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उद्धव गुट को स्पीकर ने दिया दोहरा झटका; ठाकरे के पास अब क्या विकल्प

नई दिल्‍ली (New Delhi)। महाराष्ट्र विधान सभा के स्पीकर राहुल नार्वेकर (Rahul Narvekar) ने बुधवार को जहां मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे (Chief Minister Eknath Shinde) की अगुवाई वाली शिव सेना को ही असली शिव सेना करार दिया और 16 विधायकों की अयोग्यता से जुड़े मामले को खारिज कर दिया, वहीं दूसरी तरफ उद्धव ठाकरे गुट के सभी विधायकों को ट्रेजरी बेंच की तरफ बैठने का आदेश दिया है। स्पीकर ने ये भी कहा है कि उद्धव ठाकरे गुट के सभी विधायकों को शिंदे गुट के चीफ व्हिप भरत गोगावले के आदेश को मानना होगा। ऐसा नहीं करने पर उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।

इसका मतलब यह हुआ कि विधानसभा में मतदान जैसे प्रमुख मुद्दों पर,उद्धव गुट के सभी 16 विधायकों को गोगावले के व्हिप का पालन करना होगा, नहीं तो उनकी सदस्यता पर तलवार लटक सकती है। इसके अलावा, यूबीटी समूह के विधायकों को विपक्ष में होने के बावजूद सीएम के नेतृत्व वाली शिव सेना के साथ सत्ता पक्ष में बैठना होगा।

नार्वेकर ने कहा, “विधायकों को अपने निर्धारित स्थान पर बैठना होगा। मेरे विचार में, शिवसेना सरकार में सत्तारूढ़ दल है। यदि कोई अलग रुख अपनाता है, तो यह निर्णय उनका होगा और वे इसके परिणामों के लिए जिम्मेदार होंगे।” स्पीकर ने ये भी कहा कि एक पार्टी सदन में दो व्हिप जारी नहीं कर सकती।



वैसे तो स्पीकर से अयोग्यता के मामले में ऐसे ही फैसले की संभावना जताई जा रही थी लेकिन उद्धव ठाकरे गुट के विधायकों को शिंदे गुट का व्हिप मानने और ट्रेजरी बेंच की तरफ बैठने का आदेश यूबीटी के लिए बड़ा झटका है। ऐसे में सवाल उठने लगे हैं कि उद्धव ठाकरे अब आगे क्या करेंगे?

उद्धव के पास क्या विकल्प नंबर वन
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि स्पीकर के फैसले ने मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे गुट के शिव सेना को अधिक कानूनी वैधता दे दी है। ऐसे में उद्धव ठाकरे के पास अब कानून का दरवाजा खटखटाने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है। ठाकरे पहले ही अयोग्यता के मामले में स्पीकर के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा चुके हैं। अब वो स्पीकर के फैसले को भी अदालत में चुनौती दे सकते हैं।

उद्धव के पास क्या विकल्प नंबर दो
चूंकि, अगले कुछ ही महीनों बाद लोकसभा और विधानसभा चुनाव दोनों हैं। इसलिए, उद्धव ठाकरे कानूनी लड़ाई के साथ-साथ जनता की अदालत में इस मुद्दे को ले जा सकते हैं। उनके पिता बाला साहब ठाकरे द्वारा बनाई गई पार्टी पर दूसरे गुट का कब्जा हो जाने से मराठी मानुष का सहानुभूति उन्हें मिल सकती है। इसलिए वह इसे जनता की अदालत में ले जा सकते हैं। अगर, उनके नेतृत्व वाले गुट के सांसदों और विधायकों की जीत होती है तो फिर से पलड़ा बदल सकता है।

उद्धव के पास क्या विकल्प नंबर तीन
चुनाव आयोग पहले ही शिव सेना के चुनाव चिह्न की लड़ाई में शिंदे गुट के पक्ष में फैसला सुना चुका है। अब स्पीकर के नए फैसले के बाद हो सकता है कि उद्धव ठाकरे नई पार्टी बनाने के लिए आयोग जाएं लेकिन इसकी संभावना कम ही लगती है क्योंकि ऐसा करने से जनता की अदालत में उनकी सियासी हार का संदेश जाएगा, जिसे वह देना नहीं चाहेंगे। कुछ विश्लेषकों का मानना है कि उद्धव ठाकरे शिव सेना यूबीटी के नाम से ही अगला चुनाव लड़ेंगे और कोर्ट में भी पार्टी पर कब्जे की लड़ाई लड़ते रहेंगे।

बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने सुभाष देसाई के केस में कहा था कि पार्टी का संगठन महत्वपूर्ण होता है। इसलिए, उद्धव ठाकरे गुट ने भी कहा है कि स्पीकर का फैसला कि शिंदे गुट ही असली शिव सेना है, कोर्ट का अपमान है और लोकतंत्र की हत्या है। सुप्रीम कोर्ट इससे पहले कह चुका है कि राज्य के गवर्नर ने अपने पद का दुरुपयोग किया था और गलत निर्णय लिया था।

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