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राजस्थान रोडवेज की बसों में राजस्व की भेंट चढ़ा कोरोना प्रोटोकॉल

जयपुर । कोरोना महामारी की वजह से तीन महीनों तक बंद रही राजस्थान रोडवेज की बसें इन दिनों प्रदेश में यात्रियों को उनके गंतव्य तक पहुंचा रही हैं। लेकिन, यह बसें रोडवेज प्रबंधन के दावों के विपरीत कोरोना संक्रमण फैलाने में सारथी साबित हो सकती हैं।

रोडवेज प्रबंधन का दावा है कि बसों में कोरोना की रोकथाम के लिए सभी आवश्यक प्रबंध किए गए हैं, लेकिन सड़कों पर फर्राटे भर रही रोडवेज की बसों में न तो यात्रियों की पर्याप्त जांच हो रही है और न ही दो गज की दूरी के नियम का पालन। और तो और, अधिक राजस्व कमाने के फेर में बसों में इस कदर यात्रियों को ठूसा जा रहा है कि 52 सीटर बस में 70 से अधिक सवारियों को खड़े रहकर यात्रा करवाई जा रही है।

राजस्थान में 22 मार्च को कोरोना का पहला केस मिलने के बाद राज्यव्यापी लॉकडाउन के तहत रोडवेज बसों का संचालन भी बंद कर दिया गया था। लगभग तीन महीने तक लॉकडाउन रहने के बाद अनलॉक की प्रक्रिया के तहत मुसाफिरों के लिए रोडवेज बसों का संचालन प्रदेश में 3 जून से शुरु हुआ। अनलॉक के चार चरणों में रोडवेज की बसों का संचालन बढ़ते-बढ़ते अब रोजाना 3 हजार बसों का हो गया है। देश समेत राजस्थान में लगातार बढ़ते जा रहे कोरोना संक्रमितों की संख्या को देखते हुए रेलवे इन दिनों केवल स्पेशल ट्रेनों का संचालन कर रहा है। ऐसे में आम यात्रियों की भीड़ रोडवेज बसों से सफर कर रही है। इन यात्रियों के लिए भी रोडवेज प्रशासन ने कोरोना प्रोटोकॉल तय कर रखे हैं, लेकिन प्रदेश की सड़कों पर दौड़ रही बसों में प्रोटोकॉल का पालन पूरी तरह से नहीं किया जा रहा है।

असल में, रोडवेज प्रशासन का पूरा फोकस राजस्व पर है। इसकी बानगी यह है कि कोरोनाकाल के पहले रोडवेज राज्य के 52 आगारों (डिपो) से रोजाना संचालित होने वाली बसों से साढ़े पांच करोड़ रुपये राजस्व जुटाती थी। 3 जून से बसों का संचालन आरंभ करने के बाद अब रोडवेज सिर्फ 75 फीसदी बसें संचालित कर रोजाना साढ़े तीन करोड़ का राजस्व जुटा पा रही हैं। दो करोड़ रुपये रोजाना का राजस्व घाटा देखते हुए बसों के परिचालक भी अनुमत सीट संख्या के अतिरिक्त यात्री बसों में भर रहे हैं। कई मार्गों पर तो हालत यह है कि यात्रियों को बसों की छतों पर भी बिठाया जा रहा है। कोरोना प्रोटोकॉल के नाम पर रोडवेज प्रशासन ने अपने परिचालकों को यात्रियों के शरीर का तापमान जांचने के लिए थर्मल गन दी हैं, लेकिन कई मार्गों पर परिचालक इनका उपयोग तक नहीं कर रहे।

रोडवेज बसों में बिना मास्क प्रवेश वर्जित है तथा सैनेटाइजर आवश्यक रूप से साथ ले जाने की हिदायत दी जाती है, लेकिन यात्रियों को मास्क के लिए तभी कहा जाता है जब कोई पुलिस नाका या चेकपोस्ट दिखाई दें। परिचालकों को इससे कोई सरोकार नहीं है, उन्हें बस अपने टारगेट पूरे करने और राजस्व कमाने की चिंता है। हिन्दुस्थान समाचार के प्रतिनिधि ने विभिन्न मार्गों पर संचालित दर्जनों बसों में कोरोना प्रोटोकॉल की वास्तविकता जांची, लेकिन किसी भी बस में कोरोना गाइडलाइन का पूरी तरह अनुपालन होते नहीं दिखी।

रोडवेज के पीआरओ सुधीर भाटी दावा करते हैं कि बसों में कोरोना प्रोटोकॉल की व्यवस्था जांचने के लिए बाकायदा सभी आगारों में मॉनिटरिंग सिस्टम हैं। वे कहते हैं कि परिचालक थर्मल गन का उपयोग करते हैं या नहीं, इसकी जांच करने के लिए जल्द ही कुछ बसों की रेंडम जांच करवाएंगे। रोडवेज का यह दावा तो तब है जब रोडवेज की ओर से जारी किए जाने वाले प्रेसनोट में बाकायदा बसों में रोजाना कोरोना प्रोटोकॉल का पूरी तरह पालन की बात कही जाती है। रोडवेज की विभिन्न यूनियनों से जुड़े रहे एटक अध्यक्ष एमएल यादव कहते हैं कि रोडवेज को सिर्फ राजस्व कमाने की चिंता है। कोरोनाकाल में यात्रियों को सुगम सफर के लिए बसों का संचालन अच्छा कदम था, लेकिन कोविड 19 से पीड़ित मरीज बसों में चढ़ जाए और वह अपने साथ अन्य सवारियों को भी महामारी का संक्रमण सौंप दे, इसकी जांच की कोई व्यवस्था नहीं की जा सकी है।

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