जबलपुर न्यूज़ (Jabalpur News)

व्यंग्य : हे नेता…नमन है तुम्हें

चुनाव भी कमाल की चीज हैं। अगर चुनाव न हों तो हमें पता ही न चले कि हमारे आसपास जनसेवा के लिये तत्पर कितनी सारी महान मूर्तियां मौजूद हैं। जिन्हें सिर्फ एक मौका चाहिए और ये द्रुत गति से विकास में जुट जाएंगी। विकास किसका होगा,ये पूछकर हमें स्वयं के सामान्य ज्ञान पर प्रश्न चिन्ह नहीं लगाना चाहिए। जो जीत चुका नेता है, वो पर्याप्त विकास कर चुका है, लेकिन,फिर भी उसका मन नहीं भरा है और जो अब तक नहीं जीता है वो विकास करने को कसमसा रहा है। इसके दिल में अरमान ही अरमान हैं।
नेताओं का यही सेवा भाव और तपस्या हमारी राजनीति का मुख्य उद्देश्य है। कुछ मूर्ख लोग हैं, जो नेताओं को बेईमान और भ्रष्ट आदि कहते हैं परंतु हकीकत ये है कि नेताओं के त्याग और समर्पण का कोई सानी नहीं है। हमारी नजर ही बुरी है अन्यथा क्या सेवा पथ पर अग्रसर इन विभूतियों की नीयत पर हम सन्देह कर सकते हैं? क्या हम इतने सक्षम हैं, जो इन तेजस्वी मानवों पर अंगुली उठा सकें, मेरे विचार से कदापि नहीं। नेता को भ्रष्टाचारी साबित करने के लिये लोग तो प्रमाण भी प्रस्तुत कर देते हैं पर नेता सेवा और विकास करना नहीं छोड़ते, वो अपनी जिम्मेदारी जानते हैं और उसे पूरी करके ही मानते हैं। मान्यवर अब देखिए विधानसभा चुनाव की रणभेरी बज चुकी है। हर तरफ से नेता निकल रहे हैं। दावेदारों की लिस्ट रोज थोड़ी लम्बी और थोड़ी चौड़ी हो रही है। अपने जेब से पैसे लगाकर ये नेता लोग जनता के बीच जा रहे हैं और उन्हें अपने सेवा भाव से परिचित करा रहे हैं। आसान काम नहीं है घर छोड़कर खुद को जनसेवा के लिये होम कर देना।


उन बेवकूफों की बातें जाने दीजिए, जो ये कहते हैं कि ये दावेदार विधायक बनकर सत्ता की मलाई खाने के लिये ये सब कवायद कर रहे हैं। मैं ऐसा नहीं मानता,न कभी मानूंगा। इनके चेहरे देखो कितने भोले-भाले हैं,इनकी बातें कितनी मीठी और उम्दा हैं, ये ऐसा नहीं कर सकते। मुँह उठाकर किसी को भी भृष्ट कह देना आजकल फैशन बन गया है। किसी को बिना मौका दिए ही हम कैसे कह सकते हैं कि अमुक भ्रष्टाचारी है, पहले मौका तो दो, फिर देखते हैं। यही तो लोकतंत्र की माया है। यदि नेताओं ने विकास नहीं किया होता तो क्या सृष्टि यहां तक पहुँच पाई होती। अभी भी हम पत्थर से आग जलाकर जंगलों में आवारागर्दी कर रहे होते,बिना नेता के कुछ नहीं होता। वायुमण्डल में ऑक्सिजन के साथ उतनी ही मात्रा में नेता भी जरूरी है वरना जीवन में बाधा पड़ जाएगी। नेता इतना सहज और सरल है कि अपनी अहमियत जताता नहीं है, नहीं तो एक वोट देकर नेता को जिताने की गलतफहमी पालने वालों की तबियत दुरुस्त करने में एक मिनट नहीं लगता। आपको क्या लगता है नेता तुम्हारी एक वोट के भरोसे बैठा है। बिल्कुल नहीं, बल्कि बिल्कुल भी नहीं। आने वाले चुनाव में लाखों-करोड़ों खर्च करके क्या नेता सिर्फ इसलिए चुनाव जीतना चाहता है कि वो भ्रष्टाचार करके अकूत धन-सम्पदा एकत्रित कर सके। ये एक निष्काम कर्मयोगी की दिव्यता और जीवटता का घनघोर अपमान है। बहुत पीड़ा होती है, जब सार्वजनिक जीवन में नेता को इन परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है। सच कहें तो हमें इतना एहसान फरामोश नहीं होना चाहिए। नेता धन जैसी तुच्छ वस्तु के लिए जनता के साथ धोखा नहीं कर सकता। वो तो देश, समाज और शहर की प्रगति के सुहाने सपने देखता है और जनता को भी दिखाता है, कुछ सपने वो जनता को नहीं भी दिखाता है ,वो सपने जब साकार होते हैं तो जनता के लिये टोटल सरप्राइज होते हैं। कई बार तो इतनी विकट स्थिति भी आती है कि नेता को सर्वहित के लिए अपना विकास भी करना पड़ता है। विवश होकर बहुत संकोच में, क्या करे विकास के संकल्प को तो हर हाल में पूरा करना ही होगा। नेता के जीवन के संघर्षों को कोई नहीं समझ सकता और हम भाग्यशाली हैं कि हमारे सुख-समृद्धि के लिए कितने विराट व्यक्तित्व राजनीति के मैदान में खुद को खपा देने उत्साहित हैं। विधान सभा से लेकर लोकसभा चुनाव तक अपनी दावेदारी पेश करने वाले नेताओं का हमें आभारी होना चाहिए।

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