खरी-खरी

नाले की बदबू में फिर केन्द्र ने 500 करोड़ का इत्र डाला…

1200 करोड़ों खर्च कर डाले… मगर कोड़ी की सफाई नहीं हुई…फिर पांच अरब भेजे है… मगर कान्ह और सरस्वती नदी का पानी साफ होना तो दूर बदबू तक नहीं मिटा पाएंगे… प्रधानमंत्री जी आप छाती ठोंक कर राजीव गांधी को ताना मारते हंै… रूपए के 15 पैसे जनता तक पहुंचने की सच्चाई को ठुकराते हैं, और अब केन्द्र का पूरा पैसा जनता तक पहुंचने का दावा जताते हैं… लेकिन इन्दौर की कान्हा और सस्वती नदी आपका पैसा डकार रही है… आपके ताने पर ताना मार रही है… हिसाब निकलवा लीजिए… करोड़ों खर्च कर चुके हैं मगर नदी नाले की तरह अब भी बदबू मार रही है… इस शहर की इज्जत बचाने के लिए अपने घर की गंदगी ढांकने के लिए हमने भी नाले को नदी कहना शुरू कर दिया… मगर प्रधानमंत्रीजी न नदी बह रही है और ना नाले की शक्ल बदल रही है… इन्दौर नगर निगम के भ्रष्टाचार की जेब में जब भी पैसों का टोटा पड़ता है तब-तब जेसीबी का कारवां नाले में उतरता है… कुछ गाद निकाली जाती है… किनारे पर जमाई जाती है… फोटो खींचे जाते है, डीजल से लेकर संस्थानों तक के बड़े-बड़े बिल बनाए जाते हैं… पैसा जेब में जाता है और संसाधन हट जाते हैं… फिर अगले साल बारिश आती है गाद की गंदगी बताई जाती है… पुराने फोटो लगाए जाते हैं… नए बिल बन जाते हैं… अधिकारियों की जेब भर जाती है… कोई यह नहीं पूछता है कि यह गाद आती कहां से है… शहर में नाला टेपिंग का काम हो चुका है… नाला टेपिंग के लिए अरबों का खर्च किए जा चुके है… शहर में पक्की सडक़ें बन चुकी हैं… स्वच्छता में हम नम्बर वन आ चुके है… धूल मिट्टी शहर में कहीं नजर नहीं आती है… नालों पर जालियां लगाई जा चुकी है… लोग कचरा नदी में डाल नहीं सकते है… फिर नदी में गाद कहां से जमा हो जाती है… प्रधानंमत्रीजी आप तो नदी को नदी बनाने से पहले इस अनुसंधान के लिए पैसा खर्च कीजिए कि यह गंदगी कहां से आ रही है… हकीकत यह है कि इस नाले की गंदगी में कुबेर का खजाना है… यह एक छोर से निकाला जाता है और दूसरे छोर पर डाला जाता है और दोनों छोर से निकालने का पैसा लेकर तीसरे छोर पर डाला जाता है… इस तरह कान्ह कमाई करवा रही है और सरस्वती कमाई का ज्ञान बढ़ा रही है… आप अरबों केन्द्र से भेज रहे हैं… हम करोड़ों सम्पत्ति कर के रूप में चुका रहे हैं… फिर भी गंदगी और बदबू की विपत्ति से मुक्ति नहीं पा रहे हैं… केन्द्र का पैसा भी हमारी टैक्स की कमाई है और शहर का टैक्स भी हमारे पसीने की कमाई है… दोनों गाद में जा रहे है… या यूं कहे नाले में डूबा रहे हैं… इसीलिए न आप पैसे भिजवाएं ना हम चुकाएं… आप हमारे नाले को नदी ना बनाएं… हम उसकी बदबू महसूस कर लेंगे… बरसों से रह रहे है और कई बरस रह लेंगे… वरना लोग कहेंगे की केन्द्र के भेजे पैसे नाली में बहते हैं…

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