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कम हो सकते हैं खाद्य तेलों के दाम, जानिए क्या होगी वजह

नई दिल्‍ली। देश में लगे लॉकडाउन (lockdown) की वजह से महंगाई की मार आज आम आदमी को सता रही है। एक ओर जहां खाद्य पदार्थों (foodstuffs) में बेतहाशा बढ़ोत्‍तरी देखने को मिल रही है तो वहीं तेलों की कीमतें भी आसमान छू रही है। अनुमान जताया जा रहा है कि खाद्य तेल (edible oil) के मोर्चे पर आम आदमी को फिलहाल राहत मिलते नहीं दिखाई दे रही है।



बाजार से जुड़े जानकारों का मानना है कि अक्‍टूबर-नवंबर महीने तक खाने के तेल के दाम कम नहीं होने वाले हैं। बीते 6 महीने में घरेलू स्‍तर पर खपत होने वाले सरसों, मूंगफली या पाम तेल की कीमतों में बड़ी तेजी देखने को मिली है। साथ ही सोयाबीन और सूरजमुखी के तेल के दाम में भी बढ़ोतरी हुई है, हालांकि, सरकार ने भी इनपर टैक्‍स में भी कटौती कर दी है इसके बाद भी ज्‍यादा असर नहीं दिखा है। यही माना जा रहा है कि खाद्य तेल की महंगाई नवंबर तक सताएगी, औसतन 52 फीसदी बढ़े दाम, नई फसल आने के बाद ही कीमतों में कमी देखने को मिलेगी।
इसी संबंध में खाद्य और उपभोक्ता मामलों के राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने संसद को बताया कि सरसों के तेल की कीमतों में 39.03 फीसदी का इजाफा हुआ है, वहीं सूरजमुखी के तेल में 51.62 की वृद्धि हुई है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि कीमतों में यह वृद्धि खुदरा भाव में हुई है जिसका सीधा असर उपभोक्ताओं पर हो रहा है।
राज्य मंत्री ने संसद में खाद्य तेल के आयात शुल्क में कटौती की भी चर्चा करते हुए कहा कि इससे कीमतों में नरमी आने की उम्मीद है। सरकार ने जून से सितंबर के बीच विभिन्न खाद्य तेलों के आयात शुल्क में पांच से 7.5 फीसदी तक कटौती की है। हालांकि, इसके बावजूद कीमतों में कमी नहीं आई है। वहीं उद्योग जगत इसे मांग और आपूर्ति से जोड़कर बता रहा है। कृषि मामलों के विशेषज्ञों का कहना है कि नई फसल आने पर कीमतों में थोड़ी नरमी देखने को मिलगी।
उद्योग सूत्रों का कहना है कि सोयाबीन के आयात में कमी आई है और वैश्विक स्तर पर इसकी आपूर्ति घटी है जिससे कीमतें बढ़ रही हैं। वैश्विक स्तर पर 25 करोड़ टन सोयाबीन का उत्पादन होता है, जिसमें से पांच करोड़ टन का उपयोग बायोडीजल बनाने में होने लगा है। इससे खाद्य तेल के लिए सोयाबीन की आपूर्ति में गिरावट आई है। यही वजह है कि खाद्य तेलों में शामिल सोयाबीन के तेल के दाम में भी तेजी से बढ़े हैं।

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