नई दिल्ली। भारी बस्तों ( Heavy bag )के भार से दबे बच्चों (School students) का झुंड आज हर एक शहर में देखने को मिलता है. किताबों के बीच सिसकते बचपन ने शिक्षा की बुनियाद को हिलाकर रख दिया है. एक छोटे बच्चे के लिए दस-बारह किताबें रोज़ स्कूल ले जाना और उन्हें पढ़ना कठिन होता है, इसका सहज अंदाज़ा लगाया जा सकता है. इससे बच्चों के मानसिक विकास(children’s mental development) को चोट पहुंचती है. उनका मानसिक विकास नहीं हो पाता. बस्ते के बढ़ते अनावश्यक बोझ से बच्चा मानसिक रूप से कुंठित हो जाता है.
इसी को ध्यान में रखते हुए नई शिक्षा नीति 2020(new education policy 2020) में एक प्रावधान किया गया है, जिसमें बैग के वजन को निर्धारित किया गया है. इस नीति के अनुसार छात्रों का स्कूल बैग उनके शरीर के वजन के 10 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए. इस नीति को सख्ती से लागू किया जा सके, इसलिए शिक्षा विभाग की तरफ से सभी स्कूलों से मापदंड के पालन की अपील की गई है.
#NEP2020inAction: स्कूल बैग नीति, नई शिक्षा नीति 2020 के अनुरूप है। यह व्यवस्था बच्चों के अच्छे स्वास्थ्य और तनाव मुक्त अध्ययन पर केंद्रित है। इस नीति के अनुसार छात्रों का स्कूल बैग उनके शरीर के वज़न के 10 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिये।
(17/62)#AmritMahotsav pic.twitter.com/PKMlPzwRcK— Ministry of Education (@EduMinOfIndia) December 18, 2021
बस्ते का भार कम करने के लिए शिक्षा मंत्रालय की गाइडलाइन
- प्राथमिक कक्षा- 2 तक कोई होमवर्क छात्रों को नहीं दिया जाए.
- कक्षा 3 से लेकर 4 तक छात्रों को सप्ताह में दो घंटे का ही होमवर्क दिया जाए.
- मिडिल स्कूल यानि कि कक्षा 6 से 8वीं तक के छात्रों को दिन में अधिकतम एक घंटे और सप्ताह में 5 से 6 घंटे का होमवर्क दिया जाए.
- माध्यमिक और उच्चतर माध्यमिक तक के लिए होमवर्क दिन में अधिकतम 2 घंटे और सप्ताह में 10 से 12 घंटे का ही दिया जाए.
आपको बता दें कि शिक्षा मंत्रालय की तरफ से यह फैसला इसलिए लिया गया है, ताकि स्कूल स्तर पर बस्ते का बोझ कम किया जा सके. क्योंकि बस्ते के वजन के चलते बच्चों में चिड़चिड़ापन पैदा हो जाता है. साथ ही बच्चों का लंबाई रुक जाती और उनके अंदर रचनात्मकता पैदा नहीं होती है. इसके अलावा स्कूल जाने को लेकर भी उतावले नहीं होते हैं.
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