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जजों के खिलाफ टिप्पणी से सुप्रीम कोर्ट नाराज, वकीलों को थमाया अवमानना नोटिस

नई दिल्ली। अपनी याचिका में जजों के खिलाफ टिप्पणी (Comment against judges in petition) करना वकीलों को भारी पड़ा है. इससे नाराज सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने एक याचिका दायर करने वाले एडवोकेट और सुप्रीम कोर्ट में उनके एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड (advocate-on-record) को अवमानना का नोटिस जारी किया है। नोटिस जारी करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि वादी की ओर से याचिका दायर करने वाले वकील अगर मामले में न्यायाधीशों के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी (derogatory remarks) करते हैं, तो वे अदालती कार्यवाही की अवमानना (contempt of court proceedings) के लिए उत्तरदायी होंगे।

एक खबर के मुताबिक जस्टिस बी आर गवई (Justices B R Gavai) और बी वी नागरत्ना (Justices B V Nagarathna) की पीठ ने याचिकाकर्ता मोहन चंद्र पी के साथ ही एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड विपिन कुमार जय को नोटिस जारी करने का आदेश दिया कि क्यों न उनके खिलाफ अदालत की अवमानना की कार्यवाही शुरू की जाए। उन दोनों व्यक्तियों को 2 दिसंबर को अदालत में मौजूद रहने का आदेश भी दिया गया है।


कर्नाटक सूचना आयोग (Karnataka Information Commission) ने 7 अगस्त, 2018 को एक अधिसूचना जारी की थी. जिसके अनुसार वकील मोहन चंद्रा ने मुख्य सूचना आयुक्त (सीआईसी) के साथ-साथ राज्य सूचना आयुक्त (आईसी) के पदों के लिए आवेदन किया था. चयन समिति ने सीआईसी के साथ-साथ आईसी के लिए तीन व्यक्तियों की सिफारिश की. जिसमें चंद्रा का नाम शामिल नहीं था. उन्होंने कर्नाटक उच्च न्यायालय के समक्ष विज्ञापित पदों पर अपनी नियुक्ति न होने पर सवाल उठाते हुए चयन प्रक्रिया, सीआईसी और आईसी की नियुक्ति के खिलाफ अपील दायर की।

इस साल 21 अप्रैल को हाईकोर्ट की सिंगल जज बेंच ने उनकी याचिका खारिज कर दी थी. चंद्रा ने इस आदेश के खिलाफ उच्च न्यायालय की एक खंडपीठ के समक्ष अपील दायर की. जिसने 2 सितंबर को 5 लाख रुपये का जुर्माना लगाने के साथ याचिका खारिज कर दी। सुप्रीम कोर्ट के सामने विशेष अवकाश याचिका (special leave petition) में चंद्रा ने कहा कि कर्नाटक हाईकोर्ट की खंडपीठ द्वारा बाहरी कारण के लिए प्रतिवादियों को परेशान करना अनुचित है। उन्होंने कहा कि अपने फैसले में खंडपीठ ने बाहरी कारणों को ध्यान में रखा है और बदले की भावना से याचिकाकर्ता पर 5 लाख रुपये का जुर्माना लगाया है। याचिकाकर्ता ने सस्ते प्रचार के लिए याचिका खारिज करने का आरोप लगाते हुए न्यायाधीशों के खिलाफ आक्षेप किए. जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने ये आदेश जारी किया।

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