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दलितों पर अत्याचार के मामले में राजस्थान अव्वल दूसरे पायदान पर मध्यप्रदेश, सजा दिलाने में कौनसा प्रदेश आगे, हैरान रह जाएंगे

नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश के हाथरस में दलित युवती की गैंगरेप के बाद मौत ने पूरे देश को झकझोर दिया है। इस बीच, नैशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के डेटा ने चौंकाने वाले खुलासा हुआ है। 2019 के लिए जारी इस डेटा के अनुसार, देश के 9 राज्यों में दलितों के साथ 84 प्रतिशत अपराध हुए हैं। इन राज्यों में देश में अनुसूचित जाति की कुल आबादी के 54 फीसदी लोग रहते हैं। दलितों पर अपराध पर सजा दिलाने के मामले में यूपी टॉप पर है जबकि मध्य प्रदेश दूसरे नंबर पर।

दलितों पर सबसे ज्यादा अत्याचार (दलितों की प्रति लाख आबादी के अनुसार अपराध की संख्या) राजस्थान, मध्य प्रदेश, बिहार और गुजरात में होता है। इसके बाद तेलंगाना, उत्तर प्रदेश, केरल, ओडिशा और आंध्रप्रदेश में दलितों पर सबसे ज्यादा अपराध होते हैं। इन राज्यों में दलितों पर अत्याचार की घटना राष्ट्रीय औसत से भी ज्यादा है।

SC/ST ऐक्ट में महज 32% सजा दर
डेटा के अनुसार, SC/ST अधिनियम कानून के तहत दर्ज मामले में सजा की दर राष्ट्रीय स्तर पर महज 32% है। वहीं, विचाराधीन मामले की संख्या तो 94% तक है। 2019 में अनुसूचित जाति के खिलाफ करीब 46,000 अपराध हुए, जो पिछले साल की तुलना में 7 फीसदी ज्यादा है। इनमें 9 राज्यों में दलितों पर अत्याचार का औसत राष्ट्रीय औसत से भी ज्यादा है और यहां करीब 38,400 मामले दर्ज किए गए हैं। उत्तर प्रदेश में 2019 में दलितों पर अत्याचार के 11,829 मामले दर्ज किए गए जबकि राजस्थान में दलितों पर अत्याचार के 6,794 मामले दर्ज किए गए। यहां प्रति लाख दलित आबादी पर 56 अपराध हुए हैं।

पंजाब में दलितों पर कम अत्याचार
पंजाब में दलितों की अच्छी खासी आबादी है और यहां अनुसूचित जाति के लोगों के खिलाफ अत्याचार के मामले बेहद कम हैं। 2019 में पंजाब में दलितों पर अत्याचार के महज 166 मामले दर्ज किए गए और इसका औसत 1.9 प्रतिशत का था। जम्मू-कश्मीर, पश्चिम बंगाल और असम उन बड़े राज्यों में शामिल हैं जहां दलितों पर अत्याचार के मामले कम हैं। असम में 2019 में 21 मामले दर्ज किए गए थे। पश्चिम बंगाल में 119, जम्मू-कश्मीर में दलितों पर अत्याचार के केवल 2 मामले सामने आए थे।

NCRB के ‘क्राइम इन इंडिया, 2019’ नाम से प्रकाशित डेटा के अनुसार, अनुसूचित जाति के खिलाफ अपराध के मामले में चार्जशीट का औसत तुलनात्मक रूप से ऊंचा रहा है और यह राष्ट्रीय स्तर पर 78.5% रहा। हालांकि हर तीन केस में एक केस से कम केस में सजा होती है। 2019 के शुरुआत में 1.7 लाख केसों का ट्रायल पेंडिंग था। करीब 35 हजार से ज्यादा केस इस साल ट्रायल के लिए गया और कुल नंबर बढ़कर 2 लाख के पार पहुंच गया। 13 हजार से भी कम केसों का निपटारा इस साल हुआ और केवल 4,000 केसों में ही सजा हुई।

जिन राज्यों में दलितों के खिलाफ ज्यादा अपराध दर और सबसे कम सजा का दर है उनमें गुजरात में 1.8 फीसदी, आंध्रप्रदेश में 6.8 प्रतिशत, केरल में 8.4 फीसदी, तेलंगाना में 9 प्रतिशत जबकि बिहार में 12.2 प्रतिशत है। हालंकि, उत्तर प्रदेश (66.1%) और मध्य प्रदेश (51.1%) में दलितों पर अत्याचार के मामले में सजा का औसत राष्ट्रीय औसत से अच्छा है। हालांकि यूपी में विचाराधीन मामले 95% से ज्यादा है।

 

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