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24 रुपये प्रति लीटर तक बढ़ सकते हैं पेट्रोल-डीजल के दाम, छोटी-छोटी किस्तों में होगी बढ़ोतरी

नई दिल्ली। देश में पेट्रोलियम उत्पादों (petroleum products) की कीमत बढ़ने (increase price) का सिलसिला एक बार फिर चालू हो गया है। 2022 के मार्च महीने में 22 मार्च से लेकर अभी तक पेट्रोल और डीजल की कीमत (petrol and diesel price) में 80 पैसे की चार किस्तों में कुल 3.20 रुपये प्रति लीटर की बढ़ोतरी की जा चुकी है। 24 मार्च को छोड़कर शेष चारों दिन सरकारी ऑयल कंपनियों ने पेट्रोल और डीजल की कीमत में एक समान बढ़ोतरी की है। माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में सरकारी ऑयल कंपनियों को अपने संचित घाटे को पूरा करने के लिए पेट्रोल और डीजल की कीमतों में कम से कम 14 से 24 रुपये प्रति लीटर तक की बढ़ोतरी करनी पड़ सकती है। हालांकि ये बढ़ोतरी एक झटके में करने की जगह छोटी-छोटी किस्तों में की जाएंगी।


जानकारों का कहना है कि पहले कोरोना वायरस के संक्रमण की वजह से बनी वैश्विक परिस्थितियों के कारण और अब रूस और यूक्रेन के बीच के तनाव ने अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत पर काफी असर डाला है। कोरोना संक्रमण की वजह से 2019 में काफी नुकसान का सामना करने के बाद तेल उत्पादक देशों के संगठन ओपेक और उसके सहयोगी देशों ओपेक प्लस ने कच्चे तेल के उत्पादन में काफी कटौती कर दी थी। इसके कारण पिछले एक साल से कच्चे तेल की कीमत में लगातार तेजी का रुख बना हुआ है।

कच्चे तेल की कीमत में लगातार हो रही बढ़ोतरी के कारण 1 दिसंबर 2021 को ब्रेंट क्रूड की कीमत 68.87 डॉलर प्रति बैरल हो गई थी। उम्मीद की जा रही थी कि 2022 में ओपेक और ओपेक प्लस में शामिल देश कच्चे तेल के उत्पादन में बढ़ोतरी करेंगे, ताकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की उपलब्धता सामान्य हो सके। ऐसा होने से अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत में भी कमी आती, जिससे भारत जैसे कच्चे तेल के आयातक देशों को काफी राहत मिल सकती थी।

कमोडिटी मार्केट के एक्सपर्ट मयंक श्रीवास्तव का कहना है कि ओपेक और ओपेक प्लस में शामिल देशों की पिछली बैठक में कच्चे तेल का उत्पादन बढ़ाने की बात पर सहमति भी बनी थी, लेकिन 2022 की शुरुआत से ही रूस और यूक्रेन के बीच पहले तनाव बढ़ने और फिर 24 फरवरी से युद्ध शुरू हो जाने के कारण अंतरराष्ट्रीय बाजार का माहौल पूरी तरह से नकारात्मक हो गया है। इसकी वजह से कच्चे तेल की कीमत में भी लगातार तेजी दिख रही है। पिछले कारोबारी सत्र में कच्चा तेल 120 डॉलर का स्तर पार करके 120.65 डॉलर प्रति बैरल के स्तर पर पहुंच गया था। मतलब पिछले करीब चार महीने में कच्चे तेल की कीमत में प्रति बैरल 51.78 डॉलर की बढ़ोतरी हो चुकी है। इस तरह 1 दिसंबर 2021 से लेकर अभी तक के करीब चार महीने में कच्चे तेल की कीमत है 75 प्रतिशत से अधिक की बढ़ोतरी हो चुकी है।

दूसरी ओर 4 नवंबर 2021 को आखिरी बार पेट्रोल डीजल की कीमत में हुई बढ़ोतरी के बाद 137 दिन तक सरकारी ऑयल मार्केटिंग कंपनियों ने अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत में बढ़ोतरी होने के बावजूद पेट्रोल और डीजल की कीमत में कोई बढ़ोतरी नहीं कीं। पहले राजनीतिक हल्कों में आरोप लगाया जा रहा था कि पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव की वजह से पेट्रोल और डीजल के दाम में बढ़ोतरी नहीं की जा रही है, लेकिन 10 मार्च को चुनाव परिणाम आने के साथ ही पेट्रोल डीजल की कीमत में बढ़ोतरी कर दी जाएगी। हालांकि 10 मार्च को रिजल्ट आने के बाद भी अगले 12 दिन तक पेट्रोल-डीजल की कीमत में कोई बढ़ोतरी नहीं की गई। 22 मार्च को 137 दिनों के अंतराल के बाद पहली बार पेट्रोल और डीजल की कीमत में प्रति लीटर 80 पैसे की बढ़ोतरी करने का ऐलान किया गया। उस दिन से लेकर अभी तक के 5 दिन में सिर्फ 24 मार्च का दिन छोड़कर हर दिन प्रति लीटर 80 पैसे की बढ़ोतरी की गई है।

बताया जा रहा है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत में बढ़ोतरी होने के बावजूद भारतीय ऑयल मार्केटिंग कंपनियों द्वारा लगभग साढे 4 महीने तक पेट्रोल और डीजल की कीमत में बढ़ोतरी नहीं करने की वजह से उनका संचित घाटा काफी विशाल हो चुका है। ऑयल कंपनियों का दावा है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत के स्थिर होने की संभावनाओं को देखते हुए लंबे समय तक पेट्रोल और डीजल की कीमत में बढ़ोतरी नहीं करने का फैसला किया गया था, लेकिन अब चूंकि हालात काफी प्रतिकूल हो गए हैं, ऐसी स्थिति में पेट्रोल और डीजल की कीमत में बढ़ोतरी करना उनके लिए मजबूरी हो गई है।

कुछ दिन पहले ही अंतरराष्ट्रीय एजेंसी मूडीज की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि सरकारी ऑयल मार्केटिंग कंपनियों द्वारा पेट्रोल और डीजल की कीमत में साढ़े 4 महीने तक बढ़ोतरी नहीं किए जाने की वजह से उन्हें 19,000 करोड़ रुपये से अधिक का संचित घाटा हो चुका है। इनमें से अकेले इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन को ही 10,500 करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान हो चुका है।

उल्लेखनीय है कि एक मोटे अनुमान के मुताबिक अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत में प्रति बैरल एक डॉलर की बढ़ोतरी होने से भारत में सरकारी ऑयल मार्केटिंग कंपनियों पर पेट्रोल या डीजल की कीमत में प्रति लीटर 40 पैसे तक का भार बढ़ जाता है, जिसकी पूर्ति पेट्रोल या डीजल की कीमत में बढ़ोतरी करके की जाती है। इस तरह अगर देखा जाए तो एक दिसंबर 2021 से लेकर अभी तक की अवधि में सरकारी ऑयल मार्केटिंग कंपनियों पर डीजल या पेट्रोल की कीमत में प्रति लीटर 20 रुपये से अधिक की बढ़ोतरी करने का दबाव बन चुका है। इसके साथ ही अगर डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत में आई कमजोरी को भी इस गणना में जोड़ दिया जाए, तो इस चार महीने में सरकारी ऑयल मार्केटिंग कंपनियों पर प्रति लीटर करीब 24 रुपये की बढ़ोतरी करने का दबाव बन गया है।

हालांकि मौजूदा अंतरराष्ट्रीय परिस्थिति में भारतीय ऑयल मार्केटिंग कंपनियों ने जिस तरह से रूस पर प्रतिबंध होने के बावजूद रूसी ऑयल कंपनियों से कच्चे तेल की खरीद का प्रारंभिक समझौता किया है, उससे इस बात की भी उम्मीद बंधी है कि भारत बड़े पैमाने पर रूस से रियायती दर पर कच्चे तेल की खरीद कर सकेगा। ऐसा होने से अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत में आए उछाल के बावजूद भारतीय ऑयल मार्केटिंग कंपनियां बहुत ज्यादा प्रभावित नहीं होंगी। ऐसे में अगर रूस से कच्चे तेल की खरीद का रास्ता खुल जाता है, तो ये भारतीय ऑयल मार्केटिंग कंपनियों के साथ ही पेट्रोल और डीजल का इस्तेमाल करने वाले भारतीय उपभोक्ताओं के लिए भी काफी राहत वाली बात होगी। (एजेंसी, हि.स.)

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