भोपाल। मध्यप्रदेश(Madhya Pradesh) में ऑक्सीजन के टैंकर (oxygen tankers) तय समय पर अस्पतालों (Hospitas) में पहुंच सकेंगे. इसके लिए सरकार ने बड़ा फैसला लिया है. सरकार अब मध्य प्रदेश में ऑक्सीजन के टैंकर ले जाने के लिए ग्रीन कॉरिडोर (green corridor) बना रही है. अब इन्हीं ग्रीन कोरिडोर(green corridor) से तय समय और बड़ी तेजी से ऑक्सीजन के टैंकर (oxygen tankers) अस्पतालों (Hospitas) तक पहुंच सकेंगे. इसके लिए सरकार ने पुलिस को पूरी जिम्मेदारी दी है.
पुलिस की पायलट गाड़ी टैंकर के आगे चलेंगे और बिना किसी रूकावट के तेजी से गंतव्य स्थल की ओर जा सकेंगे. ग्रीन कॉरिडोर के रास्ते भर पुलिस के पॉइंट तैनात रहेंगे. ट्रैफिक को रोक दिया जाएगा. इसके अलावा पुलिस के दो जवान ऑक्सीडेंट टैंकर में भी तैनात रहेंगे.
चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग (Medical Education Minister Vishwas Sarang)ने कहा कि भोपाल, इंदौर, जबलपुर और ग्वालियर के अलावा जिन जिलों में ऑक्सीजन की पूर्ति की जानी है. वहां पर ऑक्सीजन को अस्पताल तक पहुंचाने के लिए ग्रीन कॉरिडोर तैयार किए जाएंगे. पुलिस इसी ग्रीन कॉरिडोर से ऑक्सीजन के टैंकर को बिना रुकावट के तत्काल ले जा सकेगी. पुलिस की पायलट गाड़ी ऑक्सीजन टैंकर के सबसे आगे चलेगी. किसी ऑर्गन के लिए जिस तरीके से ग्रीन कॉरिडोर बनाया जाता है उसी तरीके से ऑक्सीजन के टैंकरों के लिए भी कोरिडोर बनाए जा रहे हैं. पुलिस पूरी तरह से यह सुनिश्चित करेगी कि बिना किसी भी रोक-टोक के तेज रफ्तार के साथ ऑक्सीजन टैंकर अस्पतालों में समय पर पहुंच सके.
केंद्र के सहयोग से मिली 450 मैट्रिक टन ऑक्सीजन
मध्यप्रदेश को केंद्र सरकार के सहयोग से 450 मैट्रिक टन आक्सीजन की आपूर्ति सुनिश्चित की जा रही है. मध्यप्रदेश को आईनॉक्स (गुजरात) से 120 मीट्रिक टन, आईनॉक्स (देवरी) से 40 मीट्रिक टन, आईनॉक्स (मोदीनगर) से 70 मीट्रिक टन, लिंडे (भिलाई) से 60 मीट्रिक टन, स्टील ऑथोरिटी ऑफ़ इंडिया (भिलाई) से 80 मीट्रिक टन, लिंडे (राउरकेला) से 40 मीट्रिक टन, स्टील ऑथोरिटी ऑफ़ इंडिया (राउरकेला) से 40 मीट्रिक टन समेत कुल – 450 मीट्रिक टन ऑक्सीजन मिलेगी.
क्या है ग्रीन कॉरिडोर
अचानक किसी को हार्ट अटैक आता है या कोई दुर्घटनाग्रस्त हो जाता है. ऐसे में शुरुआती पहले घंटे में उसका इलाज शुरू होना जरूरी है, लेकिन घटनास्थल और हॉस्पिटल के बीच भीड़ वाले रास्ते की दिक्कत है. इसके बावजूद एंबुलेंस रफ्तार से समय पर अस्पताल पहुंच जाए, जो जिंदगी बचने की उम्मीद कई गुना बढ़ जाती है. बड़े शहरों में एंबुलेंस के लिए इस तरह की व्यवस्था है. इसे ग्रीन कॉरिडोर नाम दिया जा गया है. भोपाल में भी एंबुलेंस के लिए ग्रीन कॉरिडोर की व्यवस्था है. इससे घटना के गोल्डन अवर में ही इलाज शुरू हो सकता है.