नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने भारत की सामाजिक स्थिति के मद्देनजर महिलाओं के लिए वैवाहिक स्थिति को महत्वपूर्ण बताते हुए पति के पक्ष में दिए गए तलाक के आदेश को दरकिनार कर दिया। शीर्ष अदालत अपीलकर्ता पत्नी की याचिका पर विचार कर रही थी। जिसमें हाईकोर्ट से परित्याग के आधार पर दिए गए तलाक के आदेश को चुनौती दी गई थी। जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस एस रवींद्र भट की पीठ ने कहा कि 18 साल से अलग रह रहे दंपती के लिए अब साथ रहना असंभव हो सकता है। लेकिन जिस तरह से समाज महिलाओं के साथ व्यवहार करता है उसे देखते हुए विवाह की अवधारणा और विवाह की स्थिति काफी महत्वपूर्ण है।
न्यायालय ने कहा है कि महिलाओं के लिए शादी का बहुत महत्व है। खासकर यह देखते हुए कि समाज में उनके साथ कैसा व्यवहार किया जाता है। वहीं, इस संबंध में अपीलकर्ता के वकील ने बताया कि हाईकोर्ट ने विशेष रूप से नोट किया था कि पति के साथ कोई क्रूरता नहीं हुई थी। पत्नी ने अपने ससुराल को खुद नहीं छोड़ा था। ऐसे में हाईकोर्ट को तलाक का आदेश नहीं देना चाहिए था। महिला की ओर से पति के साथ रहने की इच्छा जताई गई थी। वहीं पति के वकील ने इसका खंडन किया। दूसरी ओर पति के वकील ने कहा, उसका मुवक्किल अब एक साधु है और वह अपनी पत्नी के साथ वैवाहिक संबंध में वापस नहीं आ सकता। इस पर जस्टिस भट ने पूछा, अगर आपने दुनिया छोड़ दी है तो आपने सब कुछ छोड़ दिया है, क्या यह सही है?
इसके बाद पीठ ने कहा, हम तलाक के आदेश को रद्द कर देंगे। साथ ही हाईकोर्ट के आदेश के बाद पति से मिले पांच लाख रुपये भी पत्नी के पास ही रहने देने का निर्देश दिया। पीठ ने कहा, पत्नी द्वारा कोई अन्य मांग नहीं की जाएगी। पीठ ने पति के वकील से पूछा, क्या यह ठीक है? तो वकील ने नहीं में जवाब दिया और मध्यस्थता की पेशकश की। लेकिन पीठ ऐसा करने को इच्छुक नहीं थी। वकील ने कहा, वह उसके साथ रहने के लिए तैयार नहीं है। इस पर पीठ ने कहा, नहीं, हम ऐसा नहीं कह रहे हैं। हम पक्षकारों को मजबूर नहीं कर सकते। लेकिन उसे एक विवाहित महिला होने का दर्जा दें।
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