भोपाल न्यूज़ (Bhopal News)

सूरमा के बतोले

कल 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस है। इसी बहाने याद किया जाए भोपाल के मौसम और आबोहवा को। नवाबी दौर में हमारा भोपाल हरी भरी वादियों और दरख्तों के झुरमुटों। का शहर हुआ करता था। शाहजहानाबाद, जुमेराती, गिन्नोरी, जहांगीराबाद वगेरह रिहायशी बस्तियों के आंगन वाले घरों में जाम फल और खिरनी के पेड़ जरूरी तौर पे हुआ करते थे। मध्य प्रदेश के वजूद में आने के बाद जब टीटी नगर में सरकारी मकान बने तब लोगों ने घरों में जामुन और आम के दरख़्त लगाए थे। नॉर्थ और साउथ टीटी नगर और 74 बंगले में हजारों की तादात में पेड़ लगाए गए थे। भोपाल की नवाब शाहजहां बेगम ने मोतिया तालाब, सिद्दिक हसन खां तालाब और मुंशी हुसैन खां तालाब बना कर वाटर मैनेजमेंट की जो मिसाल पेश की ही उसका दुनिया में कोई दूसरा नमूना नहीं मिलता। इन तालाबों का एक बूंद पानी बर्बाद नहीं किया जाता था। इनकी वजह से आज भी भोपाल में भूमिगत जल स्तर ठीक ठाक बना हुआ है। आज भयंकर ट्रैफिक और रेलमपेल बन चुकी हमीदिया रोड को पचास की दहाई के बाद तक ठंडी सड़क के नाम से जाना जाता था। इसके किनारे, नीम, करंज और शीशम के पेड़ हुआ करते थे। तीन मोहरे से रॉयल मार्केट जाने वाली सड़क भी ठंडी सड़क कहाती थी। वैसे नए भोपाल में लिंक रोड नंबर 1 से वल्लभ भवन जाने वाली रोड को भी ठंडी सड़क कहा जाता है। बाकी शहर के पर्यावरण पे हो रहे इंसानी हमलों ने भोपाल की पूरी इकोलॉजी को ही खतम कर दिया है। स्मार्ट सिटी बनने से हजारों पेड़ों को काट दिया गया। ना हमीदिया रोड पे ठंडक है न लिंक रोड पे। हमीदिया रोड से बेरसिया रोड होते हुए जो सड़क इस्लाम नगर तक जाती थी उसपे नवाब काल में शहतूत के पेड़ लगाए गए थे। बताया जाता है की भोपाल से जब फ़ौज इस रास्ते से कूच करती थी तब फौजियों का ग्लूकोज लेवल कम न हो जाए इस लिए हुकूमत ने शहतूत के पेड़ लगवाए थे। बाकी अब तो शहर के बड़े और कई छोटे तस्लाबो तक पे वजूद का संकट है। तालाबों पे कब्जे हो रहे हैं। नतीजतन भोपाल में अब गर्मी नाकाबिले बर्दाश्त हुई जा रही है। टेंपरेचर 44 से 45 डिग्री के पार जा रहा है। कुछ करो भोपाल वालों वर्ना तुम्हारी दास्तान भी न होगी दास्तानों में।

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