आचंलिक

सिंघई मंदिर में चल रहे चतुर्मास में प्रतिदिन हो रहा प्रति विद्या मृदु प्रवाह

दमोह। आचार्यश्री विद्यासागर महाराज की शिष्या आर्यिकारत्न मृदुमति माताजी व पूज्य आर्यिकाश्री निर्णयमति माताजी का चातुर्मास दमोह के श्री दिगंबर जैन सिंघई मन्दिर में चल रहा है। जिसमें जिनवाणी गंगा का विद्या मृदु प्रवाह प्रतिदिन प्रात: 8 बजे से 9 बजे तक होता है। मंदिर के हॉल में जिनवाणी की प्रभावना प्राचीन मुनि गृद्ध पिच्छाचार्य आचार्य उमास्वामी कृत जैन दर्शन का प्रमुख ग्रंथ तत्वार्थ सूत्र का शिक्षण/संबोधन के माध्यम से हो रही है। प्रतिदिन सैकड़ों श्रद्धालु जैन दर्शन का अध्ययन कर धर्म लाभ ले रहे हैं। पूज्य मृदुमति माता जी ने तत्वार्थ सूत्र के प्रथम अध्याय के सूत्र क्रमांक 5 से सूत्र क्रमांक 15 तक का अध्ययन करवाया। पढ़ाई के साथ साथ धर्मोपदेश भी प्राप्त होता है, जो धार्मिक दृष्टि से आत्म कल्याणकारी है। माताजी ने अपने धर्मोपदेश में बताया कि जैन दर्शन में सर्वज्ञ तीर्थंकर भगवान के केवल्य ज्ञान की वाणी अनुसार सात तत्व और रत्नत्रय का व्यवहार- नाम, स्थापना, द्रव्य, भाव से होता है।


तत्वों और रत्नात्रय का ज्ञान प्रमाण और नयों से व छ: अनुयोगों से भी होता है। मतिज्ञान, श्रुत ज्ञान, अवधि ज्ञान, मनह पर्यय ज्ञान और केवल्य ज्ञान इस तरह ज्ञान पांच हैं। केवल्य ज्ञान सर्वज्ञ ज्ञान है। जो भव्य आत्माएं तप करके स्वतह अपने अंदर ही अपनी आत्मा में केवल्य ज्ञान प्रगट कर लेती हैं। वे भगवान आत्माएं ही मोक्ष प्राप्त करती हैं। अर्थात जन्म मरण से मुक्त हो अशरीरी होकर अनंत काल तक अनंत शक्ति से अनंत सुख का भोग करती रहती हैं। मोक्ष प्राप्त मुक्त सिद्ध जीव पुन: शरीर धारण नहीं करते। प्रत्येक जीव को वास्तविक सुख की खोज रहती है। जैन दर्शन वास्तविक सुख प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करता है। यही सम्यक ज्ञान कराना ही स्वाध्याय/शिक्षण/ संबोधन/धर्मोपदेश का मूल उद्देश्य है।

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