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सऊदी अरब ने भारतीय श्रमिकों को दिया दिवाली गिफ्ट, क्या है ‘kafala system’


रियाद। सऊदी अरब (Saudi Arabia) ने कामगारों के हित में बड़ा कदम उठाते हुए विवादास्पद ‘कफाला प्रणाली’ (Kafala system) को समाप्त कर दिया है। मानव संसाधन और सामाजिक विकास मंत्रालय ने बुधवार को इसकी घोषणा की। नई व्यवस्था मार्च 2021 से अमल में आ जाएगी। अब सऊदी अरब में काम करने वाले मजदूरों को अनुबंध खत्म कर नौकरी बदलने की इजाजत होगी। उन्होंने मजबूरी में कम वेतन पर काम नहीं करना होगा।

मंत्रालय की तरफ से कहा गया है कि सरकार उन सभी प्रतिबंधों को हटाने जा रही है, जिनकी वजह से प्रवासी श्रमिकों को कम वेतन पर भी अपने नियोक्ता के साथ अनुबंध में बंधे रहना पड़ता था। नए श्रम सुधार सुधार मार्च 2021 में लागू होंगे। बता दें कि सऊदी अरब में बड़ी संख्या में भारतीय काम करते हैं, ऐसे में यह खबर उनके लिए ‘दिवाली गिफ्ट’ से कम नहीं है।

उपमंत्री अब्दुल्ला बिन नासिर अबुथनैन (Abdullah bin Nasser Abuthunain) ने कहा कि ‘हमने आकर्षक श्रम बाजार बनाने और बेहतरीन कामकाजी माहौल निर्मित करने की दिशा में एक कदम उठाया है। ‘नए श्रम सुधार लागू होने के बाद विदेशी श्रमिकों को नौकरी बदलने और नियोक्ता की अनुमति के बिना देश छोड़ने का अधिकार होगा’।

बता दें कि इस साल G20 समूह की अध्यक्षता करने वाला सऊदी अरब तेल पर निर्भर अर्थव्यवस्था में विविधता लाने की महत्वाकांक्षी योजनाओं पर काम कर रहा है और सरकार का यह फैसला उसके लिए लाभकारी साबित होगा। क्योंकि इससे उच्च-कुशल श्रमिकों को आकर्षित करने में मदद मिलेगी और देश में नए रोजगार पैदा होंगे।

सऊदी अरब की कफाला प्रणाली श्रमिकों पर कई तरह के प्रतिबंध लगाती है। सीधे शब्दों में कहें तो दूसरे देश से आकर यहां नौकरी करने वाले मजदूर के पास उत्पीड़न से बचने का कोई अवसर नहीं होता। वह अपनी मर्जी से नौकरी नहीं छोड़ सकते, देश से बाहर जाने के लिए भी उन्हें अपने नियोक्ता से अनुमति लेना अनिवार्य होता है। बिना नियोक्ता की अनुमति के वह नौकरी नहीं बदल सकते और न ही वापस जा सकते हैं। यह भी पाया गया है कि कई नियोक्ता अपने मजदूरों के पासपोर्ट जब्त कर लेते हैं और उन्हें अत्यधिक काम के लिए विवश किया जाता है।

होती रही है बंद करने की मांग
एमनेस्टी इंटरनेशनल सहित मानवाधिकारों के लिए काम करने वाले संगठन सऊदी अरब से कफाला प्रणाली समाप्त करने की मांग करते रहे हैं। इन संगठनों का कहना है कि इस तरह की प्रणाली श्रमिकों के मानवाधिकारों का खुलेतौर पर उल्लंघन करती हैं।

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