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मौसम का बदलता मिजाज बना जानलेवा, कभी धूप तो कभी बारिश बनी परेशानी! जानिए वजह

नई दिल्ली: भारत और पूरी दुनिया में हो रहे मौसमी बदलाव से कौन अपरिचित है, लेकिन बावजूद इसके बदलते मौसम को लेकर सरकारों के सरोकार और सामाजिक चेतना दोनों में ही रस बड़ा फीका सा प्रतीत होता है. भारत में बीते चार महीने यानी 120 दिनों को ही अगर देख लिया जाए तो पता चलता है कि लगभग 84 दिन भारत में किसी ना किसी राज्य ने एक्सट्रीम वेदर कंडीशन का सामना किया है. देश का एक भी राज्य इस से अछूता नहीं है. इस से पिछल वर्ष में करीब 27 राज्यों में 89 दिन Extreme Weather Condition के अनुभव किए गए.

स्टेट ऑफ इंडियाज एनवायरनमेंट की 2023 में जारी हुई रिपोर्ट बताती है कि वर्ष 2022 में शुरुआती चार महीने हीटवेव की भेट चढ़ गए और 2023 आते आते मौसम ने एक दम ऐसी करवट ली कि इस वर्ष के शुरुआती चार महीने में कई राज्यों में मूसलाधार बारिश और ओलावृष्टि देखने को मिला है.रिपोर्ट बताती है कि 84 दिन में से 58 दिन कहीं ना कहीं मूसलाधार बारिश देखने को मिली. इसके चलते, जान-माल का नुकसान तो हुआ ही साथ ही खेती और किसान दोनों पर आफत आन पड़ी. इस वर्ष हुई मूसलाधार बारिश ने देश के सभी राज्यों को अपनी चपेट में लिया है.

क्यों मौसम में देखने को मिल रहा बदलाव?
मौसम विभाग की मानें तो पिछले वर्ष भी बेमौसम तेज बारिश से तकरीबन 22 राज्य प्रभावित हुए थे. मौसम वैज्ञानिक मानते हैं कि इसके तीन बड़े कारण है. इसमें सबसे बड़ा ग्लोबल वार्मिंग, दूसरा कमजोर वेस्टर्न डिस्टरबेंस और तीसरा स्ट्रांग सब ट्रॉपिकल जेट स्ट्रीम.

इन्हीं कारणों से बेमौसम बरसात का होना और ओलावृष्टि के चलते नुकसान झेलने पड़ रहे है. डराने वाले आंकड़े आगाह करते हैं कि कैसे इस वर्ष के बीते चार महीनों में 70 फीसदी एक्सट्रीम वेदर कंडीशन होने के चलते हमारी आस पास की दुनिया के साथ ही जलवायु पूरी तरह से प्रभावित और परिवर्तन की ओर बढ़ चला है.


कितना हुआ नुकसान?
आंकड़ो पर ध्यान दिया जाए तो पता चलता है की जनवरी से लेकर अप्रैल तक 233 जिंदगियां मौसम की भेंट चढ़ गईं. वहीं पिछले साल मौसम ने 86 लोगों की जान ले ली. ये आंकड़ा बताता है कि बीते वर्ष की तुलना में इस वर्ष मौसम ने 170 फीसदी ज्यादा कहर बरसाया है.

इसके इतर एक्सट्रीम वेदर इवेंट्स के चलते इस वर्ष अब तक 0.95 मिलियन हेक्टेयर खेती बाड़ी की जमीन का नुकसान किसान ने झेला है. यह पिछले वर्ष की तुलना में 31 फीसदी ज्यादा नुकसान है. पिछले वर्ष 0.03 मिलियन हेक्टर खेतीबाड़ी वाली जमीन का नुकसान हुआ था.

रेगिस्तान में बाढ़ और यूपी में गर्मी से बेहाल लोग
लगातार हो रहे वेस्टर्न डिस्टरबेंस के चलते ही बेमौसम बारिश, ओलावृष्टि आदि मौसमी समस्याएं पैदा हो रही हैं. मई के मौसम में गर्मी का कम होना इसका सतत उदाहरण है. हाल के दिनों को ही अगर उदाहरण के तौर पर देख लिया जाए तो पता चलता है की जहां असम और सिक्किम में तेज बारिश हो रही है तो वहीं बिपरजॉय का असर राजस्थान के रेगिस्तान में दिखा.

तमिलनाडु के कई इलाकों में भारी बारिश के चलते पानी भर गया. इसके इतर उड़ीसा, बिहार और उत्तर प्रदेश में 114 जाने गर्मी और लू के चलते चली गई. वक्त आ चुका है कि सरकारों के सरोकार और सामाजिक चेतना इस जन भावना के साथ काम करें कि इस जलवायु परिवर्तन की समस्या को दूर करने के लिए सख्त कदम उठाएं जाए, अन्यथा देर सेवर मौसम में हो रहे बदलाव भविष्य के लिए विनाशकारी स्थिति पैदा कर ही चुके हैं.

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