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गणतंत्र दिवस पर ऐतिहासिक बग्घी से कर्तव्य पथ पहुंचीं राष्ट्रपति मुर्मू, जानिए क्‍या है इसका इतिहास?

नई दिल्‍ली (New Delhi) । गणतंत्र दिवस (Republic Day) की परेड में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू (President Draupadi Murmu) ऐतिहासिक बग्घी (Horse Drawn Buggy) से दिल्ली के कर्तव्य पथ पहुंचीं. शुक्रवार (26 जनवरी, 2024) को इस दौरान उनके साथ भारतीय सेना की घुड़सवारों की पलटन और बॉडीगार्ड्स भी थे. सबसे खास बात है कि इस बग्घी को इंडिया ने पाकिस्तान से कभी टॉस में जीता था.

1984 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की उन्हीं के बॉडीगार्ड द्वारा गोली मारकर हत्या कर दिए जाने के बाद राष्ट्रपति की सुरक्षा का हवाला देकर बग्घी का इस्तेमाल बंद कर दिया गया था. 30 साल बाद राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने इसे बीटिंग रिट्रीट में जाने के लिए इस्तेमाल किया था. उसके बाद शपथ ग्रहण के समय राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद भी इस पर सवार हुए थे लेकिन गणतंत्र दिवस समारोह में जाने के लिए इसका इस्तेमाल नहीं किया गया था. अब 40 सालों बाद एक बार फिर गणतंत्र दिवस समारोह में आने के लिए इस बग्घी की वापसी हुई.

बंटवारे के बीच छिड़ गई थी बहस!
15 अगस्त 1947 को देश की आजादी के समय दोनों मुल्कों के बीच जमीन, सेना से लेकर हर चीज के बंटवारे के लिए नियम तय किए जा रहे थे. इसे आसान बनाने के लिए प्रतिनिधियों की नियुक्ति की गई थी. भारत के प्रतिनिधि थे एच. एम. पटेल वहीं पाकिस्तान की ओर से चौधरी मोहम्मद अली को प्रतिनिधि बनाया गया था. हर चीज का बंटवारा जनसंख्या के आधार पर हुआ. उदाहरण के तौर पर राष्ट्रपति के अंगरक्षकों को 2:1 के अनुपात में बांटा गया. जब बारी आई राष्ट्रपति की बग्घी की, तो इसे हासिल करने के लिए दोनों देशों के प्रतिनिधियों के बीच बहस छिड़ गई.


और उलझी समस्या तो यूं निकला हल
समस्या को उलझता देख अंगरक्षकों के चीफ कमांडेंट ने एक युक्ति सुझाई, जिसपर दोनों प्रतिनिधियों ने सहमति जाहिर की. कमांडेंट ने बग्घी के सही हकदार का फैसले करने के लिए सिक्का उछालने को कहा. ये टॉस राष्ट्रपति बॉडीगार्ड रेजिमेंट के कमांडेंट लेफ्टिनेंट कर्नल ठाकुर गोविन्द सिंह और पाकिस्तान के याकूब खान के बीच हुआ. भारत में टॉस जीत लिया और तब से आज तक यह बग्घी राष्ट्रपति भवन की शान बनकर रही है.

राजेंद्र प्रसाद ने की पहली सवारी
ब्रिटिश हुकूमत के दौरान यह बग्घी वायसराय को मिली थी लेकिन आजादी के बाद इसका इस्तेमाल खास मौकों पर राष्ट्रपति को लाने ले जाने के लिए किया जाने लगा. पहली बार इसका उपयोग भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने 1950 में गणतंत्र दिवस के मौके पर किया था. इसके बाद कई राष्ट्रपतियों को उनके भवन से गणतंत्र दिवस के कार्यम्रम स्थल तक लाने के लिए इस बग्घी का इस्तेमाल किया जाने लगा. राष्ट्रपति भवन का दायरा 330 एकड़ का है जिसमें घूमने के लिए इस बग्घी का इस्तेमाल करते हैं.

घोड़े खींचते हैं, चढ़ी है स्वर्ण परत
काले रंग की इस बग्घी पर सोने की परत चढ़ी हुई है और इसे खींचने के लिए खास किस्म में घोड़ों का चयन किया जाता है. आजादी के पहले इसे 6 ऑस्ट्रेलियाई घोड़ों से खिंचवाया जाता था लेकिन, अब इसे सिर्फ 4 ही घोड़े खींचते हैं. इस पर भारत के राष्ट्रीय चिह्न को भी अंकित किया गया है.

इंदिरा की हत्या के बाद बंद हो गया था इस्तेमाल
1984 में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद राष्ट्रपति की सुरक्षा का हवाला देकर बग्घी का इस्तेमाल बंद कर दिया गया था. बग्घी की जगह तब से बुलेटप्रूफ गाड़ियों का इस्तेमाल किया जाने लगा था. लगभग 30 साल तक बग्घी इस्तेमाल नहीं की गई पर इसकी देखभाल होती रही, जबकि साल 2002 से 2007 तक भारत के राष्ट्रपति रहे डॉ. एपीजे अब्दुल कलम राष्ट्रपति भवन परिसर में घूमने के लिए बग्घी की सवारी करते थे.

प्रणब दा और रामनाथ कोविंद ने भी की थी सवारी
2014 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने फिर इस बग्घी का इस्तेमाल शुरू किया. वह बीटिंग रिट्रीट कार्यक्रम में शिरकत करने के लिए इस बग्घी पर सवार होकर पहुंचे थे. आगे राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने भी इसकी सवारी की थी, जबकि अब राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू इस ऐतिहासिक बग्घी से गणतंत्र दिवस समारोह में शामिल होने कर्तव्य पथ पर पहुंचीं.

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