर कि लगातार संसद सदस्य रहने और कानून की पढ़ाई करने के बाद भी उन्हें यह बात नहीं पता कि ‘आर्यन थ्योरी’ पूरी तरह असत्य साबित हो चुकी है। यह कुछ अंग्रेजों की शरारत थी जिसे हवा देने का काम भारत में इतिहास लिखते वक्त वामपंथी शिक्षाविदों ने भी किया।

एतिहासिक तथ्य यह है कि देश में स्वतंत्रता के लिए संघर्ष कर रहे भारतीयों को आपस में लड़ाने के लिए मैक्स मूलर, विलियम हंटर और लॉर्ड टॉमस बैबिंग्टन मैकॉले इन तीन लोगों ने भारत के इतिहास का विकृतिकरण आरंभ किया और यह कहना शुरू किया कि भारतीय इतिहास की शुरुआत सिंधु घाटी की सभ्यता से होती है, जिसमें कि सिंधु घाटी के लोग द्रविड़ थे । आर्यों ने बाहर से आकर सिंधु सभ्यता को नष्ट करके अपना राज्य स्थापित किया। 1500 ईसा पूर्व से 500 ईस्वीं पूर्व के बीच के काल को अंग्रेजों ने आर्यों का काल घोषित कर दिया था ।

आश्चर्य की बात है कि जिस इतिहास और शोध के दावों के आधार पर अंग्रेज इस ”आर्यन इन्वेजन थ्योरी” को गढ़ रहे थे, उसका कोई मूल तथ्य कभी प्रस्तुत नहीं कर पाए। इनमें से किसी ने कहा कि आर्य मध्य एशिया के रहने वाले थे, कोई इन्हें साइबेरिया, मंगोलिया, ट्रांस कोकेशिया या स्कैंडेनेविया का मूल निवासी बता रहा था। आर्य बाहर से यानी कहां से आए ? उसका कोई सटीक उत्तर कभी किसी के पास नहीं रहा।

हां, हम भारतीयों के लिए जरूर यह गर्व करने की बात है कि जिस व्यवस्थित सिन्धु सभ्यता की बात की जाती है, वह भी आज दुनिया में सबसे प्राचीनतम सिद्ध हो चुकी है। आईआईटी खड़गपुर और भारतीय पुरातत्व विभाग के वैज्ञानिकों ने सिन्धु घाटी सभ्यता की प्राचीनता को लेकर विस्तार से बहुत कुछ बताया है। उनके शोध के निष्कर्ष हैं कि अंग्रेजों के अनुसार 2600 ईसा पूर्व की यह नगर सभ्यता नहीं या कुछ इतिहासकारों के अनुसार पांच हजार पांच सौ साल पुरानी यह नहीं है, बल्कि आठ हजार साल पुरानी सभ्यता है। यह सिन्धु सभ्यता मिस्र और मेसोपोटामिया की सभ्यता से भी पहले की है। जहां टाउन-प्लानिंग थी, भोजन की बड़ी-बड़ी रसोई थीं, बैठक के स्थान थे, कपड़े थे, चांदी और तांबे का उपयोग था। लोग शतरंज का खेल भी जानते थे और वे लोहे का उपयोग भी करते थे। यहां से प्राप्त मुहरों को सर्वोत्तम कलाकृतियों का दर्जा प्राप्त है, यानि इस सभ्यता में लोग कला पारखी भी थे।

नए शोध यह भी कहते हैं कि आर्य आक्रमण भारतीय इतिहास के किसी कालखण्ड में घटित नहीं हुआ और ना ही आर्य तथा द्रविड़ नामक दो पृथक मानव नस्लों का अस्तित्व ही कभी धरती पर रहा है। डीएनए गुणसूत्र पर आधारित शोध जिसे कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ. कीवीसील्ड के निर्देशन में फिनलैण्ड के तारतू विश्वविद्यालय, एस्टोनिया में भारतीयों के डीएनए गुणसूत्र पर आधारित है, जो यह सिद्ध करता है कि सारे भारतवासी गुणसूत्रों के आधार पर एक ही पूर्वजों की संतानें हैं। आर्य और द्रविड़ का कोई भेद गुणसूत्रों के आधार पर नहीं मिलता है और तो और जो अनुवांशिक गुणसूत्र भारतवासियों में पाए जाते हैं, वे डीएनए गुणसूत्र दुनिया के किसी अन्य देश में नहीं पाए गए।

शोध में भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका और नेपाल की जनसंख्या में विद्यमान लगभग सभी जातियों, उपजातियों, जनजातियों के लगभग 13000 नमूनों का परीक्षण किया गया था। जिसका परिणाम यही कह रहा है कि भारतीय उपमहाद्वीप में चाहे वह किसी भी धर्म को मानते हों, 99 प्रतिशत समान पूर्वजों की संतानें हैं। शोध में पाया गया है कि तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, आन्ध्रप्रदेश, की समस्त जातियों के डीएनए गुणसूत्र तथा उत्तर भारतीय जातियों के डीएनए का उत्पत्ति-आधार गुणसूत्र एक समान हैं।

अमेरिका में हार्वर्ड के विशेषज्ञों और भारत के विश्लेषकों ने भारत की प्राचीन जनसंख्या के जीनों के अध्ययन के बाद पाया कि सभी भारतीयों के बीच एक अनुवांशिक संबंध है। इससे यह भी सिद्ध होता है कि भारत में आर्य और द्रविड़ विवाद व्यर्थ है। उत्तर और दक्षिण भारतीय एक ही पूर्वजों की संतानें हैं।

कहना होगा कि दो शताब्दियां गुजर गईं इस झूठ को समझाने में कि आर्य जैसा कोई शब्द कभी विदेशियों के लिए रहा ही नहीं, जोकि भारत में बाहर से आकर कभी बसे हों। भाषा विज्ञान में आर्य का अर्थ उत्तम, पूज्य, मान्य, प्रतिष्ठित, धर्म एवं नियमों के प्रति निष्ठावान या श्रेष्ठ है। प्राचीन भारत में जो भी श्रेष्ठीजन थे, उन्हें आदर सूचक शब्द अर्थात आर्य कहकर संबोधित किया जाता था। आज यह बात पूरी तरह से सिद्ध भी हो चुकी है कि ”आर्यन इन्वेजन थ्योरी” असत्य है। फिर भी आज जिस तरह की भाषा असदुद्दीन ओवैसी बोल रहे हैं, उससे साफ जाहिर होता है कि वह कितने बड़े जूठे हैं और अपनी बात सिद्ध करने के लिए वे किस हद तक जा सकते हैं । राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एवं इससे जुड़े लोगों को आर्यन थ्योरी के नाम पर बार-बार भारत के बाहर का बता कर वह देश की आम जनता को गुमराह करने का जो प्रयास कर रहे हैं, यह देश हित में नहीं है। वास्तव में इस तरह का कृत्य भारत में नस्लीय उन्माद पैदा करने का प्रयास है। जिसे स्वीकार नहीं किया जा सकता है।

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